मेरा वो प्यारा सा एकतरफा प्यार
>> 25 August 2009
वो बसंत ऋतु से पहले के दिन थे...जब पेड़ से पत्ते झड़ रहे थे और नए पत्ते आने को थे...शरद ऋतु ने अपने पाँव पूरी तरह पसार लिए थे...और शर्दियों की वो धूप बड़ी प्यारी थी...वो गुनगुनी सी धूप और आने वाले बोर्ड एग्जाम...किताबों का और मेरा आपस का रिश्ता बड़ा ही नेक और मजबूत था...वो मेरी दोस्त थीं...और उनके साथ रहना मुझे बहुत अच्छा लगता था...उस गुनगुनी धूप और आने वाली बसंत ऋतु से भी प्यारा कोई होता है...ये मैंने उस रोज़ जाना...
जिस रोज़ वो उन जाडों की गुनगुनी धूप में मुझे दिखी...उस रोज़ सब कुछ जाता रहा...मेरा दिल..मेरा चैन...पढाई-लिखाई...और किताबें दोस्त बनकर साथ तो थीं...लेकिन अब किताबों के दिल की बात मैं ना तो सुनता था और ना ही समझता था...अब एक नयी सी आवाज़ सुनाई देती थी...मेरे दिल की अजीब सी हरकत की आवाज़...जो कमबख्त उसके सामने आते ही जोरों से धड़कने लगता था
महज 15 बरस के उस मासूम दिल का क्या हाल था ये तो वो मेरा मासूम दिल जानता था या फिर में...क्योंकि वो 15 बरस का दिल तो आखिर मेरा ही था...मुझे उसमें शिल्पा शेट्टी दिखती थी या यूँ कहूँ कि शिल्पा शेट्टी में वो दिखती...कहने को तो छलांग भर गली फांदने के बाद उसका घर था और नीम के पेड़ का आधा हिस्सा उसके आँगन में अपनी छाया बिखेरता और आधी मेरे आँगन में
महज 15 बरस की उम्र में एक मासूम दिल क्लीन बोल्ड हो गया...उसकी वो खिलखिलाती हंसी...जो मेरे दिल पर ऐसा असर करती कि बस पूंछो मत...एक तो जाडों की वो धूप और छत पर पढने का सफ़र जो अपनी राह बदल चुका था...रास्ते कब और कैसे बदल जाते हैं ये मैंने तब जाना...बहुत जद्दोजहद के बाद पता चला कि उसका नाम नम्रता है और वो भी दसवीं की परीक्षा देने वाली है...घर में उसे रोली बुलाते हैं, उसके घर में एक कुत्ता है, वो तीन बहने और एक भाई हैं, पिताजी फार्मेसिस्ट और माँ गृहणी हैं...मेरी अपनी सरकारी छत से उसका सरकारी आँगन साफ़ साफ़ दिखता और उसके दीदार के लिए मैं सारा दिन छत पर ही टंगा रहता...
कई रोज़ बाद हमारे एक बड़े भाई साहब ने हमको इस बात का इल्म कराया कि हमें प्यार हुआ है...आने वाली बोर्ड परीक्षा और इस होने वाले एकतरफा प्यार का ये अनूठा मेल था...होने जा रही खुदखुशी का हमें जरा भी इल्म ना था...क्योंकि बोर्ड परीक्षा में अपने विद्यालय में सबसे ज्यादा नंबर लाने का दारोमदार हमारे ही ऊपर था...सभी अध्यापकगण मुझसे यही उम्मीद लगाये हुए थे और मैं निगोड़ा नयी उम्मीद पाल बैठा था...एकतरफा मोहब्बत को एक सम्पूर्ण प्रेम कहानी बनाने की
हमारी प्रेम कहानी का तो पता नहीं लेकिन नम्रता को इस बात का इल्म हो चला था कि ये लड़का हमारे चक्कर में है...हम पर लाइन मारता है...हम इस बात से बेखबर कि आने वाली बोर्ड परीक्षाओं का क्या होगा...हम अपने एकतरफा प्रेम को बढ़ावा दे रहे थे...लेकिन कहते हैं ना कुछ एहसास उसी वक़्त होते हैं जब वो क्षण सामने आता है...आने वाली बसंत ऋतु से पहले की अपनी की गयी तैयार गठरी को लेकर हम अपनी परीक्षा देने गए...तब हमें एहसास हुआ कि एकतरफा प्यार, वक़्त और बोर्ड परीक्षा के क्या मायने हैं...और इस बात का भी कि हर काम का एक वाजिब समय होना चाहिए
परीक्षा ख़त्म होने तक हम एक ज़ंग जीत चुके थे और वो ये कि नम्रता से हमने बात कर ली थी..."आपका एग्जाम कैसा गया"...और सिर्फ इतनी बात कर लेने भर पर हम फूले नहीं समां रहे थे...परीक्षा ख़त्म होने के साथ ही हम अपने उन भाई साहब के बहकावे में आकर अपनी जिंदगी का पहला प्रेम पत्र लिख चुके थे और जो गलत हाथों में पहुँच जाने के कारण हमारे अधूरे प्यार का कारण बना
जब लड़की को प्रेम पत्र ना मिलकर उसके घर वालों को मिल जाए तो उसका हश्र क्या होता है ये उसी दिन पता चला...जब मेरे पहला और आखिरी प्रेम पत्र पकडा गया...ख़ुशी इस बात की थी कि चलो लड़की को पता तो चल गया कि हमें उससे प्यार है...और गम बहुत सारे कि अब क्या होगा और अब तो प्रेम पत्र जैसी चीज़ भी नहीं कर सकते...बस उसे देखना और उससे बात करने की कोशिश के आलावा हम कुछ ना कर सके...उसके सामने पड़ते ही हमारा गला सूख जाता और हाथ पाँव के रोये खड़े हो जाते...
बोर्ड की परीक्षाओं में हमारे नंबर 73% प्रतिशत आये जो कि उत्तर प्रदेश बोर्ड की परीक्षाओं के हिसाब से अच्छे थे...और इसके साथ ही हमारी मोहब्बत के दुश्मन कुछ कम ना बने...हमारी ही कालोनी में रहने वाले और हमारी ही हमउम्र मुएँ लोंडो ने हमारे प्यार को शमशान घाट पहुँचाने का बीडा उठा लिया...उन्होंने नम्रता और उसकी सहेली के क्या कान भरे...कि हमें राखी बांधने के लिए तैयार करवा लिया...
जिसको चाहते हों और वही राखी बाँध दे तो उसका ना जीना आसान होता और ना मरना...ये हमने उन दिनों उस होने वाले प्लान के दौरान जाना...वो तो खुदा हम पर मेहरबान रहा कि नम्रता ने हमें राखी नहीं बाँधी...वरना ना जाने क्या हश्र होता हमारी मोहब्बत का...फिर दिल में यह आस भी रही कि राखी नहीं बांधी तो मतलब कि कुछ चांस बनते हैं...लेकिन वक़्त बीतता चला गया और हम बस एक तरफा प्यार ही करते रहे...उस दौरान हमने बामुश्किल 2-3 बार ही नम्रता से बात की...लेकिन हाल ये रहता कि उसे देख पाने के लिए ना जाने क्या क्या करना होता
वो बारहवीं के बाद का दौर था...जब पता चला कि अब हमारा इस शहर से दाना पानी उठ गया है...पिताजी का ट्रांसफर हो जाने के कारण अब हम उसे कभी नहीं देख पायेंगे...और इसी गम के साथ हमने अपना शहर बदला...कुछ 8-10 बार हमने उसके घर के नंबर पर फ़ोन करके उससे बात करने की कोशिश की लेकिन जब कभी भी उसने फ़ोन उठाया हम कभी कुछ बोल ना सके...गले में घूँट निगलते ही रह गए...और उसके साथ ही दिन से महीने, महीने से फिर साल बने...धीरे धीरे एहसास हुआ कि शायद वह एकतरफा प्यार ही था...और जो वक़्त के साथ ख़त्म सा हो चला...
करीब 8 बरस बाद और अभी 1 बरस पहले एक सुखद संयोग हुआ...आगरा में, ये उस खुदा का ही करिश्मा था कि उस ऑटो में जिसमें मैं बैठा उसमें वो पहले से बैठी थी...दिल अजीब कशमकश में था और खुश भी...वो मेरे सामने थी और मैं बिलकुल बदल चुका था...उसने मुझे पहचाना नहीं...मैंने उसे हैलो बोला और उसके साथ ही ये भी कि शायद आपने मुझे पहचाना नहीं...बातों ही बातों में मैंने उसे पुराने दिनों की चन्द बातें...नीम का पेड़...वो छत याद दिलायी...पुरानी बातें जानकर वो मुस्कुरा गयी...'काफी बदल गए हैं आप, इतने दिनों बाद आप यूँ मिलोगे मैंने सोचा भी नहीं था'...ये जब उसने कहा तो दिल में सुखद एहसास सा हुआ...आगे की बातों में पता चला कि उसकी शादी पक्की हो चुकी है...मैंने मुस्कुराते हुए उसे बधाई दी...
उसके ऑटो से उतर जाने के बाद सब कुछ फ्लैश बैक में चला...फ्लैश बैक अच्छा लगा और उस दिन ये जानकर मुझे बुरा नहीं लग रहा था कि उसकी शादी पक्की हो गयी...हाँ अपने पुराने दिनों के फ्लैश बैक पर मैं मुस्कुरा रहा था...दिल मैं बस यही बात रह रह कर आ रही थी...''उफ़ मेरा पहला प्यारा सा एकतरफा प्यार"...
24 comments:
बहुत खूब लगता है वो बन्द संदूक मे अभी बहुत कुछ बाकी है जो धीरे धीरे बाहर आयेगा शुभकामनायें संदूक कि अगली प्रस्तुति के लिये इन्तज़ार रहेगा शुभकामनायेम्e
बहुत खूब लगता है वो बन्द संदूक मे अभी बहुत कुछ बाकी है जो धीरे धीरे बाहर आयेगा शुभकामनायें संदूक कि अगली प्रस्तुति के लिये इन्तज़ार रहेगा शुभकामनायेम्e
अनिल भाई..क्या बात है..पढ़ा.. ऐसा लगा जैसे कोई रोमांटिक सिनेमा चल रहा हो,
बेहतरीन प्रस्तुति...
मेरा पहला प्यारा सा एकतरफा प्यार"... amazing....pyaar dono taraf ho to maza deta hai...ik taraf ho to saza deta hai...behad khoobsurat likhte hai aap.....
वाह अनिल जी क्या बात है, लाजवाब रचना, बेहतरिन।
साइड दे यार..
यह वन वे प्यार का फ़ँडा है ।
लिखा बड़ा धाँसू है, इसमें कोई शक ओ शुबहा नहीं ।
बन्द संदूक में कितना कुछ है........
Ismen kitna sach hai?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
यह पूर्ण रूप से सच है काव्या शुक्ला जी
wow!!that was an honest and heartfelt description,very true..one sided love is very sad and painful.
आपको पढते हुए लगता जैसे कोई सामने फिल्म चल रही हो। सच कैसा लगता होगा जब ये सुखद संयोग होते है।
anil ji aap to bhut kamal ka likhte ho
bhut achchha laga aap ko pad kar
हाय जालिम ये कौन सा ...पन्न उलट दिया...ना जाने अब कितने दिनों तक हम यूं ही खोये खोये रहेंगे....बहुत खूब अनिल जी...
मैं तो यह मानकर चलता हूँ कि ज़िन्दगी में कई बार प्यार होता है.., और हर एहसास एक नए फूल की खुशबू की तरह...,
शायद इसलिए हम आज भी अविवाहित ही बैठे हैं..,
आप बहुत प्यारा लिखते हैं, लेकिन आपका टेम्पलेट तो बहुत ही प्यारा है। जमाये रहिए।
मासूम उम्र में इस तरह के एकतरफा प्यार होते रहते है ...जिन्हें बाद में याद कर हंसी आती है ...आपका लेखन रोचक है ..शुभकामनायें ..!!
अति रोचक शैली में जवानी के पहले पड़ाव के वन वे ट्रैफिक का अद्भुत नज़ारा पेश किया, बधाई.
वाह, गुलेरी जी की "उसने कहा था" याद आ गई!
pehle pyar ki baat hi alag hoti hai........ anilji...... apne PANDORA BOX mein se nikaali huyi yaaden share karne ke liye dhanyawaad........
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया...आपने मुझे पढ़ा और अपने विचार दिए
नादान सा प्यार ।
EK AUR LAJAWAAB RACHNA ....... ANIL JI AAPSE MIL KAR BAHOOT ACHHA LAGA .... APKI RACHNAAYE SACHMUCH DIL KO CHEER KAR NIKAL JAATI HAIN ...
anil ji,
maza aa gaya. ap ki is rachna ne hame shabd viheen kar diya hai..ek tarfa pyar bhi mahaan pyar hai.. shayad isiliye bachchan sahib ne kaha hai... "hridaya dekar hridaya paane ki aashaa vyarth lagaana kya".......waah!!!
क्या प्यार था आपका
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