मेरे प्यार के इज़हार का मुश्किल दौर

>> 28 August 2009

यूँ तो जिंदगी में कई मुश्किल दौर से गुजरा...और गुजरता हुआ यहाँ तक पहुंचा...पर जब अपनी आँखें बंद करके सोचता हूँ तो पता है सबसे मुश्किल घडी कौनसी लगती है...तुम्हें पा लेने और फिर खो देने के एहसास का पूर्णतः सच होना...तुम्हें पा लेने से पहले जब घंटो तुमसे गुफ्तगू करता था...वो तुम्हारी ढेर सारी बातें...जो कभी मुझे बच्चों की सी हरकतें लगती और कभी एकदम से बड़ों की सी...और इन सबके बीच वो ढेर सारे खुशियों के पल...उन्हें दामन में समेट लेने का मन करता...

कई रोज़ बाद जब एहसास हुआ कि ये मुझे क्या हो गया है...ये मेरा दिल आखिर तुम्हारे होने और ना होने पर अपनी शक्लो सूरत क्यों बदल लेता है...और तुम्हारी हाँ और ना की आशंकाओं से घिरे मेरे दिल का क्या हाल रहा उन दिनों...ये तो दिल ही जानता है...कभी दिल में ख्याल आता कि तुम्हारे चेहरे को अपने हाथों में लेकर...तुम्हारी आँखों में आँखें डालकर कहूँ कि "हाँ तुम ही तो हो जिसके होने का एहसास हरदम मेरे साथ रहता है"...कभी हथेलियों पर...कभी पीठ पर तुम्हारी उँगलियों से बनायीं गयी बेतरतीब सी शक्लों से...कभी जेब में पड़े तुम्हारे नर्म एहसास से...कभी कई घड़ियों की टिकटिक तक मेरी आँखों में तुम्हारी आँखों के एहसास से...

जब ख्याल आया कि तुमसे अपने उस एहसास को बयान करूँ...तो सचमुच वो सबसे मुश्किल घडी थी...एकदम मुश्किल दौर में पहुँच गया था...शायद मैं भी तुम्हारी ही तरह से कभी बच्चों सी तो कभी बड़ों सी हरकतें करने लगा था...

कभी मन करता कि तुम्हारे पास आकर तुमसे कह दूँ...क्या तुम यूँ ही हरदम मुझे ये एहसास कराओगी...क्या हरदम तुम यूँ ही मेरे साथ, मेरे पास रहोगी...और तेज़ दौड़ लगाऊं...तेज़ बहुत तेज़...ताकि तुम्हारे उस हाँ और ना की कशमकश से छुटकारा तो मिले...और दौड़ता दौड़ता हांफने तक...पसीने में चूर होने तक मुझे कुछ सुनाई न दे...कि कहीं तुमने ये तो नहीं कह दिया कि 'नहीं'...या फिर मुझे सोचने का वक़्त चाहिए...क्योंकि कुछ भी ऐसा ना सुनने के कारण मैं दौड़ना चाहता था...पसीने में तर बदर होने तक...उस पल लगा कि मैं भी कितना बच्चा हूँ...एकदम से...और जब तुमसे एक दिन ये बात कही तो कैसे तुम हंस दी थी...बुद्धू...शायद ऐसा कुछ कहा हो

एक पल लगा कि तुमसे बातों ही बातों में कह दूँ कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो...इस बात से भी ज्यादा...इस एहसास से भी ज्यादा...इस ख्वाब से भी ज्यादा...इस ख़याल से भी ज्यादा...सबसे ज्यादा...क्या तुम हरदम मेरे साथ रहोगी...यूँ ही...कभी बच्चों की सी तो कभी बड़ों की सी बनकर...पर इन सब बातों के दरमियान भी तुम मुझे खिलखिलाकर हँस दोगी जैसी सी लगने लगती...

जिस दिन, जिस पल...उस टिक टिक की आवाज़ वाली घडी के साथ मेरे दिल की आवाज़ सुनाई देने लगी...उस दिन एहसास हुआ कि अभी बोल दूँ...शायद रात के 2 बज रहे होंगे...उस खामोशी में भी एक प्यारी सी धुन सुनाई देने लगी थी...जो घडी की टिकटिक और मेरे दिल के तेज़ धड़कने से भी जुदा थी...उस एहसास की धुन जो उस पल हुआ था...सबसे प्यारी...बिल्कुल तुम्हारी तरह

पता है सबसे ज्यादा मुश्किल घडी कौन सी थी...जब मैंने अपने दिल की बात तुमसे कह दी थी...और फिर मोबाइल का नेटवर्क ना मिल पाने पर...फ़ोन के कट जाने पर...तुम्हारी हाँ और ना के बीच की कशमकश से मैं और मेरा दिल किस कदर दो चार हुआ...ये या तो दिल ही जानता है या वो एहसास खुद...पूरे 21 मिनट 37 सेकंड में मैंने वो सब एहसास बयान किये थे...जिसमें तुम बस सुन रही थीं और मैं बस उस एहसास को बयाँ कर रहा था

उस जिद्दी नेटवर्क से लड़ता हुआ...उसे मनाता हुआ...कई जतन से जब मोबाइल के बटन दबा रहा था...तब उस दौरान तुम्हारी कॉल का आ जाना...सच पूंछो तो "मेरे दिल की हार्ट बीट एकदम से पीक पर पहुँच गयी थीं"...उस पल जब तुमने कहा कि "हाँ"...तुम जानती हो उस एक शब्द को सुन लेने भर से मैं और मेरा दिल सातवें आसमान पर था...ऐसा लगा कि सुबह की उस नर्म घास की पत्तियों पर ओस की बूंदे मेरे पैरों को छू रही हों...पहाडों की छत पर खडा मैं तुम्हें बाहों में ले ठंडी ठंडी हवा का आनंद ले रहा हूँ...सच वो पल मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल था...और वो घडी सबसे मुश्किल की घडी...सच तुम्हारी हाँ ने मेरी जिंदगी के मायने ही बदल दिए...

23 comments:

Ashish (Ashu) 28 August 2009 at 21:24  

अहा, मॆं तो आप की लेखनी का दिवाना हू पर हर बार कमेंट करने की सोचता हू पर पहला कमेंट का chance कोई ऒर ले जाता हॆ आज इतने दिनो बाद भगवान ने आखिर मेरी सुन ही ली..धन्यवाद आपको...

संगीता पुरी 28 August 2009 at 21:33  

बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति .. आपका लेखन तो कमाल का रहता ही है !!

डिम्पल मल्होत्रा 28 August 2009 at 21:40  

hmesha ki tarah interesting..han or na dono ho zindgee ke mayne badal deti hai...

mehek 28 August 2009 at 22:22  

dil bhi na,hamesha kashmakash mein fasna chahta hai,man ke bhav aise nikle hai jaise har dil ko lage ye uski hi kahani hai.bahut sunder.

vikram7 28 August 2009 at 22:27  

सुंदर अभिव्‍यक्ति

अनिल कान्त 28 August 2009 at 23:40  

ओम जी, संगीता जी, राज जी, महक जी, विक्रम जी आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया

Udan Tashtari 29 August 2009 at 00:33  

बेहतरीन बहता लेखन है अनिल, वाह!

Gaurav Misra 29 August 2009 at 02:06  

bahut dino se koi comment nahi ki bas aapki rachnaayein chupke se padh jaya karta tha...kyonki har baar ye likhna ki "behatreen Lekh" kuch jancha nahi..aapke lekh ko kisi ke certificate ki jarurat hi nahi hai...You are always at your best...Keep it Up.

Unknown 29 August 2009 at 09:33  

जितना खूबसूरत एहसास.........
उतनी ही खूबसूरती के साथ बयां भी किया गया..........
अभिनन्दन !

सुशील छौक्कर 29 August 2009 at 09:57  

बडी खूबसूरती से अपने भाव कह देते है आप। बहुत सुन्दर।

pallavi trivedi 29 August 2009 at 13:10  

ऐसी हाँ और न के बीच की स्थिति से न जाने कितने लोग रोज़ दो चार होते होंगे...खैर इसका अपना आनंद है! अच्छा लिखा आपने...

Gyan Dutt Pandey 29 August 2009 at 13:33  

.तब उस दौरान तुम्हारी कॉल का आ जाना...सच पूंछो तो "मेरे दिल की हार्ट बीट एकदम से पीक पर पहुँच गयी थीं"
-------
ऐसी किसी फोन काल से हम कभी कृतार्थ न हुये! :(

अनिल कान्त 29 August 2009 at 13:42  

ज्ञानदत्त पाण्डेय अंकल जी आपकी बातों से लग रहा है कि आपको बहुत ज्यादा ही अफ़सोस है :) :)

ओम आर्य 29 August 2009 at 14:42  

बहुत ही खुब्सूरती से एहसासो को उकेरा है लाज़वाब.......बधाई

निर्मला कपिला 29 August 2009 at 14:51  

उस "हाँ" का कमाल आपकी अभिव्यक्ति मे ,शब्दों मे और शब्दों के बीच के प्रवाह मे बखूबी झलक रहा है बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति के लिये

somadri 29 August 2009 at 19:25  

peak of izhaar... kamal ka lekhan

Nitish Raj 30 August 2009 at 04:11  

जैसी उम्मीद थी वैसा ही आपने लिखा पर ना जाने क्यों फोंट लोड होने में दिक्कत आई।

रश्मि प्रभा... 30 August 2009 at 13:28  

zindagi mein pahiye lag jate hain....pyaar pankhon se bhar deta hai

विधुल्लता 30 August 2009 at 16:56  

साँस रोक कर एक दरिया से गुजर कर ...बस भाव को अंजाम तक पहुंचा दिया आपने ...आपका लिखा....अच्छा लगता है एक सुकून भरा लेखन बधाई

Bhavya.B 31 August 2009 at 18:14  

Again your romantic magic ...!!!

दिगम्बर नासवा 1 September 2009 at 13:54  

AAPSE AB MIL LIYA HUN TO AAPKO PADHTE HUVE AAPKA CHEHRAA MERE SAAMNE GHOOM JAATA HAI ......... AAPKI KAHAANI KE PAATRON MEIN AAPKO DHOONDHTA HUN ANIL JI ........ HAMESHA KI TARAH LAJAWAAB CHALCHITR KI TARAH LIKHA HAI...

रज़िया "राज़" 4 September 2009 at 11:17  

कहते हैं ना कि दिल के अहेसास जब कलम की स्याही बनकर कागज पर उतर आते हैं तो मानों स्याही ख़ून का लाल रंग उन शब्दों में डाल देती है। आपकी रचना ने मन को छू लिया।

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