इच्छाओं का भंवर

>> 09 July 2015

इच्छा कहाँ से उपजती होगी. अधूरेपन से या पूरेपन से. पूरापन कभी किसी को कहाँ हासिल हुआ है और जब कभी जो हासिल ही नहीं हो सका उसे फिर पूरापन किन अर्थों में कहा जाये.

असल में अधूरापन इच्छाओं का दमन करके पूरा किया नहीं जा सकता तो फिर हम कहाँ से कहाँ को भाग रहे होते हैं.

ज़िन्दगी के एक छोर से उस दूसरे छोर तक जहाँ इन सबके न जाने क्या अर्थ बचे रह जाते होंगे.
या दोनों छोरों के मध्य पसरी दूरी को नापने की ज़िद. उस ज़िद को कोई दौड़कर करता है तो कोई सुस्ताता हुआ.

क्रिएटिविटी जिन किन्हीं खानों में रखी जाती हो. होती बड़ी भली भली है. वो इन छोरों को नापने का हौसला भरती है. नई ऊर्जा का संचार करती है और जो राहतों का समन्दर दिखता है कहीं मध्य में वो शायद इसी भली चीज़ की भलमनसाहत है.

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