आधा सच !
>> 24 January 2010
यह बात उसे बचपन में ही पता चल गयी थी कि अगर इस दुनियाँ में सबसे ज्यादा कुछ कडवा होता है तो वह है "सच" । हाँ सच सबसे ज्यादा कडवा होता है । उसके साथ हमेशा ऐसा होता था कि सच उसे टुकड़ों में पता चलता था ।
उसके यहाँ काम करने वाली के मुँह से आधा सच उसे दोपहर को पता चला कि उसका पति उसे बहुत मारता-पीटता है और उसके कमाए हुए पैसों को छीन कर शराब पी जाता है । आधा सच उसे रात को पता चला, जब उसके पिताजी उसकी माँ को शराब के नशे में लात-घूसों से पीट रहे थे और गाली-गलौच कर रहे थे । तब उन दोनों आधे सचों को मिलाकर एक पूरा सच उसने ये जाना कि स्त्री चाहे अमीर घर में हो या गरीब घर में, मर्द उसे पैरों तले कुचलते रहना चाहता है । फर्क सिर्फ इतना है कि उसके यहाँ सफाई करने वाली वापसी में गाली-गलौच करती हुई लोगों से चीख चीख कर कह सकती है कि उसका पति उसे मारता है । जबकि उसकी माँ नहीं । ये एक मर्यादित समाज का बनाया हुआ ढाँचा था जिसके अन्दर उसे सब सहना पड़ता था ।
जब एक तथाकथित वर्ग विशेष द्वारा बनाया गया नियम उसने जाना कि उनके लिये एक अन्य वर्ग ऐसा है जिसे छू लेने से उनका धर्म भ्रष्ट हो जाता है । जब उसी वर्ग द्वारा उस अछूत वर्ग की स्त्री की इज्जत तार-तार करने की खबरें उसने पढ़ी और सुनी तो उसे दोनों आधे सच को मिलाकर पूरा सच यही पता चला कि यह सब खुद की सहूलियत के लिये बनाये गये नियम हैं । असल में उनके लिये स्त्री केवल भोग्या है, चाहे वह किसी भी वर्ग की हो ।
आधा सच उसके लिये किसी छोटे शहर की लड़की का प्यार में पड़कर अपने प्रेमी के साथ भाग जाना और फिर पकडे जाने पर दोनों को जान से मार दिया जाना था । बाकी के आधे सच को दुनियाँ की नज़र में सच बनाकर परोसा जाता, वह यश चोपड़ा की फिल्मों में सरसों के खेत में खड़े हीरो की फैली हुई बाहों में हीरोइन का भागते हुए गले लग जाना और अंत में लड़की के बाप का ये कहना कि जा जी ले अपनी जिंदगी ।
इस अधूरे सच का बनाया हुआ एक हिस्सा सुभाष घई की फिल्मों का था । जिसमें हीरो कहता है कि अगर असली भारत देखना है तो रेलगाड़ी के सामान्य डिब्बे में सफ़र करते हुए बाहर झाँक कर देखो । शायद ए.सी. के डिब्बे में बैठकर यह डायलॉग लिखना बहुत सुखद होता होगा । पर्दे के परे का सच, एक के ऊपर एक पैर रखकर उस डिब्बे में सफ़र करते हुए साँस लेने के लिये बामुश्किल गर्दन का इधर से उधर घुमा लेना भर था । जब वह थोडा बड़ा हुआ तो उस पर्दे के सच को और बड़ा करने के लिये सुभाष घई को अपना चचा बनाते हुए करण जौहर का सिर पर अमीरी लादे दौड़ लगाना था । सुनहरा, सुहावना और मनोरंजक सच ।
आधा सच उसका ये जानना कि मेहनती और होशियार इंसान जिंदगी में बहुत आगे निकलते हैं । बाकी का आधा सच पैसों की कमी की वजह से उसका इंजीनियरिंग न कर पाना और पड़ोस के फिसड्डी लड़के का डोनेशन पर प्रवेश लेकर इंजीनियर बन जाना था ।
उसने सच हमेशा टुकड़ों में ही जाना । आधा सच जिसे दुनियाँ छुपाये घूमती और बाकी का आधा सच जिसमें दुनियाँ छुपी घूमती ।
13 comments:
वो ऐसा है अनिल कान्त जी, हर सच एक पूरा संच ही होता है पर वो कहते हैं न कि हर सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है....
सच्चाई की रोशनी दिखाती आपकी बात हक़ीक़त बयान करती है।
आधे सच की पूरी हकीकत!..बहुत अच्छा लगा!
सच के टुकड़ों का संधान करती रचना..सच कड़वा होता है क्योंकि हमारी खोखले स्वप्नों से भरी निरर्थक नींद मे सुई की तरह चुभता है..और यह सच हमारा अपना सच है, हमारा ही अविष्कृत किया हुआ..इसी लिये सिर्फ़ कुछ लोगों का दायित्व-बोध से परे इंटेलिजेंट होना एक सिविलाइजेशन के लिये मै खतरनाक मानता हूँ, कि आप तर्कों की मनमानी व्याख्या द्वारा अपनी सुविधा के लिये असत्य को भी सभी के लिये सत्य साबित कर सकते हैं, किसी कुटिल अधिवक्ता की तरह.
..और फ़िल्मों का यह झूठ सहज स्वीकार्य है समाज मे..हम दिन भर के सच के कड़वेपन से छुटकारा पाने के लिये ही तीन घंटो का सपनीला झूठ खरीदते हैं.
ये टिप्पणी इसलिए नहीं कि तुम मेरे ब्लॉग पर आए थे, ये टिप्पणी सिर्फ इसलिए कि कितना अच्छा लिखा है। आखिर तक छोड़ ही नहीं पाया। और कुछ बातें मेरे मन की भी कह गए।
सच बहुत ही काड़ुवा होता है ..... आधा अधूरा सच ही होता है जो बाहर आता है किसी भी माध्यम में ..... पूरा सच कभी कभी बहुत ही काला होता है ..... बहुत अच्छा लिखा है अनिल जी ........
katu satya ujagar kar diya.
sach hai sach ka swaroop jhelna aasan nahi
excellent !!....वस्तुतः..वह दूसरा वाला सच नही है...वह आँखों के आगे पड़ा हुआ पर्दा है जिसे निर्ममता से खींचने की जरुरत है . ...आप जब भी प्रेम कथाओं से इतर कुछ लिखते हैं आपके अन्दर का रिबेलियन पुर जोर उपस्थिति दर्ज करा पता है..रचनाकार को सामाजिक सरोकारों से जुड़ा हुआ होना ही चाहिए अनिल.
आधा सच जिसे दुनियाँ छुपाये घूमती और बाकी का आधा सच जिसमें दुनियाँ छुपी घूमती ।
अन्दाजे ब्यां बहुत खूब । कटु सत्य शुभकामनायें
एकदम सही बात.....
वाह बहुत ही सुन्दर! आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
यह जो आधा सच है
सचमुच है
आज दैनिक जनसत्ता में
समांतर स्तंभ में
प्रकाशित हुआ है
बधाई स्वीकारें भाई
29 जनवरी 2010
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