नन्हें मन की नन्ही दास्ताँ

>> 10 August 2009

रात का सन्नाटा जब पसरता है तो वो अपने साथ एक अजीब सी खामोशी लेकर आता है...उस सन्नाटे के साथ शोर मचाते हुए तमाम ख़याल भी आते हैं...रात का भी अपना वजूद है वो सबको अपना आँचल देती है...आप दिल खोल कर सपने बुन सकते हैं...पूरे हो सकने वाले भी और ना पूरे हो सकने वाले भी...ये दुनिया का सिस्टम भी अजीब है...यहाँ सपने भी किश्तों में देखे जाते हैं...जब छोटे होते हैं तो अलग सपने...जब जवान होते हैं तो अलग...बूढे होते होते तो शायद देखे गए सपने भी बूढे हो चलते हैं...रह जाती हैं तो वो यादें...हाँ वही पुरानी यादें...कभी कभी यादें सपनों से भी ज्यादा प्यारी लगती हैं...जिन्हें रात अपने सर पर पोटली में बाँध कर लाती है और धीरे धीरे उसकी गांठें खोलती है....हाँ यादें...

ना जाने क्यूँ ये रात आज कुछ कहना चाहती है...आज इसने पोटली मेरे सामने रख दी है...आज उसने मुझे गांठें खोलने को दी हैं...ऐसा हर बार नहीं होता...ना जाने क्यों आज रात को मुझ पर इतना प्यार आया है...शायद आज ये उसका रूमानी अंदाज़ है

बचपन में क्लास की 'सेकंड लास्ट रो' में एक लड़का बैठा करता था...उसे उस वक़्त बैंच से उतना ही प्यार था जितना जवानी में आशिक को अपनी महबूबा से होता है और बुढापे में पति को अपनी बीवी से...अपने में खोया सा रहने वाला...और इस बात से डरने वाला कि टीचर कोई सवाल ना पूंछ बैठे...वो हमेशा इस उधेड़बुन में रहता कि उसे जो पता है क्या वो सही है...या कहीं वो गलत तो नहीं...अगर गलत हुआ तो फिर क्या होगा...'समटाईम्स पीपुल से Shy Nature का है'...गणित में कमजोर...क्यों था उसे भी नहीं पता...लेकिन उसे गणित से कभी डर नहीं लगा...सवालों के हल के मामले में वो हमेशा 'कन्फ्यूज्ड' रहता...दोस्त भी गिने चुने...बामुश्किल एक या दो

कहते हैं जो बीत जाता है वो भूतकाल कहलाता है...और जिसे हम याद कहते हैं उसका सम्बन्ध उसी से होता है...अगर भूत नहीं तो वो बुरी या अच्छी याद भी नहीं रहेगी

उसे एक बार उसके टीचर स्टेज पर खडा कर देते हैं और सबके सामने कुछ सुनाने के लिए बोलते हैं...कुछ भी लेकिन सुनाना है...कोई कविता, कहानी, या और कुछ...कुछ भी...मगर सुनाना है...वो तमाम चेहरे देखता है जो सिर्फ उसे देख रहे हैं...उसे घूर रहे हैं...वो कुछ भी नहीं सुना पाता...कुछ भी नहीं...क्यों...उसे खुद नहीं पाता...वो सोचता है कि उसे तो ये भी आता था...वो भी आता था...फिर क्यों...क्यों नहीं सुनाया उसने...गणित में 17 और 18 नंबर लाकर वो बस पास भर हुआ है...जबकि उसे लगभग लगभग सभी सवाल आते थे...फिर भी वो ज्यादा नंबर नहीं ला सका

बच्चों की नज़र में वो एक बुद्धू लड़का था...भीड़ का पिछला हिस्सा...उसने ना जाने क्यों एक दिन अपनी बैंच पर बैठने वाले लड़के से कहा कि मैं क्लास में प्रथम आने वाले फलां लड़के से भी ज्यादा नंबर लाऊंगा...और उस लड़के ने सबके सामने इस बात को कहकर कैसे उसकी खिल्ली उडाई...वो इस बार के 'फाइनल' में भी जैसे तैसे पास भर हुआ है

कहते हैं कुछ यादें ऐसी होती हैं जो मैमोरी से फ्लैश आउट नहीं होती...चाहकर भी नहीं...क्योंकि वो जिंदगी का हिस्सा बन जाती हैं

वक़्त ने करवट ली है...अब वो 9th क्लास में आ गया...ना जाने क्यों सब बदल सा रहा है...उसे पढने में मजा आता है...उसे नए गणित के अध्यापक मिले हैं...अब वो कन्फ्यूज्ड नहीं रहता...पता नहीं क्यों 'लाइट' के चले जाने पर भी वो बाहर जाकर बच्चों के साथ नहीं खेलता...उसे बस पढना है...उससे कोई नहीं कहता कि तुम इतना पढो...पर वो पढ़ रहा है...क्लास टीचर 2 बच्चों को सामने खडा करके बोलते हैं...ये बच्चे बहुत होशियार हैं...देखना यही प्रथम आयेंगे...वो उन दोनों में से कोई नहीं है...आज उसने किसी से नहीं कहा कि वो फलां लड़के से ज्यादा नंबर लायेगा

आज 'हाफ ईयरली एग्जाम' का रिजल्ट आया है...उसके गणित में पूरे 100 में से 92 नंबर आये हैं...क्लास टीचर आज सामने खड़े होकर मोनिटर से पूंछते हैं कि क्लास में फर्स्ट कौन आया है...मोनिटर एक लड़के का नाम बताता है...वो आज भी सेकंड लास्ट रो में बैठा अपना नाम सुन रहा है...ताज्जुब है उसे खुद नहीं पता कि वो क्लास में फर्स्ट आया है...क्लास टीचर उस लड़के को बुलाते है...और उसे एक अनोखी दृष्टि से देखते है...शायद उसने कुछ अनोखा कर दिया है...उसके बताये हुए दोनों लड़के 'उस लड़के' को देख रहे हैं...उनमें वो फलां लड़का भी है...जिससे ज्यादा नंबर लाने के लिए उसने कुछ साल पहले बोला था...ये भी एक अजीब इत्तेफाक है...ना चाहते हुए आज वो उससे ज्यादा नंबर लाया है...नहीं सबसे ज्यादा...क्यों...क्योंकि उसके गणित में सबसे ज्यादा नंबर हैं...जितने दूर दूर तक किसी के भी नहीं...

वक़्त बदल रहा है...अब क्लास का हर लड़का उसे चाहता है...उसके पास आकर सवालों का हल पूंछता है...अब वो स्टेज पर बुलाया जाता है तो हमेशा कुछ ना कुछ सुना देता है...क्लास टीचर ने उसे सबसे आगे बैठने को बोला है...वो आगे बैठा है...टीचर की नज़रों से नज़रें मिलाकर...आज वो चाहता है कि टीचर उससे सवाल पूंछे...आज वो बिलकुल भी कन्फ्यूज्ड नहीं...बहुत कुछ बदला...लगातार अब वो क्लास में फर्स्ट आता है...कुछ बदला है...हाँ उसका आत्मविश्वास...कब और कैसे आ गया...उसे पता ही नहीं चला...बस उसे इतना पता है कि वो लगातार पढ़ा है...उसे पढना अच्छा लगता है...अब गणित की वजह से उसे पूरा स्कूल जानता है...

एक चीज़ उसकी नहीं बदली...उसका एक दोस्त जो तब भी उसका सबसे अच्छा दोस्त था और आज भी उसका सबसे अच्छा दोस्त है...हर बुरे दौर में भी और हर अच्छे दौर में भी वो जैसे का तैसा है...उसने बहुत जल्द जान लिया है कि दोस्ती किसे कहते हैं और दोस्त का क्या मतलब है...बिना किसी के बताये...और ये भी कि परिश्रम और लगन हमेशा अच्छे परिणाम देते हैं...और कुछ भी बता कर अलग से करने की जरूरत नहीं पड़ती

आज उसे इन यादों के सहारे 'फ्लैश बैक' में जाने का मौका मिला है और क्लास में खडा हुआ मोनिटर जिस लड़के का नाम क्लास टीचर को बता रहा है...उसकी आवाज़ की खनक मेरे कानों में आज भी रोमांच पैदा कर रही है..."सर जी अनिल कान्त फर्स्ट आया है"

25 comments:

Udan Tashtari 11 August 2009 at 01:13  

बहुत उम्दा संस्मरण-बेहतरीन फ्लैश बैक का प्रवाह!! आनन्द आ गया.

निश्चित ही कुछ यादें जिन्दगी का हिस्सा बन जाती हैं.

संगीता पुरी 11 August 2009 at 07:37  

अच्‍छी यादें जिंदगी से जुडी रहनी चाहिए .. बुरे को दिमाग से हटा ही देना अच्‍छा रहता है .. अपनी सुंदर यादों को बेहतरीन अभिव्‍यक्ति दी है .. बहुत बढिया लगा पढकर !!

संजीव गौतम 11 August 2009 at 08:09  

अनिल भाई ये कहानी थी या अपने बारे में खैर थी हमेशा की तरह बेहतरीन एक सांस में पढ जाने वाली.

अनिल कान्त 11 August 2009 at 08:21  

जी ये मेरे बचपन की नन्ही सी दास्तान थी

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद 11 August 2009 at 10:41  

बचपन के दिन भी क्या दिन थे.....

Vinay 11 August 2009 at 12:05  

लेखनी में दम है भाई

दर्पण साह 11 August 2009 at 12:11  

"निश्चित ही कुछ यादें जिन्दगी का हिस्सा बन जाती हैं."
aapki aur sameer ji ki baatone se seh mat hoon...

aapki lekhan pratibha ka to pehle se hi loha maanta hoon...

kuch chuninda lines jo pasand aaiye aur laga kahin na lahin main bhi juda hua hoon:
"...wo aaj bhi 2nd last row main...."

"...ab ganit ki wajah se..."

aur

"ek cheej uski abhi bhi nahi badli.............karne ki zaroorat hi nahi padti"

acche lekhan hetu badhai sweekarein.

Sim 11 August 2009 at 12:13  

hmmmmm....i am speechless again ! Love to read your posts....you expess small little details/memories in such beautiful words.
Regards
Sim

Arshia Ali 11 August 2009 at 12:18  

इसीलिए यादें अक्सर याद आती हैं.
{ Treasurer-T & S }

दिगम्बर नासवा 11 August 2009 at 13:23  

BAHOOT KHOOB ANIL JI.....BACHPAN KI YAADEN JAB KHEENCH KAR VAAPAS LE JAATI HAIN TO KAI KISSE DIL MEIN MACHALNE LAGTE HAIN......
KHOOBSOORAT FLASH BACK HAI AAPKA......

परमजीत सिहँ बाली 11 August 2009 at 13:33  

बहुत उम्दा संस्मरण।बहुत बढिया लिखा है।बधाई।

richa 11 August 2009 at 14:25  

hmm... amazing flashback... बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति... सच है आत्मविश्वास से बड़ी कोई ताक़त नहीं है दुनिया में... जिसके पास आ गया वो जग जीत सकता है...

ओम आर्य 11 August 2009 at 14:39  

behad khubsurat hai dastaan ...........kya kahe

vandana gupta 11 August 2009 at 15:56  

zindagi ki kuch yaadein aisi hi hoti hain ........na bhoolne wali.

निर्मला कपिला 11 August 2009 at 17:42  

यादेण तो जीवन के हर पल की आती जाती रहती हैं मगर कुछ अपनों से जुडी यादें हर पल याद आती हैं और आनी भी चाहिये तभी तो पता छलता है कि कौन आपके अधिक करीब है बहुत सुन्दर संस्मरण बधाइ और शुभकामनयें

प्रकाश पाखी 11 August 2009 at 19:13  

अनिल जी,
आप की हर रचना....पाठक को अपने करीब महसूस होती है..ऐसा लगता है की अपनी कहानी हो

डॉ .अनुराग 11 August 2009 at 20:37  

रवानगी दिख रही है ...

PD 12 August 2009 at 14:40  

bhai ji, kiski kahani suna rahe ho? apani ya meri? bas salon ka antar kuchh aur bada hai.. aap 9th me ye mithe shabd sune the aur main 12th ke baad.. :)

sujata sengupta 12 August 2009 at 17:34  

Very sweet post, i think its about your own childhood isnt it?

mehek 12 August 2009 at 20:10  

sunder post aur sunder yaadein.

Unknown 12 August 2009 at 23:08  

aapki yaadon bhari post ne dil mein ghar kar liya

somadri 13 August 2009 at 13:05  

anil ko first aane ke liye badhai..
ek behtarin flash-back---yani sansamaran tha

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