मोहब्बत के चक्कर

>> 01 July 2015

तब यही कोई तकरीबन सत्रह बरस की उम्र रही होगी जनाब की. मोहब्बत ने तब नई नई एंट्री मारी थी उनके जीवन की स्टेज पर. कहीं किसी एक रोज़ मियाँ साइकिल से जा रहे थे और वो रिक्शे पर थीं. बस फिर क्या उनकी आँखें न मिल पाने के कारण आँखें चार होने से होते होते रह गयीं. लेकिन कमबख्त मुआं इश्क़ उनके दिल में बैक डोर एंट्री ना मार सीधा उन्हें अपनी गिरफ्त में ले उन्हें महबूब बना बैठा.

इस सत्रह वर्षीय स्वंय को किसी 25 वर्षीय युवक से कम न समझने वाले नायक का इंट्रोडक्शन कुछ यूँ है कि साहब का दिल अचानक से पढाई से जी चुराने लगा है, आप फिसड्डी न कहलाये जाएँ इसलिए दिखावा ही सही पर किताब को अपने रहमो करम से बेहद जटिल विषय बना उसमें घुसे रहने का भरपूर प्रदर्शन करने में कोई कोताही नहीं बरतते.

आपको घर वाले बिट्टू बुलाते रहे हैं और न जाने कब तलक बुलाते रहेंगे ये तो केवल घरवाले ही बता सकते हैं.

तो हम वापस पॉइंट पर आते हैं और वो यूँ है कि बिट्टू को मोहब्बत हो गयी. आप अपनी तसल्ली के लिए, अपनी आसान भाषा के लिए उसे इश्क़, प्यार, लव, वगैरह वगैरह जो चाहे सो कह सकते हैं.

तो साहब बात फिर आगे यूँ बढ़ती है कि बिट्टू जी उस लड़की को दिल ही दिल चाहने लगते हैं, प्यार करने लगते हैं, उस पर मरने लगते हैं और उनके दोस्तों की भाषा में कहें तो लट्टू हो जाते हैं. बस अपनी साइकिल लिए कभी इस गली तो कभी उस गली भँवरे की तरह मंडराते रहते हैं.

ये बात अलग है कि लड़की को अभी पता भी नहीं है की बिट्टू नामक भी कोई प्राणी है जोकि दिल ही दिल में उन पर जान छिड़कता है, उन पर मरता है. उनका पीछा करता है.

वो तो एक बहुत लंबा अरसा बीत जाने के बाद उन्होंने नोटिस किया कि यह रोज़ रोज़ मूंगफली की ठेल पर खड़ा खड़ा उनके ट्यूशन सेंटर के बाहर बिना मूंगफली खाये मूंगफली वाले का नुकसान करने वाला प्राणी हो न हो अंग्रेजी तो सीखने में उत्साहित दिखाई नहीं देता. तो फिर भला बात क्या है. एक दिन दो दिन तो अवॉयड किया भी गया किन्तु जब दिन महीने में बदल गए तब जाकर ख्याल आया कि हाय दईया ये लड़का तो पीछे पड़ने वाले काम में लगा है.

उधर बिट्टू के आधे अधूरे और कुछ पूरे दोस्तों ने ये अफवाह फ़ैलाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी कि ये तो बिट्टू की ही हैं और हमारी भाभी हैं. कुछ आधे अधूरों ने मुंह भी मसोरा लेकिन चूंकि स्वंय कुछ करने में नाकामयाबी सी महसूस कर रहे थे तो सोचा कि बिट्टू इसी में खुश है तो हम उसकी ख़ुशी का टेंटुआ दबाने वाले कौन होते हैं.

फिर क्या था बात फैलते फैलते रायता बन गयी. किसी एक रोज़ लड़की ने अपनी सायकिल रोक पीछे से फॉलो करते आ रहे बिट्टू से पूँछ ही लिया अपनी नई नई सीखी हुई अंग्रेजी में की भैया हु आर यू. कौन हो बताओगे भला या यूँ ही मक्खियों की तरह भिनभिनाते रहोगे. बिट्टू जी का गला जहाँ कहीं से भी शुरू होता है से सूख कर जहाँ कहीं भी ख़त्म होता है वहां तक सूख कर छुआरा सा फील करने लगा.

अब ये भी कोई बात होती है भला कि आप लड़की के प्रेम में गिरफ्तार हैं और लड़की ये तक नहीं जानती कि हु इज़ दिस रोमांटिक छैल छबीला रंग रंगीला टाइप बॉय.

बस अपना कलेजा मुंह तक आया हुआ ले घर पर अपने भरे पूरे दोस्त के सामने दिल खोल रोये कि ये तो बेवफाई की इन्तेहाँ हो गयी. उनकी महबूबा को ये तक नहीं पता कि ये गली गली घूमता, घर से पैसे बचा साइकिल के पंचर जुड़ाता, मूंगफली के ठेल के आस पास खड़े हो ठेलेवाला सा दिखलाता, साइकिल की सम्पूर्ण रफ़्तार को नापता यह बाँका नौजवान सा लड़का उनका प्रेमी है.

उस शाम तन्हाइयों ने आ आ कर उन्हें इतना घेरा कि,  कितना घेरा. कि इसे नापना बेहद जटिल प्रक्रिया बनने में तब्दील होती दिखाई जान पड़ती है.

लेकिन बिट्टू इससे उभरेगा एक नायक की तरह और फिर एक नए जोश और उमंग के साथ अपने इस युद्ध रुपी कार्य के संचालन में लग जायेगा.

खैर तब तलक बिट्टू निराशा के बादलों से घिरा है और उसका भरा पूरा दोस्त उसके इस दुःख में शामिल है.

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