बेहिसाब सी जिंदगी
>> 15 September 2009
कभी कभी इंसान इतना रोना क्यों चाहता है...कभी बेवजह तो कभी इतनी वजहें होती हैं कि उन्हें गिना भी नहीं जा सकता...या फिर हम उन्हें गिनना पसंद ही नहीं करते...बस रो भर लेना चाहते हैं...पर रोना तब और ज्यादा आता है...जब हम रोना चाहते हैं तो कमबख्त ये आंसू भी साथ नहीं देते...निकलने का नाम ही नहीं लेते
जिसे 6 साल से आप दोस्त कहते हैं वो आपको उधार मांगने पर ये बोल दे कि उसे शोपिंग करनी है इसलिए पैसे नहीं दे सकता...तब कमबख्त ये दिल बहुत रोता है...बस ये आंसू ही नहीं निकलते...तब उस 6 साल पुराने दोस्त से बस यही कहते बनता है कि चल कोई नहीं...और मन करता है कि वहाँ से भागते हुए कहीं जाओ और जितना जी चाहे उतना रो दो
कहीं सुना था कि दोस्त की खातिर कई अपनी एफ.डी. भी तुड़वा देते थे...अच्छा लगता है उस दोस्त के लिए जिसके लिए किसी ने आज के हिसाब से ये कुर्बानी दी होगी...कुछ ऐसे भी दोस्त होते हैं जो बातों ही बातों में अपनी तनख्वाह 40 हज़ार बताते हैं...लेकिन ये सोच कर भी दिल डर जाता है कि इनसे चन्द पैसे मांग लेने पर इनका जवाब क्या होगा...शायद बहाना कहना बेहतर हो...
शायद रिश्तों और दोस्ती के हिसाब किताब में मैं पिछड़ गया सा लगता हूँ...वरना इस तेज़ दौड़ती भागती जिंदगी के इन पहलुओं पर गौर करके भी आँखें बंद कर लेने का मन ना करता
क्या इस बेहिसाब सी जिंदगी का फिर से एक बार हिसाब करना लाजमी होगा...फिर सोचते ही डर जाता हूँ...कहीं हिसाब करने पर हारा हुआ महसूस ना करूँ...कहीं ये अनगिनत रिश्ते बहुत पीछे ना छूट जाएँ...और फिर खाली हाथ से ये जिंदगी कैसी लगेगी...
फिर ये सोच कर तसल्ली कर लेता हूँ कि एक समय कुछ जुबानों से रात के 11 बजे ये भी सुना था कि "योर टाइम इज ओवर, अब तुम अपना ठिकाना कहीं और देख लो, अब बस और नहीं"...कमबख्त वो रात भुलाये नहीं भूलती...जब रात भर आसरे के लिए किसी और जगह पैर पसारने पड़े हों...फिर ये तो जिंदगी का एक बहुत छोटा सा हिस्सा भर है
तब यही जान पड़ता है कि दोस्त तुम्हें अपनी शोपिंग मुबारक हो और तुम्हें अपनी बनियागीरी...क्योंकि और कुछ कहने लायक है भी तो नहीं...जिसे कहा जा सके...एहसास को तो बस महसूस ही किया जा सकता है...कहा नहीं
काश मेरे लिए इस बेहिसाब सी जिंदगी का हिसाब करना थोडा आसान होता...तब रिश्तों और दोस्तों की पकड़ यूँ इस कदर ढीली ना पड़ती जाती...
34 comments:
आपने सच फ़रमाया है, रिश्ते और दोस्ती अब ना जाने क्यों अपना असर सा खो रहे हैं
ऐसी हरकतों पर दिल बहुत दुखता है. कभी कभी तो लगता है कि क्या वाकई हम बहुत आगे बढ़ गए हैं.
"जिसे 6 साल से आप दोस्त कहते हैं वो आपको उधार मांगने पर ये बोल दे कि उसे शोपिंग करनी है"
दोस्ती ही नहीं रिश्ते भी खराब हो जाते हैं पैसे की जगह। इसलिए इन्हें पैसे से दूर रखें ही तो अच्छा है:)
jab kahin bhi paisa beech mein aa jata hai tab wo rishta chahe dosti ka ho ya koi aur rishta rahta hi nhi hai.
sach kaha.
कभी कभी पैसे दोस्ती की जड़ को हिला देते है लेकिन कितनी बार दोस्ती में थोड़ी मदद पैसे की रिश्ता मजबूत बना देता है
काश, ये सब इतना आसान होता।
{ Treasurer-S, T }
्रिश्तों की दोर कहाँ सुलझ पाती है जितना सुलझाओ उतना उलझ जाती है और आज कर तो गाँठें इतनी गहरी हो गयी हैं कि जिन्हें खोलना ससँभव है दिल को छू लेने वाला संस्मरण है शुभकामनायें
एक बात कहूं... दिल से कह रहा हूं बहुत ही सुंदर तरीके से अपने भावों को रखा है तुमने... पड़कर अपने आस-पास और रिश्तों में खो जाने का मन कर रहा था।
पर ज़िंदगी का अपना एक लिबास है हर किसी का एक अलग रंग... जो लोग इस रंगीनियत मे खो जाते है वो रह जाते है और जो अपने रंग को रंगहीन बनाने की फिराक में दौड़ते है उनका पाएदान इस समाज में हमेशा आगे रहता है। तो
best of luck.
इसी का नाम जिन्दगी है मेरे दोस्त ! और मै तो कहता हूँ कि ऐसे वाकिये भी जिन्दगी में आने चाहिए यहीं से तो अपने पराये की पहचान का अवसर मिलता है !
बहुत सही फरमाया गुरु .......अति सुन्दर रचना
अपेक्षाएं ही दुखों की जड़ हैं! हम जितनी जल्दी ये बात समझ जाएँ उतना अच्छा है!और पैसा रिश्तों को कमज़ोर करता है ये बात भी सही है!
समय के साथ साथ अब रिश्तो और दोस्ती के माइने बदल गए है .
हाँ तब ये पकड़ ढीली नहीं पड़ती ....
ज़िन्दगी इम्तहान लेती है....दोस्तों-दुश्मनों की पहचान कराती है....
हर रिश्ता वही ख़त्म हो जाता है जब पैसा बीच में आ जाता है...
और तब ही अपने-पराये पहचान में आते हैं..
बहुत खूब लिखा है आपने.. हैपी ब्लॉगिंग
अनिल भाई आज की दुनिया बदलने लगी है जिसमें पुराने शब्दों के भाव भी बदलने लगे है। आदमी दिन पर दिन बदलता जा रहा है।
SACH KAHA BADALTI DUNIYA MEIN RISHTE BHI BADALNE LAGE HAIN ..... MAAYNE BADALME LAGE HAIN RISHTON KE .... LAJAWAAB ABHIVYAKTI HAI ...
rone ke hume kitne bhaane mile...ab dunia ke gam bhi aake staane lage...ik khoobsurat post...
Paison ki ahmiyat rishton ki ahmiyat se aaj kahin jyada hai.
Wah bhai is post ke madhyam se kitni sacchi bat keh di aapne....
रिश्तों का अच्छा विश्लेषण है ।
वैसे आज भी ऐसे दोस्त हैं जो बिना कोई सवाल किये मदद को तैयार रहते हैं..लेकिन अधिकतर तो वक़्त के बदलते रंग में ही ढल गए हैं..
यह समय का फेर हैं..बदलते रिश्ते हैं..ज़िन्दगी है..
काफी संवेदनशील लगा आपका यह लेख...वैसे हर तरह से दोस्त हर युग में रहे हैं... कुछ आज भी आप पर जान न्योछावर कर देंगे...और हाँ दोस्ती की ताली में दोनों हाथ की भागीदारी भी ज़रूरी हैं...
बहुत सुंदर लिखा है आपने .. पर आज की दुनिया तभी तक रिश्ते बनाती है .. जबतक उसे फायदा हो रहा हो !!
anil bhai .. ye duniya materialistic hai.. yahan jazbaaton se kaam nahi banta hai ab.. aise kai baar mujhe bhi aisa hi kuch dekhna pada hai isliye bata raha hoon.. har kisse se kuch seekhna chahiye.. taki khud ko agli baar ke liye ham taiyar kar sakein.. shayad meri baat samajh pa rhe ho aap..
रिश्ता और पैसा विपरीत ध्रुव है....गहराई भरे रिश्तो में लोग गहराई सामने वाले में होना जरूरी मानते है और खुद के पास रिश्ते का फैसला रखते है..
पन्ने दर पन्ना पलटते जाओ,
हम पन्ने दर पन्ना पढ़ लेंगे।
बस यूं ही चलते रहना। वैसे ये मेरे साथ भी हुआ था कभी मौका मिला तो जरूर शेयर करूंगा।
बेहतरीन प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
आप का स्वागत है...
कई बरसों बाद आप महसूस करेंगे कि जो हुआ था वो ठीक ही हुआ था ,ऐसे हादसे ही जीना सिखाते हैं मुझे भी ऐसे ही अपनी ज़िन्दगी की फुटपाथ पर बिताई एक रात याद आ गई - शरद कोकास
जिंदगी की बेहिसाबी का हिसाब करना, अनिल, सच पूछो तो किसी के लिये आसान नहीं है और ऐसे दोस्त तो इस हिसाब को और मुश्किल ही बनाते हैं।
This is one of the best story you you have ever posted ......Continue it......
जब हम रोना चाहते हैं तो कमबख्त ये आंसू भी साथ नहीं देते...निकलने का नाम ही नहीं लेते
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यह तो ठीक मित्र पर मन निर्मम बनाने की तरकीब बताओ कोई।
मन होता है जल्लाद तो न बनूं, पर इतना मोम-मक्खन भी न रहूं जो हूं!
hiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii
its sooooooooooo intersting yrrrrrrrrr
its really g8
i hv get plessure to read dis
nd MANY MANY HAPPY RETURNS OF DAY
FRM
ASHU'S BST FRND SHEENA
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