बंद पुराने संदूक से कुछ यादें
>> 21 August 2009
चन्द रोज़ पहले जब घर गया तो यूँ लगा जैसे कि सुकून और आनंद तो बस वहीँ है जहां आपके अपने हों...कहने को तो कई शहर बदल दिए इन पिछले 6-7 सालों में मगर सच तो यही है कि मैं जब भी सुकून की तलाश करता हूँ तो वो मुझे माँ के पास ही मिलता है...उनका आँचल थामें...उनके पल्लू को पकड़ पीछे छुपा सा खडा हुआ दिखता है वो सुकून...जैसे मैं बचपन में खडा रहता था...बेपरवाह...जानता था माँ जो है हर दुःख और परेशानी से बचा जो लेगी...और जब तब बापू की मार से बचने के लिए भी मेरी पसंदीदा जगह भी माँ का पल्लू पकड़ उनके पीछे छुप जाना ही बहुत होता था...अब जब मैं उनके पास जाता हूँ तो उस सुकून ने मेरी जगह ले ली है...और जैसे चिढा सा रहा हो...लेकिन मेरे माँ के पैरों में गिरते ही ना जाने वो कहाँ चला गया...शायद मैं जो पहुँच गया था
उस रोज़ माँ ने अपने पुराने बक्से को खोल कुछ यादें निकालनी चाहीं...माँ ये क्या है...ये टिफिन...ये बक्से में कैसे...उस रोज़ माँ ने बताया कि जब मैं छोटा था तब इसी टिफिन में खाना ले जाया करता था...कमाल है...माँ ने अभी तक संभाल कर रखा हुआ है....और ना जाने ऐसी कितनी यादें होंगी जो माँ ने यूँ ही संभाल कर रखी होंगी...पूंछने पर माँ ने हंसते हुए कहा कि जब तेरा कोई बच्चा होगा तब एक बार उसको भी इस टिफिन में खाना देकर भेजूंगी...मैं मुस्कुरा दिया...ओह माँ तुम भी ना...
उसी रोज़ मुझे वो फोटो माँ ने दिखाया जो छटवीं कक्षा में मुझे माँ ने ले जाकर खिचाया था...माँ ने बताया कि उस रोज़ उन्होंने मुझे बहुत डांटा था, शायद पिटाई भी की थी और बाद में माँ के सीने से लग रात में काफी देर तक रोया था और कब सो गया पता भी नहीं चला...अजीब बात है वो फोटो शायद बहुत सालों बाद मैंने देखा था...खुद को भी नहीं पहचान पाया था...पर माँ को हर वो बात याद है...शायद हर वो दिन जब मैं उनके पास था...
वहाँ रहते उस रोज़ निशा का फ़ोन आया...माँ ने फ़ोन उठाया था...कमरे में आकर मुझे दिया...बाद में माँ पूंछ रही थी कि कौन है...मैं मुस्कुरा दिया...माँ...तुम भी ना...क्या सोचती रहती हो...वो मेरी दोस्त है...माँ बोली बस...मैं फिर मुस्कुराया...माँ बोली फिर हमारा क्या फायदा...मेरे मुंह से निकला...माँ...कुछ देर बाद बोली अच्छा तो कोई लड़की पसंद है क्या...मैंने ना में सर हिलाया...माँ मुस्कुरा दी...
माँ ने बताया कि जब मैं छोटा था और हम जब आगरा में रहते थे तो वहाँ पड़ोस में ही रहने वाली आंटी जी की लड़की उन्हें बहुत पसंद थी और तब वो सोचा करती थीं कि शायद बड़े होने पर हम दोनों की शादी करा दें...मैंने हँसते हुए पूंछा कहाँ हैं अब वो...माँ ने अफ़सोस जताते हुए बताया कि उसकी शादी हो गयी...माँ बता रही थीं कि बचपन में वो लड़की और मैं गर्ल फ्रेंड और बॉय फ्रेंड बने घूमते थे...हमेशा साथ खेलते थे...मैंने सारी बात सुनकर शर्म से अपना मुंह उनकी गोद में छिपा लिया
माँ ने एक बार फिर पुँछ ही लिया कैसी है वो....मैंने कहा कौन...अरे वही निशा...मैंने कहा माँ...तुम भी ना...माँ बोली तुझे कोई और लड़की पसंद है क्या...मैंने ना में सर हिलाया...वो बोली जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया और एक हमारा लड़का है...फिर मुस्कुराने की बारी उनकी थी...मैं क्या करता...मैं भी एक क्यूट सी स्माइल देकर रह गया...और तकिये में अपना मुंह छिपा लिया...ओह माँ :) :)
26 comments:
cute si smile ke sath cute si post.....
आपकी यादे उम्दा रही बहुत बिंदास भावः से आपने अभिव्यक्त भी कर दी . धन्यवाद
Hi Anil..
I guess u r coming back to ur usual best.. I may be wrong in my previous comment..but that was my opinion and i still stick to it ..
For me this post was really a refreshing post from the previous romantic attempts by u..
Keep Blogging.. :)
Thanks preposterous girl...
for your valuable comments
ग़जब कर दिया जी आपने तकिए में मुँह छिपा लिया जी। खैर यादें खूबसूरत थी। फिर कभी दुबारा से यादों को पीटारा खोलीएगा। इंतजार रहेगा।
वाह जी बहुत खूब
बहुत बढिया।अपना बंद संदूक खोलने पर मज़बूर कर दिया आपने।
बहुत खुब। अच्छा वह कहां हैं अनिल जी?
जबरदस्त लेखन...बहुत सुन्दरता से उकेरा है पुरानी यादों को. बधाई हो, अनिल भाई.
ऐसे ही लिखते रहें. असीम शुभकामनाऐं.
lagta hai sabke saath aisa hi hota hai kya? mujhe bhi tiffin yaad aa gaya.. per aaj bhi vo mere pass hai(jaipur me)
...sanduk(calcutta wale ghar me ) me mere purane kapde aur khilone hai...lagta hai unse mukhatib hone gahr jana hi hoga...maa ki churiayan bhi hogi usme..
vo pital ke challon ke pyare se tohfe wo tuti hui churiyo ki nishani..vo kagaz ki kashti vo barish ka paani....
बहुत बढ़िया भाई,
माँ के सामने बहुत ही शर्मीले बन गये...
लेखन रोचक है और यादें भी
Maarmik prasang.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
yaadein aur wo bhi bachpan ki aur jismein maa ka sath ho wo to rochak hoti hi hain.
maa to maa hoti hai....
...sabse alag !!
purani yaadein taaza ho aie.
bahut sundar saMdook hai aapakaa use khole rakhiye aur bahut kuchh milegaa us men badhaai is post ke liye
आपने मुझे अपने बचपन के टिफिन की याद दिला दी।
ओह, वह छोटा सा डिब्बा और उसमें रखी तांबे की सब्जी की डिबिया!
आपके ब्लॉग पर आ कर यादें उभरने लगती हैं!
सुन्दर लेखन बधाई
गणेश उत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामना
बचपन की याद दिला गयी आपकी पोस्ट...आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगता है
आपकी पोस्ट तो दिल के तार छेड़ देती है
आप सभी का इतना प्यार और स्नेह मिलता है तो मुझे भी अच्छा लगता है...अपना साथ यूँ ही बनाये रखें
मैं तो ज्यादातर समय पर शर्मीला ही हूँ विनोद जी :) :)
यादों की जुगाली से, भावुक पलों को संजीदगी से चुरा लाना आपकी ख़ासियत है...
अपना बचकानापन भी बरबस याद हो उठता है...
सुन्दर लेख के लिये बधाई
Hamen bhi bachpan yad aa gaya.
f’kdkjiqj tuin
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया माँ पर अच्छी प्रस्तुति . एक रंग यह भी -
मुझे एसी में
नींद आती है ,
उसके पास टेबल फेन है
जो आवाज़ करता है ।
मैं ऊंचे दाम के
जूते पहनता हूँ ,
उसके पास
बरसाती चप्पल है ।
मैं हँसता हूँ
वो रो देती है,
मैं रोता हूँ
वो फ़ुट पड़ती है !
मैं, मैं हूँ
वो मेरी माँ है ।
[] राकेश 'सोऽहं'
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