'इत्तेफाक' एक प्रेम कहानी (अन्तिम भाग)
>> 19 June 2009
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हमारी मुलाकातों और ढेर सारी बातों का ही ये असर था कि स्वेता मुझे आदित्य से 'आदि' कहने लगी थी....जो उसके मुंह से सुनने में उतना ही अच्छा लगता...जितना कि मुझे स्वेता अच्छी लगती....मुझे पता ही ना चला कि मुझे कब उससे प्यार हो गया...शायद पता भी ना चलता...लेकिन कहते हैं ना कि कभी कभी किस्मत हम पर मेहरबान होती है....
जैसा कि मैंने उससे कहा था कि हम लोग आने वाले रविवार को झील के पास घूमने चलेंगे....रविवार के दिन स्वेता को साथ ले मैं उस झील के किनारे पहुँच गया....झील की सुन्दरता और वहां का आकर्षण और पंक्षियों के चहचहाने और इधर से उधर होने की गूँज हमारे कानों में पड़ती तो दिल खुश हो जाता....काफी लोग वहां घूमने के लिए आये थे....कुछ पल के लिए वो खामोश रही....अपनी अँगुलियों से मिट्टी में आडी- तिरछी लकीरें खीचती रही....मैंने पूंछा क्या हुआ स्वेता....आज बहुत चुप चुप हो....क्या हुआ.....ह्म्म्म...कुछ नहीं....नहीं कोई बात तो है....अरे नहीं कुछ भी तो नहीं....अच्छा...या बताना नहीं चाहती....नहीं न कोई बात नहीं है....अच्छा चलो ठीक है....अच्छा बोलो आइसक्रीम खानी है....वो देखो वहाँ आइसक्रीम वाला है....उसने हाँ में गर्दन हिलाई....मैं आइसक्रीम लेकर आया....
जब आइसक्रीम ख़त्म कर ली तो उसकी खामोशी को तोड़ने के लिए मैंने पूँछा....अच्छा बताओ कि 'रसीदी टिकट' फिर पढ़ी....हाँ दोबारा पढ़ी थी....तो कैसी लगी.....सच कहूँ तो उसमें....इंसान के जज्बात हैं...जिसे इंसान महसूस करता है....हर किसी के बस का नहीं कि उस हद तक इंसान शब्दों में अपने एहसास को बयां कर सके....फिर इतना बोलने के बाद उसने चुप्पी साध ली....मैं झील की तरफ देख रहा था....वो काफी देर तक सिर्फ और सिर्फ मेरी ओर देखती रही...फिर कुछ देर सोचते हुए उसने मुझसे सवाल किया...अच्छा आदि आपको कभी किसी से इश्क हुआ है....ह्म्म्म्म....क्या कहा....मैंने उसकी ओर देखते हुए पूँछा....कुछ देर मेरी ओर देखने के बाद बोली ...कुछ नहीं....और धीमे से बोली बुद्धू....नहीं तुम कुछ पूंछ रही थी....कुछ नहीं....अरे नहीं बोलो...आपको कभी इश्क हुआ है.....मैं मुस्कुराया....पता नहीं...वैसे डर लगता है....वो बोली किससे....मैंने कहा इश्क से.....क्यों डर क्यों लगता है....क्योंकि इश्क करके ज्यादातर लोग मिल नहीं पाते...प्रेम कहानियाँ ज्यादातर अधूरी रह जाती हैं....वो मुस्कुरायी...बस इस लिए डरते हो....ह्म्म्म्म्म शायद....वैसे आज तक मुझे पता नहीं चला कि मुझे कभी इश्क जैसा कुछ हुआ हो....तुम्हें हुआ है क्या...मैंने पूँछा...मेरी आँखों में देखकर फिर दूसरी ओर देखने लगी वो....उसने कुछ जवाब नहीं दिया
फिर उसने पूँछा अच्छा वो वहाँ लोग कहाँ जा रहे हैं...बड़ी भीड़ है....मैंने कहा....इश्क के मारे हैं....क्या मतलब....अरे मतलब ये कि वहाँ पास में ही एक मंदिर है....और यहाँ के लोग कहते हैं कि अगर कोई सच्चे दिल से किसी को चाहता है और यहाँ आकर उसे मांगता है....तो उसकी मन्नत पूरी होती है....उसके चेहरे पर एक अजीब सी ख़ुशी चमक उठी...अच्छा वाकई....चलो हम भी घूमने चलते हैं वहाँ....मैंने कहा क्या करोगी जाकर....छोडो बैठो...सब फालतू की बातें हैं....अरे चलो ना मुझे मंदिर देखना है....मैंने कहा मैं तो नहीं जा रहा....वो बोली प्लीज प्लीज प्लीज....चलो ना....मैंने कहा ठीक है...चलते हैं...पर मैं सिर्फ तुम्हारी वजह से जा रहा हूँ....
वहाँ पहुँच वो मंदिर में पूरी श्रद्धा के साथ ध्यान मग्न हो गयी....पता नहीं मन ही मन क्या माँगा उसने....मैं तो बस खड़े खड़े उसे ही देखता रहा....वहाँ ना जाने कितने चाहने वाले आये थे...अपनी अपनी मन्नते लेकर....वहाँ पास ही बैठे कुछ भिक्षुओं को कुछ देने के लिए मुझसे बोली पर्स निकालो अपना...मैंने कहा क्यों...अरे निकालो ना....उसमें से उसने २०० रुपये निकाल कर और उनके फल खरीद कर सबमें बाँट दिए....मैंने कहा अब खुश...अब चलें...वो मुस्कुरायी...बोली नाराज़ हो क्या...मैं भी मुस्कुरा गया....फिर हम झील के किनारे पहुँचे....तो ना जाने कैसे मेरा पैर मुड गया...और मेरे पैर में मोच आ गयी.....उफ्फ दर्द के कारण बुरा हाल हो गया मेरा.....स्वेता ने मुझे संभाला...और मुझे रिक्शे में बिठा कर डॉक्टर के पास ले गयी...डॉक्टर ने कुछ दवा दी और फिर उसके बाद मैं स्वेता के कंधे का सहारा लेकर ही रिक्शे मैं उसके साथ बैठा...मुझे मेरे कमरे तक वो लेकर गयी....
कमरे की हालत देखकर वो दंग रह गयी....कपडे जो थे वो इधर के उधर....कमरे में सिगरेट के टुकड़े पड़े हुए थे....उसे ज़रा भी देर ना लगी ये जानने में कि मैं निहायत ही आलसी किस्म का इंसान हूँ...और जो अपना ख्याल नहीं रखता....मुझे बिस्तर पर लिटा वो बोली ये क्या हालत बना रखी है कमरे की...इसी तरह रहा जाता है क्या....क्या इसी तरह जिंदगी बिताओगे....मैं हँसा तो मेरा पैर हिल गया....और अचानक से दर्द हुआ....रहने दो हँसने की कोई जरूरत नहीं है.....और फिर उसने सारे कपडे एक एक करके मेरे देखते देखते धो डाले...मेरे मना करने पर भी वो ना मानी....कुछ ही देर में कमरे की हालत बदल गयी....वो कॉफी बनाकर मेरे लिए लायी...क्यों करते हो ये सब....जिंदगी से ज़रा भी लगाव नहीं....शादी क्यों नहीं कर लेते.....मैंने कहा क्या करूँगा शादी करके...ऐसा ही भला हूँ....और शादी करने के लिए भी लड़की की जरूरत होती है....कहाँ से लाऊं लड़की....क्यों कमी है क्या लड़कियों की...किसी को पसंद करते हो तो उससे कर लो....मैंने कहा....ये इश्क भी अजीब है....वो बोली या हो सकता है कोई तुम्हें पसंद करती हो....मैंने कहा इस सरफिरे को कौन पसंद करेगी....और मैंने फिर एक गलत सवाल पूंछ लिया....वैसे तुम कब शादी कर रही हो...बुलाओगी ना....बस शायद वही गलत हुआ....उसने कुछ ना बोला....उस रोज़ वो मेरे लिए खाना बना कर चली गयी....और अगले दो रोज़ तक भी स्वेता आती और ज्यादा बात ना करके खाना बनाकर और मुझे खिलाकर चली जाती...मेरी किसी बात का जवाब हाँ या ना में देती....
लेकिन उस रोज़ वो कुछ उदास थी....वो आई उसकी आँखों में कई सारे सवाल थे....मैं भी कुछ परेशान हो चला था....वो खाना बनाकर और मुझे वो किताब 'रसीदी टिकट' देकर कहने लगी मैं कुछ दिनों के लिए घर जा रही हूँ....पर क्या हुआ....कुछ नहीं...और इतना कह कर वो चली गयी....उसका जाना मुझे बहुत अजीब लगा....बिस्तर पर करवटें बदल मुझसे रहा ना गया...मैंने वो किताब पलटी...उसमें एक ख़त रख छोडा था उसने....
जिसे पढ़ा और पढता ही चला गया...उसके बाद मैं अपने आप को कोस रहा था...क्या किया उस बेचारी के साथ....उसने लिखा कि आदि क्या आपको किसी की मोहब्बत की पहचान नहीं....या एक लड़की क्या चाहती है...ये भी उस लड़की को ही बोलना पड़ेगा....घर वाले पूंछते रहते हैं कि शादी कर लो...कोई पसंद हो तो बता दो...क्या बता दूं .....मुझे वो पसंद है जो...इश्क को एक फालतू काम समझता है...जा रही हूँ....मुझे नहीं पता आगे क्या होगा.....
मैं जानता था कि उसके शहर को जाने वाली ट्रेन अभी 1 घंटे बाद ही है....मैं जिंदगी भर अपने आप को कोसना नहीं चाहता था....मैं बाहर को जैसे का तैसा निकल लिया....रहा सहा दर्द तो मालूम ही नहीं पड़ा....शायद अब कोई दर्द मुझे ना रोक पाता....रिक्शे में बैठ मैं स्टेशन पहुँचा....वो दूर एक बैंच पर बैठी थी...गुमसुम...चुपचुप...खामोश सी....कुछ सोचती सी....मैं उसके पास पहुँचा....वो ख़त हाथ में पकड़ उसके चेहरे की तरफ देखा..उसने मुझे एक नज़र देख...अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया....जब मैं दूसरी तरफ से उसे देखा तो फिर उसने अपना चेहरा दूसरी ओर कर लिया....स्वेता.....अच्छा बाबा सॉरी....माफ़ कर दो.....मैं कौन होती हूँ.....सॉरी...सॉरी ...सॉरी....
अच्छा कान पकड़ता हूँ...मैं घुटनों के बल उसके सामने ही बैठ गया....और कान पकड़ लिए...सॉरी ...सॉरी...माफ़ कर दो ना प्लीज....मुझे क्या पाता था कि....क्या कि....वो बोली....यही कि तुम भी मुझसे प्यार कर सकती हो.....वो फिर दूसरी तरफ देखने लगी ....अच्छा बाबा सॉरी...कोई सवाल नहीं...बाप रे इतना गुस्सा.....उसने मेरी आँखों में देखा....और देखती रही....मैं बोला वैसे तो मुझे भी ना जाने क्यों बहुत दिनों से ऐसा महसूस हो रहा था...लेकिन...मतलब...लेकिन....मुझे डर लगता था...और सच कहूं तो मुझे ठीक से पता ही नहीं था प्यार कैसे होता है...वो इस बात पर हँस पड़ी...बुद्धू...अच्छा बोलो माफ़ किया ना.....ओके ठीक है बाबा....आई लव यू.....मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ....बहुत ज्यादा...ह्म्म्म हाँ सबसे ज्यादा.....वो मुस्कुराने लगी...बुद्धू...पागल....और ये क्या उन्हीं कपडों में चले आये.....मैंने खुद को देखा...क्यों बुरा लग रहा हूँ क्या....उसने सर हिलाया....और कुछ बुद्धू सा कुछ बोला.....
वो बोली अच्छा ठीक है आप कल मेरे घर आना...मैं पापा से आपको मिलाऊँगी....क्यों...किसलिए...आपको शादी नहीं करनी तो क्या...मेरे पापा को मेरी शादी करनी है....मैं मुस्कुरा गया....ओह....अच्छा ठीक है...उसने अपना पता लिखकर दिया.....ट्रेन ने आवाज़ दी....मैंने उसे ट्रेन में बिठाया....ट्रेन चलने को हुई....तभी वहाँ से एक फूल वाला गुजरा...मैंने एक गुलाब दौड़ते हुए स्वेता को पकडाया....और तेज़ आवाज़ में कहा आई लव यू.....उसने भी कहा आई लव यू ......
अगले रोज़ में एक अच्छे बच्चे की तरह उनके पिताजी के दरबार में हाज़िर हो गया....बैठने के कमरे में जहाँ एक ओर किताबें रखी हुई थीं....और दूजी ओर कुछ जीते हुए इनाम....कुछ चित्रकारी.....जिनसे पता चला कि स्वेता को इसका भी शौक है.....मैं खडा होकर किताबे देखने लगा....कुछ ही देर में स्वेता के पिताजी जिन्हें मैंने अंकल कहकर संबोधित किया का उस कमरे में प्रवेश हुआ.....
आंटी जी मिठाई, नमकीन, बिस्कुट और कॉफी लेकर आई....अंकल जी, आंटी जी और मैं काफी देर तक खामोश से रहे...फिर आंटी जी ने कहा लो बेटा....कुछ लो....मैंने थोडा सा झिझकते हुए कॉफी उठाई....पास ही वो किताब रखी हुई थी जिसे मैं देख रहा था.....तो आप पढने का शौक रखते हैं या यूँ ही.....स्वेता के पिताजी बोले....जी पढ़ लेता हूँ ...अच्छा लगता है पढना.....फिर इस तरह से बात शुरू हुई और काफी लम्बे समय तक किताबों में ही उलझी रही....आंटी जी बोली चैन लेने दोगे बच्चे को या बस यही सब....बस हँसी का माहौल बन गया....मैं भी मुस्कुरा गया....और अंततः अंकल जी बोले कि बेटा बाकी सब तो स्वेता ने आपके बारे में बहुत कुछ बता दिया है....और हमे ख़ुशी है कि उसने तुम्हें पसंद किया है....आंटी जी बोली बेटा तुम हमें पसंद हो....हमारी एक ही बेटी है.....बस गुस्सा थोडा होती है लेकिन दिल की बहुत अच्छी है....मैं मुस्कुरा गया.....हाँ सो तो है...मैंने कहा....तभी अन्दर से स्वेता की आवाज़ आई क्या कहा.....मैंने कहा कुछ नहीं .....मैंने तो कुछ कहा ही नहीं....और सब हँसने लगे...स्वेता भी हँसने लगी.....
दो महीने बाद हमारी शादी हो गयी.....पहली रात को जब मैं कमरे में दाखिल हुआ...तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर कहा अच्छा ये फ्रेंच किस क्या होती है....नाम कुछ सुना सुना सा लगता है.....वो मुस्कुरा गयी....बोली क्यों सिर्फ सुना ही है....हाँ सिर्फ सुना है....अच्छा बच्चू....जानती हूँ कितने बुद्धू हो....जाओ जाओ.....मैंने कहा सच्ची मुच्ची नहीं जानता....सिखाओ न .....वो मुस्कुरा गयी.....बुद्धू ...ऐसा कुछ बोला शायद उसने ....
26 comments:
उदास चेहरे पे हंसी आ गयी आपकी कहानी पढ़कर . इतनी खुबसूरत भी हो सकती है प्रेम कहानी..न न न शायद कभी नहीं....काश हर कोई किसी को इतना प्यार करता और जी भर जी लेता..
एक सुन्दर रचना.
शाहिद "अजनबी"
सुंदर प्रेम कहानी और सुखांत भी ।
चलो अच्छा हुआ।अंत भला सो सब भला,वर्ना डर लगने लगा था लव स्टोरियों का करूण अंत सुन-सुन कर्।भले ही मैने प्यार नही किया है लेकिन दो सौ से ज्यादा प्रेम विवाह करवाये हैं। बहुत से मित्रों ने भाग कर ही शादी की है।हर शादी का अलग रोमांच और अलग किस्सा।इस पर भी सीरीज़ लिखनी पड़ेगी लगता है।बहुत बढिया लिखा शुरू से अंत तक़ बांधे रखा।
बहुत सुन्दर रचना...........प्यार है बिल्कुल फिल्मो मे होता है वैसा........सुखांत......बहुत बहुत बधाई
एक अच्छी रचना के लिये आपको बधाई।
ओर रचना में बहुत सारी शरारतें भी दीं जो पसंद आयीं।
बहुत सुन्दर
वैसे अंत देखकर इसे प्रेमकहानी कहने को दिल नही कर रहा just joking:)
नमस्कार
Phew.. a cliche story told so beautifully...
In the last part when Adi reaches Shweta's home, my heart started pounding.I thought in bollywood ishtyle father will bash the poor guy..I instantly checked the right scroll level to see how much story left to guess the ending :P
I have said it many times..But I jst love ur style of writting..
But this one is simply great coz it had something which relates to me and very close to me as well..
Keep Blogging :)
Happy ending....good...I was afraid of a sad turn in some point...
You have such a hands on in writing that the reader is lost in the story...
Hey Thanks Preposterous girl, Bhavya, Mr. Shahid Ajnabi, Asha ji, Anil Ji, Om Ji, Vivek Ji and sohil.
Thanks to all.....aap yun hi apna sath banaye rakhein.
अच्छा लिखते हैं, सुन्दर रचना|
सुन्दर ताना बाना बुना है अनिल जी इस कहानी में.............. अंत में वो मिल गयी सुखान्त हो गया.............. आपका अंदाज़ लाजवाब है लिखने का
अब क्या कहूँ सब ने इतना कुछ तो कह दिया अब मै तो नायक और नायिका को आशीर्वाद ही दे सकती हूँ बहुत खूब्सूरत कहानी बधाई
बहुत sundar प्रेम kahaani....
rochak और sukhant..
padhkar मजा aa गया
अच्छी प्रेम कहानी और वो अन्त जो आजकल की प्रेम कहानीयों मे से कुछ को नसीब होता है।
positive ending .... achchi hain
aapki is kahani ko padhte padhte aur end tak aate aate dil ki dhandkan badh gayi thi ki pata nhi end kya ho magar ........happy ending se hothon par muskurahat aa gayi......lajawaab
ak sarl sidhi sachhi achi khani .
aapki sheli bhut achhi hai .likhte ehiyega .
shubhkamnaye
shobhana chourey
बहुत अच्छा लिखते हैं आप, निश्छल प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति... कहानी अंत तक बांधे रखती है और पढ़ने वाले को मुस्कुराहट के साथ विदा करती है...
Read all the three parts. Very well written and a very beautiful story. Happ y to see a happy ending!!
bahut hi achha likha hai aapne...kahin par bhi pakad dheeli nahi hoti...romantic feel to gazab ka laate hai aap...aur achhi baat ye thi ki kahin kuch forced nahi laga...iska romance SRK ki filmo se kai guna achha thaa :)
ant mast hai...sirf isliye nahi ki sukhant hua...ye french kiss wala angle bhi bahut hi shararati aur pyaara thaa...vaise pehla kiss hi french kiss?? :D
French kiss!!!
Aree bhaai hit yaa miss???
आपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
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आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
अरे वाह ! आप तो बहुत अच्छा लिख गए !
"...बुद्धू ....ऐसा कुछ बोला शायद उसने ....." ओये होए बड़े भोले हो जी आप .....!!
स्वेता मुबारक ....!!
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है! बहुत खूब!
SHUKRA HAI KHUDA,
IS KAHANI KI HAPPY ENDING HUI.
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