सफर - ए रोमांटिक जर्नी (भाग-2)
>> 16 August 2009
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सभी लोग जल्दी से तैयार होकर बस में बैठ जाते हैं...पर इस बार थोडा सा बदलाव आया है...इस बार पल्लवी और मानव एक साथ बैठे हैं...बिल्कुल पास पास...बस चल देती है और सब राहत की सांस लेते हैं कि चलो अब बस चल तो रही है...फिर बीच बीच में कभी मानव पल्लवी की तरफ देखता और फिर आँखें चुरा कर दूजी ओर कर लेता और कभी पल्लवी मानव की ओर देख कर खिड़की की ओर देखने लगती
तो आप क्या लिखती हैं आपने बताया नहीं मानव पल्लवी से पूंछता है...आर्टीकल, इकोनोमिक्स, एंड सम सोशल इस्युज...ह्म्म्म अच्छा और कोई किताब वगैरह नहीं लिखी...हाँ कोशिश कर रही हूँ...देखो कब तक लिख पाती हूँ...चलो अच्छा है भगवान तुम्हें कामयाबी दे कहता हुआ मानव अपना सिर सीट के पीछे टिकाते हुए आँखें बंद करता है...मतलब...पल्लवी बोली...मतलब यही कि आप कामयाब हों आँख खोलते मानव हुए बोला...अरे देखो थोडी थोडी धूप निकल रही है...खिड़की के परदे हटाओ...देखो बाहर मौसम कितना प्यारा है...पल्लवी परदे हटाती है...सूरज सुबह निकल रहा है और बहुत प्यारा लग रहा है...वाऊ सो ब्यूटीफुल...पल्लवी बोलती है....मानव कहता है देखो वो मोर...कहाँ...अरे वो वहाँ...वो कितना प्यारा है ना...हाँ बिल्कुल आपकी तरह...पल्लवी मानव की तरफ देखकर सिर हिलाती है और फिर से बाहर देखने लगती है
पता है इस उगते हुए सूरज की भी एक कहानी है...मानव पल्लवी से कहता है...इसकी भी एक कहानी है, अरे वाह क्या कहानी है बताओ...पल्लवी मानव से कहती है...ये उगता हुआ सूरज सिर्फ उन्हीं लोगों को प्यारा लगता है...जो उसे प्यारा समझ कर देख रहे होते हैं...वरना तो कुछ लोग कहते हैं कि क्या फालतू की बातें हैं...ह्म्म्म हाँ शायद ऐसा हो पल्लवी बोली
और फिर बातों ही बातों में पल्लवी को नींद आ जाती है...वो कब सो जाती है उसे पता ही नहीं चलता...और मानव के कंधे पर सर रखकर आराम की नींद लेती है...मानव उसे बड़े प्यार से सोने देता है और कभी उसके चेहरे को देखता तो कभी उसके बालों को ठीक करने की कोशिश करता...और इस बात का पूरा ख़याल रखता कि उसकी नींद ना टूटे...बस काफी चल चुकी थी...बस एक ढाबे पर रूकती है...अचानक से पल्लवी की नींद टूटती है...और वो खुद को मानव के कंधे पर पाती है...ओह आई ऍम सॉरी...वो मुझे पता ही नहीं चला कब मैं...मानव मुस्कुराता है...तो आपकी नींद पूरी हो गयी...चलो कुछ खायेंगी आप...भाई मुझे तो बहुत जोरों की भूख लग रही है...हाँ मुझे भी
पल्लवी उतर कर पानी से अपना चेहरा धोती है...मानव चोरी छिपी नज़रों से देख रहा होता है...जब पल्लवी की नज़र मानव पर जाती है तो मानव कहीं ओर देखने का नाटक करने लगता है...फिर से पल्लवी की ओर देखते हुए बोलता है...क्या खाना है आपको...क्या है यहाँ...आलू के पराँठे...वो तो बहुत ओइली होते हैं...और कुछ नहीं है...भाई मुझे तो बहुत पसंद हैं आलू के परांठे...और मैं तो यही खाने जा रहा हूँ...और वैसे भी एक दिन खा लेने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा आपको...मानव मुस्कुराते हुए कहता है...मानव परांठे ले आता है...पल्लवी कोल्ड ड्रिंक लेकर पीने लगती है...मानव पल्लवी को परांठा रोल करके देता है....और आखिरकार पल्लवी परांठा खा लेती है...
खाना खाने के बाद दोनों बस की ओर चलने लगते हैं और अचानक से पल्लवी का पैर मुड जाता है...वो दर्द से कराह उठती है...मानव उसे संभालते हुए एक जगह बिठाता है...दवा लगाकर अपना रुमाल बाँध देता है...फिर उसे सहारा देते हुए बस में ले जाता है...थैंक्स मानव...थैंक्स अ लोट...मानव कहता है जल्दी ठीक हो जाओगी डोंट वरी...
अब कुछ था जो दोनों के बीच होने लगा था...क्या ये दोनों को ही नहीं पता था...पर शायद मोहब्बत अपना रंग दिखाने लगी थी...कभी पल्लवी मानव की ओर देखती और फिर नज़र खिड़की के बाहर कर लेती तो कभी मानव उसे यूँ ही देखता...फिर मानव अपनी आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगता है...पल्लवी मानव के चेहरे को देखती है...उसे कुछ महसूस हो रहा था पर क्या वो नहीं जानती थी...और इस तरह सफ़र आगे बढ़ता ही जा रहा था...
बस अपने आखिर पड़ाव पर पहुँचने वाली थी...मानव अपनी आँखें खोलता है...और ठीक से बैठ जाता है...खिड़की के बाहर झांकता है...शाम हो चली थी...सूरज डूब रहा था...कमाल है ये रंग भी कुछ वैसा ही था...पर ये अपने साथ उदासी क्यों लेकर आया था...शायद एक रात जो आने वाले थी...पल्लवी कहती है सूरज डूब रहा है...मानव कहता है ह्म्म्म वो दिन का दामन छोड़कर जाना चाह रहा है...कल फिर जो आना है उसे...शायद वो भी सोना चाहता है...पल्लवी मानव की ओर अजीब नज़रों से देखती है और फिर सूरज को देखने लगती है...बस रुक जाती है...बस का आखिरी पड़ाव भी आ चुका था...जहां से लोगों को अपने अपने गंतत्व को जाना था...किसको कहाँ वो सिर्फ उनको ही पता था...
मानव पल्लवी दोनों बस के बाहर खड़े होते हैं...बाकी की सवारियां धीरे धीरे करके जा रही हैं...मानव और पल्लवी दोनों आमने सामने खड़े होते हैं...मानव मुस्कुराते हुए पल्लवी के चेहरे को देखता है...फिर इस तरह से करता है जैसे कुछ कहना चाह रहा हो...फिर कहीं दूसरी ओर देखने लगता है...पल्लवी भी मानव को देखती है फिर खामोशी से जमीन को देखने लगती है...मानव कुछ कहना चाह रहा होता है तभी पल्लवी भी कुछ कहने लगती है...हाँ पल्लवी कहो...नहीं आप कुछ कहना चाह रहे थे...नहीं आप बोलो...पल्लवी जमीन को कुरेदती है फिर बोलती है...देखो मानव आपसे बात हुई अच्छा लगा...आप अच्छे इंसान हो...और आपकी वो कही हुई बात कि दुनिया गोल है...लोग यहाँ टकराते हैं...फिर से भी मिलते हैं...मैं जानना चाहती हूँ कि क्या वाकई ऐसा कुछ होता है...क्या वाकई दुनिया गोल है...क्या वाकई हम दोबारा मिल सकते हैं...देने को तो हम आपस में एक दूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी दे सकते हैं...आगे बात भी कर सकते हैं...पर मैं अभी ऐसा नहीं चाहती...
हाँ अगर हम दोनों दोबारा मिलते हैं तो हम अच्छे दोस्त जरूर बन सकते हैं...शायद हमें तब तक समय भी मिले...बातों को समझने का...खुद को और ज्यादा समझने का...क्योंकि आपसे बात करके मैं सोच रही हूँ कि क्या मैं वाकई खुद को जानती हूँ...तो क्या मुझे ये मौका दोगे आप...मानव ने दिल में बहुत कुछ सोच रखा था कि ये कहूँगा या वो कहूँगा लेकिन पल्लवी की बातों ने उसे खामोश कर दिया...अब उसके पास शब्दों की कमी थी...उसका चेहरा उसकी आँखें एक अजीब रंग ले लेती हैं...वो मुस्कुराता है...और अपना हाथ बढाता है...अपना ख्याल रखना...वो ऑटो वाले को बुलाता है...और पल्लवी को उसमें बिठाता है...पल्लवी बोलती है आप कुछ कहना चाह रहे थे...मानव अपना सर हिलाता है...और कहता है अपना ख्याल रखना....ऑटो वाला चला जाता है...कहाँ मानव को नहीं पता...एक लड़की जिसके साथ वो अभी अभी आ रहा था...वो जा रही थी...कहाँ उसे नहीं पता...वो कुछ देर खडा रहता है...यूँ ही मायूस...उसकी आँखें पल्लवी को दूर तक छोड़ती हैं...शायद उसे रिश्ते निभाना अभी नहीं आया...या फिर बनाना...एक यही ख्याल जो कि मानव को आया...और वो अपना बैग उठाकर चल देता है...आगे पढने के लिए यहाँ क्लिक करें
13 comments:
agale bhag ka intajar rahega ...........bahut hi badhiya ..........sundar rachana
behad khubsurat,jazbaaton ka bahav,aur lekhni mein har choti choti chiz ka khayal rakhna,just superb...aage?
bahut badhiya, sundar rachana
abhi fir entjaar karna hoga....
behtarin vakai........jitni tarif ki jaye kam hai
god, curiosity might kill me....
tarif ke liye shabd kam hain is waqt..........abhi to agli kadi ka intzaar hai
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया...अगली और अंतिम कड़ी मैं आज ही पेश कर चुका हूँ...कृपया समय मिलते ही पढ़ लें
main agla part padhne ja rahi hoon...bahut achchhi lag rahi hai kahaani
भाई क्या खूब लिखते हो...जितनी तारीफ करूँ कम है
very good, I came late so I will not have to wait, the last part is also here..great writing!!
यूँ कि मज़ा आ गया ...
what beautiful story!!!!!
bas 1 baat samajh nhi aayi.
bus me dawa kahan se aa gyi ji,
manaav sath me dawa le kar chalta hai kya
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