जिंदगी के प्रति सकारात्मक सोच

>> 03 September 2009

वो एक मुश्किल दौर था...बिलकुल हरा देने वाला, थका देने वाला...उस रात मैं सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन पर खडा आने वाली ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था...घर से खबर आई थी कि पिताजी हमें छोड़ कर जा चुके हैं...उस स्टेशन पर खडा मैं तमाम सवालों में उलझा था...कई विचारों को उधेड़ता बुनता रहा...अब ऐसा कुछ भी मेरे पास नहीं था कि जिससे मैं आगे की पढाई कर सकता...मेरे पास 100 रुपये भी पूरे नहीं थे...ट्रेन का किराया एक दोस्त से ले मैं घर के लिए चल दिया था...वो काली रात थी...बेहद काली...डराने वाली...नींद ना आने वाली...बिना पलकें झपकाए ट्रेन में बैठे वक़्त को गुजारने वाली...

अगली सुबह मैं अपने घर के उस कमरे में था...जहाँ 6 आँखें मेरी तरफ देख रही थी...कुछ तलाशती सी...कुछ चाहती सी...हाँ वो आँखें मेरी माँ, भाई और बहन की थीं...उस वक़्त मैं अपना पहला वाक्य क्या बोलूं ये भी समझ नहीं आ रहा था...और मेरे रो देने का मतलब था कि वहाँ आंसुओं का सैलाब लाना..."सब ठीक हो जायेगा, मैं हूँ ना " जाने ये शब्द कैसे मेरे मुंह से निकले थे...शायद जो जरूरी भी थे...एक राहत देते से ये शब्द...मुझे खुद भी नहीं पता था कि सब कैसे ठीक हो जाएगा लेकिन उस वक़्त मैं कहना चाहता था...उनके लिए आशा की एक किरण रखना चाहता था...और वो मैंने किया

घर पर 100 रुपये तक ना थे...जाने वाला वो शख्स हजारों का क़र्ज़ छोड़ गया था...कोई सगा सम्बन्धी ऐसा ना था जो आगे आकर कहे कि आज का खाना हमारे यहाँ खा लेना...या हम हैं ना कोई फिक्र करने की जरूरत नहीं...सब के सब बस हमें खा भर लेना चाहते थे...या सिर्फ परेशानियों को सुन पीठ पीछे हँस भर लेना चाहते...समस्याएं मुंह फाड़े खड़ी थीं

हर नया दिन तकलीफ और समस्या के साथ खडा होता था...लेकिन फिर भी मेरे दिल के किसी कोने में एक विश्वास जगा हुआ था कि सब ठीक हो जाएगा...मुझे भरोसा है कि मैं धीरे धीरे सब ठीक कर लूँगा...कैसे ये मुझे नहीं पता...पूर्णतः कब तक ये भी नहीं पता...लेकिन कर जरूर लूँगा...हाँ यही एक आत्मविश्वास था जिसने मेरा साथ दिया...उसी आत्मविश्वास ने मेरा हाथ थामा और मुझे आगे ले गया...सबसे पहले मैं अपनी अगली बची MCA की आखिरी साल को पूरी करने की सोचने लगा...उसके लिए मैं एक बैंक गया...कि शायद यहाँ से एजुकेशनल लोन मिल जाए...लेकिन स्थिति तब और ख़राब हो गयी जब बैंक मैनेजर ने लोन देने से मना कर दिया

वो एक मुश्किल दिन था और बुरा दौर...मुझे हर हाल में आने वाले एक महीने में अपनी फीस का बंदोबस्त करना था...नहीं तो बिना कोर्स किये आगे बढ़ना मुश्किल था...अब सोचना ये था कि फीस का बंदोबस्त आखिर किया कहाँ से जाए...रिश्तेदार और सगे सम्बन्धी सब के सब नाक भोहं सिकोड़ने लगे थे...हमसे दूर भागने लगे थे...मैंने निश्चय किया कि अपने पुराने मित्रों और अपने खुद के जानकारों से कुछ बात करता हूँ...उस बुरे वक़्त में मेरे कुछ अच्छे दोस्तों और जानकारों ने मेरी मदद की...मेरे कुछ MCA के सीनियर्स ने साथ दिया

लेकिन फिर भी इतने रुपए इकट्ठे न हो सके कि मैं वहाँ अपना पूरा साल गुजार सकूँ...लेकिन दिल में ना जाने क्यों एक आस थी...एक सकारात्मक विचार था...कि सब ठीक हो जाएगा...बस में अपने कॉलेज में उन कुछ रुपयों के साथ पहुँच गया...उन दिनों मुख्यमंत्री मायावती जी ने स्कोलरशिप के नाते फीस ना लेने का आदेश दिया था...वो मेरे लिए जीने का एक सहारा बना...पास के अपने पैसों से मैंने जैसे तैसे वह साल गुजारा...यह एक सकारात्मक सोच का ही नतीजा था कि सब धीरे धीरे ठीक होने लगा था

मैंने धीरे धीरे सीख लिया था कि समस्याओं को देख भाग खड़े होने से समस्याएं ख़त्म नहीं होती...सकारात्मक सोच हिम्मत देती है...सकारात्मक सोच जीतने के लिए साहस देती है...मैंने अपनी MCA पूरी करते हुए ये सीख लिया था कि भले ही जिंदगी में मेरा यह संघर्ष जारी रहे लेकिन सकारात्मक सोच हमें जीत के करीब ले जाती है...हिम्मत के साथ डटे रहने और संघर्ष करते रहने से जीत हासिल होती है

31 comments:

संगीता पुरी 3 September 2009 at 15:03  

वास्‍तव में समय आने पर सब ठीक हो ही जाता है .. सकारात्‍मक सोंच तो रखनी ही चाहिए !!

डिम्पल मल्होत्रा 3 September 2009 at 15:55  

sahi hai problems se bhagne se wo khatam nahi hoti...samna karna padta hai...

ओम आर्य 3 September 2009 at 16:03  

बहुत ही सुन्दर .......साकारात्मक सोच जिन्दगी को एक नया आयाम देती है .....

vandana gupta 3 September 2009 at 16:21  

bilkul sahi kaha..........hamari soch hi hamein disha deti hai ki kis raah par chalein.

Arshia Ali 3 September 2009 at 16:48  

सकारात्मक सोच के बिना हम कुछ नहीं कर सकते।
( Treasurer-S. T. )

निर्मला कपिला 3 September 2009 at 17:04  

बिलकुल सच्ची और खरी बात है अच्छा लगा आपका ये संस्मरण शुभकामनायें

दिगम्बर नासवा 3 September 2009 at 17:29  

SACH KAHA ANIL JI ... SACHEE LAGAN AUR SAKAARAATMAK SOCH HAR KAAM KO POORA KAVAA KAR HI DAM LETI HAI .... KHOOBSOORAT LEKH HAI AAPKA .....

Gyan Dutt Pandey 3 September 2009 at 18:03  

"सब ठीक हो जायेगा, मैं हूँ ना "
----------
क्या जबरदस्त लिखा है बन्धु!

Bhawna Kukreti 3 September 2009 at 18:23  

sach ...aapne meri bhi jeevan se jujhane ki himmat badha di .

सुशील छौक्कर 3 September 2009 at 18:30  

समस्याओं को देख भाग खड़े होने से समस्याएं ख़त्म नहीं होती...सकारात्मक सोच हिम्मत देती है...सकारात्मक सोच जीतने के लिए साहस देती है

सच्ची बात कह दी आपने।

रंजना 3 September 2009 at 18:46  

वाह !! शाबाश !!!

बहुत ही अच्छा किया यह संस्मरण प्रेषित कर...कई लोगों को जिन्हें लगता है दुनिया में सबसे दुखी वही हैं,या आगे बढ़ने का कोई रास्ता न बचा,उन्हें यह आपबीती राह दिखायेगी,सकारात्मक सोच देगी...

कहते हैं न दुःख आदमी को मजबूत बनाती है और उसके सामने नयी राह खोलती है...सबको यह पढ़ विश्वास हो जायेगा....

जिन्दगी में खूब आगे बढो और कईयों के प्रेरणाश्रोत बनो,यही मंगलकामना है...

vikram7 3 September 2009 at 19:21  

सकारात्मक सोच से युक्त प्रेरणादाई संस्मरण

शेफाली पाण्डे 3 September 2009 at 20:27  

himmat se sab kuchh ho jata hai ...iska saath hona behad zarooree hota hai....

Gaurav Misra 3 September 2009 at 20:47  

koi bhi mushkil tab tak mushkil rehti hai jab tak use hal karne ki koshish na ki jaaye...prernaaspad sansmaran..

Unknown 3 September 2009 at 21:12  

सचमुच सकारात्मक सोच और हौसला
जीवन की दुष्कर राहों को भी सरल कर देते हैं...........

बहुत उम्दा बात कही आपने...........
बधाई !

Mithilesh dubey 3 September 2009 at 21:19  

बहुत खुब लाजवाब कहा आपने।

pallavi trivedi 3 September 2009 at 22:17  

मुश्किल दौर में ऐसी सकारात्मक सोच रखना बहुत हिम्मत का काम है! आपकी इस पोस्ट से निराश लोगों को बहुत प्रेरणा मिलेगी!

Kulwant Happy 3 September 2009 at 22:39  

मैं इतना बड़ा नहीं कि किसी को सलाह दूं, लेकिन हमेशा ही ये कहता हूं। ऐसे वक्त में सोच लेना चाहिए फिल्म अभी बाकी है।

नहीं तो...
जब मैंने खुद से हिम्मत मांगी
उसने कठिनाईयां मेरे सामने ला खड़ी कर दी।

Ashish (Ashu) 3 September 2009 at 23:04  

"सकारात्मक सोच हमें जीत के करीब ले जाती है...हिम्मत के साथ डटे रहने और संघर्ष करते रहने से जीत हासिल होती है"
तुस्सी तो छा गये.
धन्यवाद भाई

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" 3 September 2009 at 23:48  

बेहतरीन संस्मरण्!!!
आपका ये संस्मरण,निराशा में घिरे लोगों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत का काम कर सकता है!!

Himanshu Pandey 4 September 2009 at 06:03  

सकारात्मक सोच हिम्मत देती है ....

बिलकुल ! खूबसूरत लेखन ! आभार ।

अनूप शुक्ल 4 September 2009 at 07:44  

बेहतरीन संस्मरण! मैं हूं न! यह जज्बा हमेशा रहे आपके साथ! शुभकामनायें!

RAJESHWAR VASHISTHA 4 September 2009 at 20:55  

Impressed......you are a fighter so you are a WINNER. Keep it up..Aasman se aage jana hai...

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद 4 September 2009 at 22:14  

"सकारात्मक सोच हिम्मत देती है...सकारात्मक सोच जीतने के लिए साहस देती है...मैंने अपनी MCA पूरी करते हुए ये सीख लिया "

जीवन की यह लडाई आप जीत गए। बधाई आप्को॥

Ashish (Ashu) 4 September 2009 at 22:32  

भाई आज आपकी ये पोस्द हमारे K.N.I. के Principal श्री गुनराज जी ने देखी । मालुम हॆ क्या कहा सर ने कहा "अनिल अच्छा student था ।"

अनिल कान्त 4 September 2009 at 23:36  

shukriya bhai jaan...waise unke hath kaise pad gayi humari ye post

Nitish Raj 5 September 2009 at 03:27  

कोई कहेगा कि आप जीत गए हां जीत गए आप पर आप से कहीं ज्यादा जीत की हकदार गर कोई है तो वो है आपकी सोच, आपकी हिम्मत, आपका हौसला, आपकी सूझबूझ और ये सब आया कहां से....। बड़ा विचार है...ये सब दिया बचपने से ही आपके माता-पिता ने। क्योंकि जिंदगी में कई मोड़ ऐसे आते हैं जब कि आप शून्य में पहुंच जाते हैं कई बार निकला हूं उस शून्य से। आपने जिंदगी को जीता इसके लिए बधाई। चलना ही जिंदगी है चलती ही जा रही है............।

रामकुमार अंकुश 5 September 2009 at 07:21  

सकारात्मक सोच और संघर्ष में बड़ी शक्ति होती है. मैं भी इन्ही संघर्षों में तप कर बड़ा हुआ हूँ.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) 5 September 2009 at 14:41  

Anil yeh post padhke aansoo aa gaye bhai....... sach mein......positive thinking hamein har mushkil haalaat se ladne ki taaqat deti hai...... hats off to u.......

उम्मीद 9 September 2009 at 12:42  

aap sahi kah rahe hai ......samasya se bhag kar uska samadhan nahi kiya ja sakta ...yeh post padhke aansoo aa gaye bhai....... sachchi main

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