ई छोकरा-छुकरिया कैसे नैन मटक्का करत रहत
>> 27 January 2010
स्वागत है आप सब लोगन का प्रेम नगर मां । अब ई का नाम प्रेम नगर काहे है ? बड़ा जाना पहचाना सा सवाल और हम कहत हैं कि ई सवाल का जवाब दे दे थक गये हैं कि भैया ऊ का कहत हैं कि हियाँ प्रेम बहुत होत है । जब देखो तब हियाँ के लड़के लडकियाँ नैन मटक्का करत रहत । अब ऊ कल की ही बात लै लेओ । ऊ किशनवा की छुकरिया कैसे दीदें फाड़ फाड़ के ऊ रमेशवा के छोकरा को देख रही । जब ई सब करत हैं तो सब कछु भुलाए देत । सब जग बैरी हुई जात । नाही देखत कि कोनों बड़ा बुजर्ग भी हुआं खड़ा है । जैसे क ज़वानी इनमा ही आई है अकेली ।
आजकल तो ऊ का खिटिर-पिटिर करत रहत हैं । अरे का कहत हैं ऊ का मुई बाइल । जब देखो तब ऊ पर उंगलियाँ चलात रहत नाही तो कान में लगाईं खी-खी करि-करि हसत जात । ना जाने ई बिलायती लोगन ने का खिलौना बनाई दियो है । सब ऊ पर ही सवार रहत हैं और अब का बताएं पहिले चलो चिट्ठी पत्री पकड़ में आयि जात थी तो समझाई बुझाई देत थे । पर अब नाही दद्दा । अब तो कछु हाथ नहीं आवत ।
पड़ोस की लल्ली ऊ जोगनवा के लल्ला से का कहि रही थी । हाँ, आई लब ऊ । फिर बाद मा खी-खी करि-करि हसत जात । अरे हम कहत हैं कि ई प्यार-व्यार करन का बखत है का । चुपी-चाप पढ़ाई लिखाई नाही करी जात । जब बखत आबे तब ही सब काम अच्छे लागत हैं । अबही उम्र ही का भई । अबही तो आठये में ही पढ़त है । ना जाने ई छोकरा और छुकरीयाँ कहाँ भटकत जात हैं ।
छोकरन का, का है, ऊ तो मुंह पौंछ पाँछ के चलि दियें और टक-टकी लगाई देखिये कोई और शिकार । पर इन छुकरियन को का समझायें कि चुपी चाप पढ़ाई लिखाई में मन लगावे और सही बखत पर सही काम करें । नाही तो सारी जिंदगी का रोना रही जात है बस । अब रमा काकी की तो बात लगत है बुरी । अब लगत है बुरी तो लागे बुरी । रमा काकी तो कहत है बात सच्ची और खरी ।
अब समय नाही है कि यूँ ही समय ख़राब किया जावे । ऊ तो वैसे ही हम जनानी लोग इत्ते बरस से पीछे चली रही हैंगी । समय पर जो पढाई-लिखाई भी ना की तो कैसन निबाह हुई । अब ऊ ज़माना नाही जब राधा और मीरा बनि सिर्फ प्रेम करि स्त्री धरम का निबाह किया जात था । अब जमाना आगे बढ़ी कदम से कदम मिलाये चलि बे का है । नाही तो पीछे मुंडी घुमाई देख लीजो जादा बखत अबही नाही गुजरा है, कि का का गुजरी है हम जनानी लोगन पै ।
14 comments:
kuchh jaana, kuchh samjhaa aur ise apni jubaan me likhe utkrasht vyangy ka purskaar to detaa hi hu.
नाही देखत कि कोनों बड़ा बुजर्ग भी हुआं खड़ा है । जैसे क ज़वानी इनमा ही आई है अकेली ।
haha h...classic statement ..too good.
ांरे अनिल जी ये न्या अन्दाज़ क्या कहने बहुत अच्छा लगा मगर समझने मे देर लगी । आनन्द आ गया पढ कर बधाई
देखन बड्डे कैसन गुटुर गुटुर नैनन मटकाट हैं .... गजब के अंदाज में लिखवो करहें वाह वाह
aapka likha padh ham bahut hanse sacchi......aisi bhasha properly bol nahi paate....par kabhi charector dekhte hai to bina muskuraye nahi rah paate.....aapke kirdaar to bilkul asli hain ji :-)
भइया ई रमा काकी बात तो बहुते खरी कहत हैं जब बखत आबे तब ही सब काम अच्छे लागत हैं पर ई बात छोकरा और छुकरिया दुइनो के ऊपर लागू होत हैं... जय हो रमा काकी की :-)
अच्छी पोस्ट!
बेहद प्रभावी रचना...
वाह निराला अन्दाज़.
Wah! sahaab aapka ye andaz bhi khub hai pad kar bada hi maza aaya dil khush hogaya...!!
rachana bahut hi achhi apani apani si lagi.
Badhai...!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
waah kya baat hai....
आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया !
बात तो सही कही है भैया पर जा जबानी पे कोंन्हू जोर नाहीं चले है काऊ को... रमा काकी ए लगत है के अपए जबानी क दिन जाद नाहीं हैं
क्या भई..नाम प्रेमनगर..और चित्रण इतना गजब?...हम तो आपकी ही बात ले कर इतना ही कहेंगे..
अरे हम कहत हैं कि ई प्यार-व्यार करन का बखत है का । चुपी-चाप पढ़ाई लिखाई नाही करी जात । जब बखत आबे तब ही सब काम अच्छे लागत हैं ।
:-)
वैसे भाषा का यह जुदा अंदाज दिलकश लगा..
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