जिंदगी ख़त्म होती सी तेरे खतों के दरमियाँ
>> 25 May 2009
दिल के रिश्ते कब बन जाते हैं पता ही नहीं चलता ...शायद वो एक मीठा सा और प्यारा सा एहसास ही होता है जो हमें यकीन दिलाता है ...कि हाँ यही है ...जिसे देखते ही न जाने क्यूँ दिल को कुछ हो जाता है ...हमारा रोम रोम खिलने लगता है .... उसके सामने आते ही ना जाने क्यों हमें ऐसा कुछ एहसास होने लगता है जो और किसी के आने पर नहीं होता ...हाँ यही तो इश्क है ... जो दिल का रिश्ता होता है ...एहसास का रिश्ता होता है
और जब इस एहसास के रिश्ते को नाम देने का मन करता है तो कैसे हम सकुचाते से हैं ..शरमाते से हैं ...सोचते हैं कि ऐसा क्या कहें कि ये भी हमारे दिल का हाल जान सके ...हम जान सकें कि क्या वो भी हमारे लिए ऐसा महसूस करता है क्या ...या क्या वो हमारे इस दिल के रिश्ते को कबूल करेगा/ करेगी ....हाँ ऐसा ही तो होता है ....शायद तभी ये ख़त का सिलसिला चला होगा ...जो जुबान कहने से लड़खडाए ...उसे ख़त में कह दो ...और छोड़ दो उस खुदा की मर्ज़ी पर ...हाँ शायद हम में से बहुत से ऐसा ही तो करते हैं ...ना जाने कितने ही होंगे जिनका प्यार एक ख़त से ही परवान चढा होगा ....या कई ख़त....
हाँ हमारा रिश्ता भी तो ऐसा ही था ...दिल का रिश्ता ...एहसास का रिश्ता ...कैसे तुम मेरे सामने आते ही अजीब सा हाल कर लेती थी ... याद है तुम बहुत खुश हो जाया करती थीं ... और मैं इस बात से डरता कि अगर मैंने तुम्हें अपने दिल का हाल बयां कर दिया तो कहीं तुम बुरा ना मान जाओ ...क्या तुम भी वही सोचती हो जो मैं सोचता हूँ ...
क्या तुम्हारा हाल भी वैसा ही होता है जैसा मेरा ...हाँ यही तो सोचा करता था मैं ...
और फिर एक रोज़ तुमने वो मुझे अपना पहला ख़त दिया था ...याद है न तुम्हें ...चुपके से रख दिया था मेरी उस किताब के दरमियान जो तुमने मुझे गिफ्ट की थी ...शायद यही तरीका सही था ... और किस तरह तुमने उन शब्दों के माध्यम से अपने दिल का हाल बयान किया था ...सच आज भी मुझे जब तब याद आ जाते हैं ....
याद है मुझे तुम्हें ख़त लिखना अच्छा लगता था ....और जब जब मैंने तुम्हें ख़त लिखा ...तो कैसे तुम उसे अपने सीने से लगाये रहती थीं ...सच कहूं तो उस ख़त से मुझे जलन सी होने लगती थी ...भला ये क्या बात हुई ...महबूबा हमारी और सीने से वो निगोड़ा ख़त लगा हुआ है ...दूर होने का नाम ही नहीं लेता ....और मेरे ये कहने पर तुम कैसे खिलखिला कर हँस दी थीं .... कसम से ये ख़त कभी कभी तो लगता है आशिकों के सबसे बड़े दुश्मन होते होंगे ....
और उस रोज़ का भेजा हुआ तुम्हारा ख़त ...उस ख़त ने मेरी दुनिया ही बदल दी ....जिसमें तुमने अपने दिल का हाल रखा था ...शायद आखिरी बार ...नहीं नहीं मुझे कोई गिला नहीं तुमसे ....गिला हो भी कैसे सकता है .... तुम और तुम्हारी वो मजबूरियां ....काश कि मैं ही उस पल कुछ कर पाया होता ...तो आज यूँ तन्हा और अकेला न होता ....
हाँ वो एक ख़त ही था जिसने तुम्हें मेरे दिल के इतना नज़दीक कर दिया कि अब दूर होने का नाम ही नहीं लेता ...तुम आज भी दिल मैं बसी हुई हो ...वो एहसास और वो हमारे दिल के दरमियान की जुगलबंदी ... तुम्हारे उस आखिरी ख़त ने भले तुम्हें मुझसे दूर कर दिया हो ...लेकिन तुम इस दिल पर आज भी राज़ करती हो ...तुम्हारा एहसास और वो दिल का रिश्ता ख़त्म ही नहीं होता ...
हाँ शायद ये एहसास के रिश्ते ...ये दिल के रिश्ते एक बार जुड़ जाने पर यूँ ख़त्म नहीं होते ....
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21 comments:
ये हैं एहसास के रिश्ते, इन्हें कोई नाम मत देना..
हो जैसे फूल में खुशबू, ये हर इक दिल में रहते हैं.
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
-बेहतरीन लेखन.
बहुत खूबसूरत...
क्या बात है अनिल!
achcha lekh hain
अनिल जी,
बहुत खूबसूरत लिखा है. जैसे आप ने अपने खयालातों को एक एहसासों की कविता में पिरो दिया हो..हमारे अपने दिनों की याद ताजा कर दी है आप ने. पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा मन कोई छू लिया आप ने.
अनिल जी,
आपने हर जंवा दिल की कहानी लिख दी. कई लोंगो को अपनी जवानी याद आ गई होगी और हम जवानों को कुछ बीते हुए लम्हे :)
Sach hai rishte khatam nahin hote.
कसम से ये ख़त कभी कभी तो लगता है आशिकों के सबसे बड़े दुश्मन होते होंगे ....
वाह अनिल जी...............खूबसूरत लिखा है......अनोखे दर्द का एहसास छोड़ गयी आपकी पोस्ट
अनिल् तुम मे इतनी संवेदनशीलता और इस उम्र मे आई कहाँ से बहुत ही सुन्दर लिखते हो दिल से् शुभकामनायें
Lagata hai ki patron se gahara rishta hai!!!!!!!!
Bahut hi achhi lekh!! Liked it a lot..
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया !!
बहुत ही सुन्दर और प्यारे जज्बात लिखते हो।
तुम्हारे खतों को पढ़ने को दिल करने लगा है अनिल...
प्रिय अनिल,
यह अहसास ऐसा ही ताजिन्दगी पीछा नही छोड़ता। उम्र के किसी भी पड़ाव में यह खुश्बू तरबतर कर देगी या हाथों से आती रहेगी।
किसी मश्हूर गज़ल की पंक्तियाँ याद आ रही हैं :-
" प्यार का पहला खत लिखने मेंववक्त तो लगता है "
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
हूँ, आपतो छा गये भइये।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
sach kahu
is se age kuch kaha hi nahi ja sakt ....ye ahasas ke rishte hai jo ho to ek pal lage or na ho to jamane gugar jaye
bhut hi achchha likha hai
आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया ...आशा करता हूँ की आप सब यूँ ही अपना स्नेह बनाये रखेंगे
wah wah anil ji....bahut khub...
yeh risthey samay ke saath kabhi dhundhale nahin hote...yeh apne ehsaas ko hamesha sajeev rakhte hain...pata hain kaise....yadoon ke khajane se....
ek mashoor gane ki kuch lines hain:-
door rehke bhi mujhse,tum meri yadoon mein rehna,kabhi alvida na kehna...
dil ke rishte ek baar jud jane pe kabhi khatam nahi hote.....yeh ahsaas ke rishte hai......
बहुत ही सुंदर लेख है जो प्रशंग्सनीय है! बहुत खूब! लिखते रहिये!
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