डैड क्या मैं वाकई तुमसे नफरत करता हूँ ?
>> 02 June 2009
पता है डैड मैं सपने देखने से बहुत डरता हूँ । मैं डरता हूँ कि मुझे कोई सपना दिखाई न दे क्योंकि मैं जानता हूँ आज तक ऐसा कोई सपना नहीं आया, जिसमें मुझे तुम ना दिखाई दिए हो । इसीलिए मैं डरता हूँ कि कहीं मुझे कोई सपना ना आये । और हाँ एक कड़वा सच यह भी है कि ऐसा कोई दिन नहीं गया जब मुझे सपना ना आया हो ।
जब-जब तुम मुझे सपने में दिखाई देते हो तब-तब मैं दर्द से तड़प उठता हूँ । घुटन सी होने लगती है मुझे । एक ऐसा दर्द, जिसका इलाज़ ना तो मेरे पास है, ना ही किसी और के पास । पता है इन सपनों की वजह से मेरा दिमाग अजीब सा हो गया है । तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं वही लड़का हूँ, जिसने हाई स्कूल और इंटर में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था । और आज वही लड़का एमसीए के बाद भी अपने हक़ के लिए लड़ रहा है । उसे अपने दिमाग को संतुलित रखने की कोशिश करनी पड़ती है । एक साथ तमाम सोच चलती रहती हैं दिमाग में । घर का खर्च, अपना खर्च, बिगड़ते हालात, गुजरता हुआ समय, माँ का दुःख, भाई बहन की पढाई, बड़ी होती बहन की शादी, बिखरे हुए को इकठ्ठा करना, खुद की नौकरी, और ना जाने क्या क्या । हाँ वो लड़का जिसका दिमाग कभी इतना शार्प हुआ करता था । जो किसी भी चीज़ को कंटस्थ याद कर लिया करता था । शायद कंटस्थ याद की हुई आखिरी बात मेरे लिए वही है, कि तुम हमे छोड़ के चले गए ।
ये सपने मुझे रुलाते हैं । कभी सुनहरे सपने देखा करता था मैं । सफलता के, शीर्ष के, शक्ति के, अपने हुनर के । और आज सिर्फ और सिर्फ दुःख के सपने, अरमानों के टूटने के सपने देखा करता हूँ । वो सपने जिन्हें मैं कभी देखना नहीं चाहता । उन्हें बार बार लेकर मेरे सामने क्यों आ जाते हो ? क्यों मुझे याद दिलाते हो कि तुम बचपन में मुझे अपनी गोद में बिठा कर अंग्रेजी पढाया करते थे । क्यों याद दिलाते हो कि तुम्हारे आने की राह ताका करता था मैं ? क्यों याद दिलाते हो वही पुरानी बातें ? वो बातें जो दुःख देती हैं ।
मैं थक चुका हूँ ये सोच-सोच कर । फिर क्यों मुझे याद दिलाते हो, वही ट्रेन जिसे पकड़ कर आपधापी में मैं आया था । जब पता चला था कि तुम हमें छोड़ कर जा चुके हो । हाँ मुझे बर्दाश्त नहीं होती वो रात । जो मैंने बिना पलक बंद किये काटी थी । वो बंद कमरा, वो मेरे सामने रोते बिलखते भाई-बहन, रोती हुई माँ, वो माँ का टूटा हुआ हौसला ।
पता है, मेरा सबसे बड़ा दुःख क्या है ? कि मैं रोना चाहता हूँ पर रो नहीं सकता । पता नहीं वो आँसू कहाँ थमे बैठे हैं ? कमबख्त निकलने का नाम ही नहीं लेते । उस रोज़ से आज तक लाख बार मैंने रोने की पूरी कोशिश की लेकिन मैं हर बार असफल हुआ । आज तक वो आँसू कहीं छुपे हुए हैं । लोगों के सामने हँसता हूँ, मुस्कुराता हूँ लेकिन रोना नहीं आता । पर मैं रोना चाहता हूँ, चीख-चीख कर, फूट-फूट कर । बहा देना चाहता हूँ सारे आँसू लेकिन कमबख्त निकलते नहीं ।
तो फिर क्यों मेरे हर सपने में वही पुराने किस्से लेकर आ जाते हो ? क्यों मुझे वही सब दिखाते हो ? जो मैं नहीं देखना चाहता ? क्यों लुभाते हो वही बचपन ला लाकर मेरे सपनों में ? नहीं, हाँ नहीं देखना चाहता मैं वो सब । जिनसे मेरा दिल दुखता है । वही जो घटित हुआ 5 साल पहले । वो बार-बार मेरे सपनो में आता है । हर बार मेरे जख्म को हरा कर जाता है ।
पता है सबसे बड़ा दुःख क्या है डैड ? इंसान जिंदगी भर जिससे नफरत करते रहने की कोशिश करता रहे लेकिन वो कर ना सके । मैं भी वही इंसान हूँ । मैं जिंदगी भर तुमसे नफरत करता रहना चाहता हूँ, बहुत-बहुत, ढेर सारी नफरत । मैं पिछले 5 साल से एक रात भी ठीक से नहीं सो सका और उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ तुम हो । तुम्हारा हर सपना मुझे रुलाता है, दर्द दे जाता है । तुम हर बार सपने में आकर मुझे बहलाने की लाख कोशिश करते हो लेकिन मैं हर बार, हर रात, हर सपने के बाद दर्द से कराह उठता हूँ ।
हाँ मैं वही इंसान हूँ जो जिंदगी भर तुमसे हमेशा के लिए नफरत करते रहने की कोशिश करता रहेगा । जानता हूँ जो इस दुनिया में सबसे मुश्किल काम है ।
33 comments:
मैं निःशब्द-सा डायरी के इस पन्ने को देखता हूँ...शब्दों को बार-बार पढ़ता हूँ...अंतर्मन में कुछ टूटता जाता है
मेरी ये अदनी-सी टिप्पणी शायद उचित न्याय न कर पाये इस पोस्ट की गहराई के साथ
तुम्हारे लिये समस्त शुभकामनायें, अनिल!!!
सच कहूं तो मेरा दिल भर आया ...मैं निशब्द हूँ कुछ कहने के लिए
इतनी साडी सोच को बयां किया आपने ...अपने दिल का हाल ...जज्बातों का हाल ....बहुत मुश्किल काम है ...शायद दुनिया का सबसे मुश्किल काम
अनिल ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। सब कुछ बढिया चल रहा था अचानक एक दिन बाबूजी,(हम अपने पिताजी को बाबूजी कहा करते थे)चले गये। ऐसा लगा कि सब कुछ खतम्। फ़िर छोटे भाई-बहन का और मां का खयाल आया तो ज़िंदगी से जग शुरू कर दी।कुछ समय ठीक रहा फ़िर व्यापार मे नुकसान का दौर,धोखे और कर्ज़ का रोज़ बढता बोझ्।बस दोस्तो ने तब पूरी दमदारी से साथ दिया और घर से भी समर्थन मिला।संकट के उस लम्बे दौर मे मै चाह कर भी बाबूजी को याद नही करता था।उनसे मिली हिम्मत और ताक़त मुझे लडने का हौसला देती रही।ये बात ज़रूर है कि जंहा मुझे होना चाहिये था वंहा तक़ नही पहुंच पाया मगर आज सब कुछ ठीक है,बहन और दोनो छोटे भाईयो का विवाह भी करा दिया और तीनो भाई मां के साथ रह रहे हैं।खुश है जितना हमे हमारे हिस्से का मिला।तुम्हे पढ कर लगा कि ये तो शायद मेरी ज़िंदगी का सच है।ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि तुम्हे हर क्षेत्र मे सफ़लता मिले।
आपकी पोस्ट पढ़ कर बस निःशब्द रह गया, speachless ............. अन्दर तक झकझोर गयी
मेरी हिचकियाँ बंध गई हैं.........
I am in not in a position to comment as I cannot maybe do complete justice to your pain, but I keep seeing this side of you through your frequent similar posts..the only thing that comes to mind is that unless you forgive your dad, you will never be able to forget him. It is not affecting him at all, this pain..its affecting only you..so try and let go..
anil mai tumharee post padhne ke liye utsuk rehti hoon tumhari har post dil ko choo leti hai kyon ki is umar me itana gambheer chintan lajvab bahut he matmik rachna hai abhaar
आप बहुत बड़ी हैं दिल से भी और अनुभव से भी ...आशा करता हूँ कि आप अपना स्नेह हमेशा बनाए रखेंगी
वाकई आपने इंसान का जो छिपा हुआ मु्खौटा होता है उसे दिखाया है, पास में जो भी हो जब तक वो दूर नहीं चला जाता तब तक हम उसमें गलती ढूँढ़ते रहते हैं, और दूर जाते ही इंसान ऐसा हिल जाता है कि वो चीख चीख कर क्रंदन भी नहीं कर सकता है।
sach mai dusre commentors ki tarah hi spellbound reh gaya hun aapka post parh kar. Aisa lagta hai jaise abhi abhi aapse apne apne sukh dukh baten hai. sach yahi to hai blog. apni opinions share karna. aap likhiye, mai hamesha parhunga
priya anil bhai...jaante hain kuchh baatein aisee hotee hain jinhein jaanne padhne ke baat nishabd rah kar hee apnee pratikriyaa dee jaa saktee hai...aapkee diary ka ye panna behad maarmik hai...aur ise koi doosraa mehsoos nahin kar saktaa...
Great.
Speechless.
man bhar aaya ye sab padh kar......
पढने के बाद कहने को शब्द नही है मेरे पास।
very touching post............
जानें वाले की याद और सपनों का यह खेल हमारे साथ भी १३ सालों से चल रहा है.. लेकिन क्या कभी भूल सकता है कोई?.......शायद नही।आप की पोस्ट पढ कर लगा..जख्म कभी भरते नही.....जो अपनों के दिए होते हैं।बहुत मार्मिक व भाव पूर्ण लेखनी है आपकी।
मैं रोना चाहता हूँ पर रो नहीं सकता ...पता नहीं वो आँसू कहाँ थमे बैठे हैं ...कमबख्त निकलने का नाम ही नहीं लेते ....उस रोज़ से आज तक लाख बार मैंने रोने की पूरी कोशिश की लेकिन मैं हर बार असफल हुआ ....आज तक वो आँसू कहीं छुपे हुए हैं ....लोगों के सामने हँसता हूँ ...मुस्कुराता हूँ ....लेकिन रोना नहीं आता ...पर मैं रोना चाहता हूँ ...
...मन में चलने वाले अंतर्द्वंद का सजीव चित्रण पढने को मिला. धन्यवाद.
आप "मेरे ख़्वाबों में" आये, शुक्रिया.
I'm here for the first time and u hav trapped me here..U r such a magician with words, u make words flow ike river..
I was spellbound under the effect of ur post..As a reader I could feel the deep pain u r gng through..
I knw no piece of advice will have any meaning for u when u hav lost something priceless..But try to find solace in ur posts..
Me too lost someone very special and I do the same..
Keep writting..craving for more now..Have to follow u now..
आपकी पोस्ट ने मेरे कई पुरानी यादों को उधेड़ दिया जो मेरे किसी प्रिय से जुड़ी थी । बरसों बाद आज आपकी पोस्ट ने उसकी याद से आंखों में आंसू और मन में दर्द भर दिया है ....देखिये आपने रुला दिया ...लेकिन कोई शिकायत नहीं कर रही ....आपकी लेखनी और प्रस्तुतीकरण बहुत सजीव है.... मानो आप अपनी ही पीडा बयान कर रहे हैं ....इश्वर ना करे !.....नहीं ना! तो बधाई :)
waqai lajawab post.kabhi mere blog par bhi aaye
आपने जीवन की किसी दास्ताँ को शब्द देना वाकई बेहद दुष्कर कार्य है...पढ़कर दिल रो उठा.
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विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) पर "शब्द-सृजन की ओर" पर मेरी कविता "ई- पार्क" का आनंद उठायें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ !!
क्या कहूं, कुछ समझ में नहीं आता।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
heart melting post..
too good post
too good post
My tongue is stuck.......
just amazing.
bhai
bhai
bhai
bhai
antarman se badhai !
badhai !
badhai !
आपके पोस्ट में आपने बहुत ही अच्छे से अपने सोच को प्रकट किया है. और हमे अच्छे से महसूस करवाया. पिता को अपना दोस्त और अपना हिम्मत माने. उनकी यादें आपमें हिम्मत बढाती जाएँगीं. उनसे बात किया कीजिये, प्यार से. आपकी सफलता में उनका गर्व होगा. और ये सब सपने आपको मीठे लगने लगेंगे .
A very touching depiction! May you be happy always!!
Hi,
I read many stories of ur blog.Hope till now u have settled in ur life.
May god bless you.
Monika
Thnaks Monika for your comment...
Sangharsh to zindgi mein bana rahta hai...haan uske swarup badalte rahte hain...phir bhi zindgi mein ab thodi rahat hai...aage khushi ke sath badhte jana hi zindgi.
अनिल आप बहुत अच्छे लेखक हैं.
आपकी भावनाएं और लेखनी अद्वितीय हैं.
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