ज़िन्दगी बड़ी कलरफुल होती है बर्खुरदार
>> 18 July 2015
हम ऐसे स्कूल में थे जहाँ लड़कियों का नामो निशां नहीं था. और जब स्कूल के गेट पर हम अपने ठेले और खोमचे वालों के पास खड़े रह समय को धकेल रहे होते कि भाई अब बहुत हुआ ज़रा आगे बढ़ो. वह बीतता रहता और हम बेमतलब, बिना कुछ खाए दूर से ही ठेलों पर की चीज़ों को ऐसे महसूसते जैसे ये तो खायी हुई चीज़ है. हमें उनसे कोई आसक्ति न होती. असल में बात दूसरी ही होती जोकि हमारे घरों से शुरू हो हम तक ही ख़त्म हो जाती. उन दिनों सभी घरों में 3-3, 4-4 भाई बहन हुआ करते और तब न तो जेब खर्च जैसा चलन था और नाहीं उसके प्रारंभ होने की कोई सम्भावना दिखती. तब जेबें पहले से ही छोटी सिलाई जाया करतीं. और कई दफा तो गुप्त जेबें भी हुआ करतीं जिनमें हथेली भर पैसे किसी गुप्त ज्ञान से बसा करते. कभी कोई भूला भटका रिश्तेदार जाते वक़्त कोई चवन्नी या अठन्नी दे जाया करता तो लगता कि सपनों का एक पूरा संसार दे गया हो. और जब वो एक रूपया होता तो लगता इससे दुनिया का हर सुख हासिल किया जा सकता है. हम उस एक रुपये से मन ही मन ना जाने क्या क्या खरीद लिया करते.
उसी गेट के सामने से जब हमारे स्कूल की आखिरी घंटी टनटनाने को हुआ करती तब किसी कान्वेंट स्कूल की लड़कियों का ग्रुप निकला करता. वे अपनी अपनी साइकिलों पर हुआ करतीं और उन दिनों जबकि हम लड़की और उनके हर किस्म के स्वभाव से अनभिज्ञ थे, उन्हें स्कर्ट पहने साइकिल चलाते हुए जाते देखा करते. और तब लगता कि यह एक सुख है जो उन्हीं लड़कों को हासिल है जो उनके साथ पढ़ा करते हैं. वे अपने अपने ब्लेज़रों और टाईयों में सीलबंद से रिक्शों पर या अपनी अपनी साइकिलों पर आते जाते दिखा करते. उनसे बड़ी जलन हुआ करती. और जब तक वो आगे बढ़ पीक पर पहुँचने को हुआ करती तो हमारे स्कूल के मास्टर अपने हाथों में डंडा लिए हमें गुस्से से पुकारा करते. एक मिनट लेट होना हमें दो तीन चोटें तो खिला ही दिया करता. परन्तु यह हर रोज़ का सा एक बना बनाया खेल सा हो गया.
हममें से कुछ एक्स्ट्रा स्मार्ट एक बिलकुल देशी स्कूल के होने वाले प्रोडक्ट, उन लड़कियों को ताड़ते हुए हदें पार कर सीटियाँ मारते या कोई मोहब्बत भरी बात कह दिल जीतने की कोशिशें किया करता. मोहब्बत से तो हर कोई देखा करता लेकिन सबकी मोहब्बतों में फर्क हुआ करता.
फ्यूचर तब दूर से हम वैदिक विद्यावती इंटर कॉलेज के लड़कों को देख मुस्कुराता हुआ हमारे बचपने पे कभी लाड़ तो कभी तंज कसता होगा. और कहता जरुर होगा मन ही मन खुद से कि अमाँ छोडो यार कर लेने दो दिल्लगी. ज़िन्दगी खुद ही दे देगी तज़ुर्बे. तुम क्यों कॉलर ताने खड़े हो मियां. तुम्हारा क्या छीन रहे हैं.
और क्या पता कल को पाला बदल जाये और कोई शोख हसीना मोहब्बत कर बैठे और बन जाये कोई फ़साना.
जिंदगी बड़ी कलरफुल होती है बर्खुरदार.
उसी गेट के सामने से जब हमारे स्कूल की आखिरी घंटी टनटनाने को हुआ करती तब किसी कान्वेंट स्कूल की लड़कियों का ग्रुप निकला करता. वे अपनी अपनी साइकिलों पर हुआ करतीं और उन दिनों जबकि हम लड़की और उनके हर किस्म के स्वभाव से अनभिज्ञ थे, उन्हें स्कर्ट पहने साइकिल चलाते हुए जाते देखा करते. और तब लगता कि यह एक सुख है जो उन्हीं लड़कों को हासिल है जो उनके साथ पढ़ा करते हैं. वे अपने अपने ब्लेज़रों और टाईयों में सीलबंद से रिक्शों पर या अपनी अपनी साइकिलों पर आते जाते दिखा करते. उनसे बड़ी जलन हुआ करती. और जब तक वो आगे बढ़ पीक पर पहुँचने को हुआ करती तो हमारे स्कूल के मास्टर अपने हाथों में डंडा लिए हमें गुस्से से पुकारा करते. एक मिनट लेट होना हमें दो तीन चोटें तो खिला ही दिया करता. परन्तु यह हर रोज़ का सा एक बना बनाया खेल सा हो गया.
हममें से कुछ एक्स्ट्रा स्मार्ट एक बिलकुल देशी स्कूल के होने वाले प्रोडक्ट, उन लड़कियों को ताड़ते हुए हदें पार कर सीटियाँ मारते या कोई मोहब्बत भरी बात कह दिल जीतने की कोशिशें किया करता. मोहब्बत से तो हर कोई देखा करता लेकिन सबकी मोहब्बतों में फर्क हुआ करता.
फ्यूचर तब दूर से हम वैदिक विद्यावती इंटर कॉलेज के लड़कों को देख मुस्कुराता हुआ हमारे बचपने पे कभी लाड़ तो कभी तंज कसता होगा. और कहता जरुर होगा मन ही मन खुद से कि अमाँ छोडो यार कर लेने दो दिल्लगी. ज़िन्दगी खुद ही दे देगी तज़ुर्बे. तुम क्यों कॉलर ताने खड़े हो मियां. तुम्हारा क्या छीन रहे हैं.
और क्या पता कल को पाला बदल जाये और कोई शोख हसीना मोहब्बत कर बैठे और बन जाये कोई फ़साना.
जिंदगी बड़ी कलरफुल होती है बर्खुरदार.
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