मेरा बचपन और वो मेरा गरीब दोस्त
>> 04 May 2009
कुछ चीजीं हमेशा अच्छी लगती हैं ...जैसे मम्मी का प्यार, भाई बहन के साथ नोंक झोंक.... और जैसे बचपन की यादें ...जब याद आ जाती हैं तो आये हाय ....यूँ लगता है मानो...बचपन सामने खडा हो गया हो आकर...जैसे बारिश हो रही हो और वो सामने से बुला रहा हो ...कि आओ चलो भीगें चलकर ...कागज़ की एक नाव तुम बनाना और एक मैं बनाऊंगा ...देखें किसकी ज्यादा देर तैरती है .... हाँ सचमुच कभी कभी ऐसा ही तो होता है ....
कभी कभी तो लगता है कि जैसे बचपन को खोकर बहुत बड़ी गलती की ...क्यूँ भला हम इतनी जल्दी बड़े हो गए ...और जब छोटे थे तो सोचा करते थे बड़ी कब हम बड़े होंगे ...उफ़ कैसे खयाली पुलाव बनाते थे
और वो जब माँ टिफिन में खाना रखकर स्कूल भेजा करती थी ...तो कैसे हम दोस्त लोग अपनी अपनी टेबल के नीचे ही टिफिन खोलकर ...एक एक टुकडा खाते थे ...बड़ा मज़ा आता था ...आधा तो इंटरवल के आने से पहले ही चट कर जाते थे .....अब याद आता है तो हंसी आती है ....कि बचपन भी क्या अजीब चीज़ थी ....क्या दौर था ...क्या आजादी थी ...खुलकर जीने की ... बस स्कूल जाओ ...स्कूल से आओ ...और माँ के आँचल तले जिंदगी बिताओ ....अब तो माँ का चेहरा देखे बिना भी कभी कभी महीनो बीत जाते हैं .... कभी वो दिन भी हुआ करते थे ...जब सुबह शाम हम बस फरमाइशें करते रहते थे ...और माँ हमारी हर फरमाइश पूरी करती रहती थी ...
एक दोस्त हुआ करता था मेरा ....मेरे बचपन का हमसफ़र....दिल का साफ़ ....बिलकुल नेक और शरीफ .... हम साथ साथ स्कूल में रहते और साथ ही खाना खाते .... बहुत चाहता था मुझे ...और हम मैदान में क्रिकेट भी साथ खेलते थे ....बहुत अच्छा लगता था उसके साथ रहना ...हम बिल्कुल पक्के दोस्त हुआ करते थे .... कभी कभी हम आपस में होम वर्क भी शेयर किया करते थे....और खाना तो कौन किसका खाता था पता ही नहीं चलता ..... पर जब हम पाँचवी से छटवीं क्लास में पहुंचे तो कुछ दिन तक तो वो साथ रहा
लेकिन कुछ रोज़ बाद उसका आना बंद हो गया ....मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था ...उसकी बहुत याद आती थी ... कई दिनों तक मैं उदास रहा ...वो नहीं आया ...एक रोज़ मैं घुमते घामते ....पूंछते पांछ्ते उसके घर पहुँच गया ...वो मुझे देख कर बहुत खुश हुआ ...पर उसके घर के हालात अच्छे नहीं थे
उसने बताया कि अब वो स्कूल नहीं आ सकेगा ...अब वो अपने पिताजी के साथ सिनेमा हॉल जाया करेगा ...वही नौकरी करेगा ....उसकी इस हालत पर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था ...दुःख हो रहा था ....उसका चेहरा बहुत मायूस था ...एक दुःख साफ़ झलक रहा था कि अब वो पढ़ नहीं सकेगा .....उस रोज़ मैं मायूस और सुस्त क़दमों से घर वापस लौटा ....कई दिनों तक मेरा कोई दोस्त नहीं बना ...हमेशा सोचता रहता कि कितना होशियार था वो ..पर गरीबी ने उसे पढने नहीं दिया ....और शायद उसके बाप ने भी ....मैं जानता था कि वो भी बड़े होकर सफल और बड़ा आदमी बनता ....लेकिन अब उसे वहां सिनेमा हॉल में ड्यूटी बजानी पड़ेगी .....
कई रोज़ बाद मैं उसके घर फिर गया पर वो मिला नहीं ...वो ड्यूटी पर गया हुआ था ...मैं जब भी उससे मिलने जाता वो न मिलता ...उसके ड्यूटी का टाइम बदल जाता था ....मैं हर बार उदास होकर वापस लौटा ...फिर धीरे धीरे मैंने जाना बंद ही कर दिया ....पर जैसे जैसे मैं बड़ा हुआ ...मैं यही सोचता कि कब गरीबी कम होगी ..कब लोग शिक्षित हो सकेंगे ..भर पेट खाना खा सकेंगे ....कब उस मेरे दोस्त की तरह के बच्चे स्कूल में रहकर पूरी पढाई कर सकेंगे ....मगर अफ़सोस कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया ...आज भी जब देखता हूँ तो कोई न कोई बच्चा काम करते हुए मिल जाता है ....
उसके लिए बचपन की यादें क्या होती होंगी ...दिल सोचकर भी घबराता है ....कभी कभी सोचते हुए पलकें भी गीली हो जाती हैं ...आज जब मैं अपनी माँ से दूर हूँ ....उनका चेहरा तक देखने को नसीब नहीं होता ...जब तब 1-2 महीने बाद घर जा पाता हूँ ...तब लगता है कि इंसान और इंसान की मजबूरियाँ भी बड़ी अजीब चीज़ होती हैं .... जिंदगी कब किससे क्या क्या कराये पता नहीं चलता ....
अभी अभी ऐसा लगता है कि जैसे बारिश हो रही हो और वो मेरा दोस्त बारिश में भीगता हुआ मुझे हाँथ देकर बुला रहा हो ...कि आ चल खेलते हैं ...चल एक दौड़ लगाते हैं .....मगर फिर दूजी ही ओर वो बारिश अजीब सी लगती है...मेरी पलकें बिना बारिश में जाए भी गीली हो जाती हैं
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38 comments:
प्रिय मित्र
आपकी उत्कृठ रचनाओं को प्रकाशन के लिए अवश्य ही भेंजे। पत्रिकाओं के पते के लिए मेरे ब्लाग पर पधारें।
अखिलेश शुक्ल्
http://katha-chakra.blogspot.com
http://rich-maker.blogspot.com
खोये न बचपन कभी होती सबकी चाह।
परिवर्तन के साथ ही जीना है बस राह।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
अगर सब कुछ
जहां लगे अच्छा
वहीं रूक जाए तो
समझ लें
अच्छे का मजा
तनिक भी न आए
उससे बुरा उसे कोई
न बतलाए।
बचपन की यादें बडी ही खूबसूरत होती हैं. और यादों को याद करके भी इंसान बचपन मे पहुंच जाता है. बहुत बढिया लिखा.
रामराम.
bahut sunder likhte hain aap...yakeenan dil se..
keep it upp...
मेरा सामान, मुझे लौटा दो..
sabke paas aise dost hote to sab aap jaise achhe insaan ho paate, shailee behataree hai, hmesha kee tarah...
बहुत सुन्दर लिखा है आप ने.
गुलमोहर का फूल
A very good post. Bahut hi sahi baat sidhi aur dard bhare lafzon se kaha hai aapne. There are many children who are robbed of their human rights every day in cities and towns inspite of the existing law which forbids child labour. A very well written post
bhut sundar likha hai
bachpan ki yade sda mithi hi hoti hai kyoki bchpan sachha aur masum hota hai .
वाह क्या खूब लिखा है आपने!!!
जीवन की सुनहरी यादों तथा कड़वी सच्चाई का एक साथ चित्रण शोभनीय है.
वैसे मेरे विचार में इंसान कभी भी अपने वर्तमान से खुश नहीं होता, अतीत सदा ही उसे लुभाता है और जहाँ तक भविष्य की बात है तो वह अज्ञात एवं अनिश्चित है.
हमसफ़र यादों का.......
ये बचपन की यादे भी बड़ी जिद्दी है.. कितना भी रोको आ ही जाती है..
वैसे हिसाब किताब की जगह लेखा जोखा देखना सुखद रहा.. बहुत कम लोग ऐसा करते है.. ये आपकी परिपक्वता दर्शाता है.. शुक्रिया..
सुन्दर यादें सुन्दर पोस्ट .
आपके इस लेख ने मुझे मेरे बचपन की एक दोस्त की याद दिला दी। पता नहीं वो आज कहाँ है...........किसी दिन उसके बारे में लिखूंगी
कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन्।काश एक बार फ़िर बचपन लौट आता,तो फ़िर कभी बड़ा नही होना चाहता।बहुत बढिया अनिल बहुत बढिया।
बचपन की यादें तो हमारे पास होंगी, पर इतना बढ़िया लिख नहीं पायेंगे!
बहुत सुन्दर।
कहानी बहुत ही बढिया,आपकी हर रचना ज़िन्दगी के करीब होती है.....
भाई, हमारे बचपन की भी कई यादें ताज़ा हो गईं।
गीली तो हमारी आंखे भी हो गईं।
sach kaha...kuchh cheeje kabhi purani nahi hoti..! kuchh yadeN kuchh log.. kuchh bateN
गरीबी बचपन को जल्दी ही निगल जाती है। बहुत दुखद प्रसंग।
घुघूती बासूती
har ek ke jivan main aisa koi pal hota hi hai.kabhi unhe yaad karke ek mithi si muskaan hoton par khil jaati hai,to kabhi aankhen nam ho jaati hain.aisa hi kuch milajula sa anubhv hua.kahna to bahut kuch tha lekin.......itne se hi santosh karti hoon.
कुछ पुरानी यादें ताजा कर दी। लंच से पहले खाना खत्म और फिर लंच में निकल गए...... । अनिल भाई हालत क्या से क्या कर देते है जिदंगी में। कभी मासूमियत खो जाती है और कभी खामोशी छा जाती है .............। अच्छी पोस्ट हमेशा की तरह।
बचपन की भी कई यादें ताज़ा हो गईं
...बीते हुये दिन वो मेरे प्यारे पलछिन,,,
जितनी सुंदर पोस्ट उतनी ही सुंदर तस्वीर
bahut sunder anil..... phir se jee liye purane din ek baar
वाह!क्या खूब लिखा है आपने!
बचपन की भी कई यादें ताज़ा हो गईं.....
achchhi aur vishvasniy achna.
aapko yaadon ka jharokha bahut bhaya.
aap mere blog par aaye , comment kiya hardik dhanyawaad, punah padharen.
बचपन याद करना हमेशा सुखद होता है,
अनिल भाई,
यह क्या हो गया..
पढ़ के मन में क्रान्त हो गया..
कुछ भूला सा मुझे भी,
भूले से याद आ गया...
मेरे बचपन से कुछ पल आ गए..
और आँखों के सामने नाच गए..
~जयंत
आपका लिखा अभिभूत कर गया । गरीबी हमारे समाज में एक अभिशाप है जो कितनी ही जिंदगियों को असमय ही ग्रस लेता है ।
bahut sunder ...
मार्मिक वर्णन। आपकी दोस्ती को मेरा सलाम पहुंचे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut badiya :)
Aapke likhne ke saral tarike ne mujhe Prem Chand jee ki yaad dila di...ab isse jyada aur kya bol sakta hu.....
यादों में छिपे कुछ भाव बेहद नाजुक होते हैं.
aapne shbdo ki gahrai me jakr duniya ki kadvi sachai ko bataya he such yah garibi insan ki jindgi k sath khilvad kar rahi he.....
par jo bhi ho shbdo ka meal bahut hi acha he
Harshad Road Lines
Harshad Gyeandari Bhandari
Rajgarh (Dhar)454116
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