रात जब ठहर जाए

>> 06 September 2009

रात जब ठहर जाए
और भोर का उजाला ना हो
सिसकियाँ ही सिसकियाँ हो
और ख़ुशी का सहारा ना हो
कुछ देर संभल जाना
कुछ देर ठहर जाना

मैंदान से भाग खड़े होना
जब तुम्हें सबसे लगे आसां
जब कुछ भी ना बचा हो
खाली तुम रह जाओ
एक आशा की किरण होगी
तुम उसको जला लेना

जब तुम चाहो मुस्कुराना
और दर्द भरी हो आहें
जब सफर हो बहुत लम्बा
और कदम भी लड़खड़ायें
मंजिल बस पास ही होगी
तुम एक कदम बढ़ा लेना

जब जीना हो मुश्किल
और कुछ भी न समझ आये
जब दर्द ही दर्द हो
और वो हद से बढ़ जाए
दिल में रखना एक आस
और उससे तुम लड़ जाना

रात जब ठहर जाए....

33 comments:

ओम आर्य 6 September 2009 at 11:03  

एक बेहतरीन रचना.....अतिसुन्दर.........

Alpana Verma 6 September 2009 at 11:09  

हिम्मत न हारने की सलाह देती ,जोश भरती हुई..आशाएं जगाती हुई एक अच्छी रचना.

Anil Pusadkar 6 September 2009 at 11:10  

क्या बात है अनिल बाबू,अलगई मूड मे दिख रहे हो।आखिरी से पहले वाली लाईन मे आश को आस कर लो तो ठीक लगेगा।

अनिल कान्त 6 September 2009 at 11:11  

शुक्रिया अनिल जी ...ध्यान दिलाने के लिए

संगीता पुरी 6 September 2009 at 11:12  

आशावादी रचनाएं मुझे अच्‍छी लगती ही है .. और आपकी कलम से लिखी जाए तो कहना ही क्‍या .. बधाई और शुभकामनाएं !!

mehek 6 September 2009 at 11:28  

sunder aashawadi rachana,mann prasann ho gaya,lajawab

निर्मला कपिला 6 September 2009 at 11:44  

दिल मे रखना आस
और तुम लड जाना
बहुत सुन्दर और सकारात्मक अभिव्यक्ति है बधाई

Shivangi Shaily 6 September 2009 at 11:49  

This poem infuses a lot of hope! Too good! :)

vandana gupta 6 September 2009 at 11:57  

himmat badhati rachna.......badhayi

Gyan Dutt Pandey 6 September 2009 at 13:16  

बहुत सुन्दर जी - कुछ देर ठहरो, फिर चलना!

M VERMA 6 September 2009 at 15:07  

प्रेरणाप्रद रचना.
बहुत सुन्दर और प्रवाहमय

दिगम्बर नासवा 6 September 2009 at 15:21  

VAA ANIL JI ....... AAJ KUC BADLA UVA ANDAAZ HAI ....... PAR BAHOOT HI ACHA LAGA .......

बवाल 6 September 2009 at 21:55  

बहुत ही सुंदरता से बात कही आपने, अनिल जी। शुभकामनाऎं।

शिवम् मिश्रा 6 September 2009 at 22:00  

बधाई और शुभकामनाएं !!

शिवम् मिश्रा 6 September 2009 at 22:07  

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Mainpuri me kahan hai aap ki nanihaal?

डिम्पल मल्होत्रा 6 September 2009 at 22:08  

जब जीना हो मुश्किल
और कुछ भी न समझ आये
जब दर्द ही दर्द हो
और वो हद से बढ़ जाए
दिल में रखना एक आस
और उससे तुम लड़ जाना ...khoobsurat kavita umeed se wishwash .honsle se bhari...

अर्चना तिवारी 6 September 2009 at 22:59  

जोशीली रचना...सुंदर

कुश 7 September 2009 at 12:09  

बहुत खूब अनिल भाई..

रश्मि प्रभा... 7 September 2009 at 15:45  

bahut hi khoobsurti se bhawnaaon ko sameta hai

Ashish (Ashu) 7 September 2009 at 21:02  

भाई आप जॆसे २ दोस्त हॆ जो K.N.I. मे teacher हो गये हॆ बस अपने उन दोसतो को दिखाया ........बस हो गया काम...आप कॆसे हो भाई बहुत सुन्दर रचना हॆ भाई..

Chandan Kumar Jha 8 September 2009 at 01:28  

बहुत ही सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति , सीधे दिल को छूती हुयी । आभार ।


गुलमोहर का फूल

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' 8 September 2009 at 09:51  

बहुत ही अच्छी लगी ये रचना...

उम्मीद 9 September 2009 at 12:36  

aap ki rachna bhut achchhi lagi
sach kabhi himmat nahi harni chahiye.....bas chalte jana hi to zindagi hai .....

kshama 9 September 2009 at 13:33  

सच है...विधी के विधान में जब तलक, एक ख़ास नियत पल नही आता...चाहे जो कर लें, हमारे हाथ कुछ नही आता...
Behad sundar prastutee..!

सदा 9 September 2009 at 17:31  

जब जीना हो मुश्किल
और कुछ भी न समझ आये
जब दर्द ही दर्द हो
और वो हद से बढ़ जाए
दिल में रखना एक आस
और उससे तुम लड़ जाना

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति, बधाई

Mahfooz Ali 9 September 2009 at 20:01  

Anil wwaqai mein bahut hi achcha likha hai bhai.......

स्वप्न मञ्जूषा 10 September 2009 at 10:17  

एक आशावादी कविता....
उम्मीद जगाती हुई बेहद खूबसूरत रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद..

Dr. Zakir Ali Rajnish 10 September 2009 at 12:19  

आपकी व्यंजना शैली का कायल हूं मैं। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

sujata sengupta 11 September 2009 at 11:39  

full of positivity and hope. loved this poem You should keep writing such things..it will erase the pain in you!! Am very proud of you for writing this.

अनिल कान्त 11 September 2009 at 13:47  

Thanks Sujata Ji...and Thanks to All

dushyant 11 September 2009 at 13:53  

apki kavita par kahin padha hua ye sher yaad aa gaya....
anjaam uske haath hai agaaz kar ke dekh, bheege hue paron se bhi parvaaz karke dekh

ek behtareenn rachna badhai....

निर्झर'नीर 11 September 2009 at 15:22  

ni:sandeh khoobsurat or sakaratmak abhivyakti

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