खुदा का घर
>> 06 June 2009
मंदिर की घंटियों की मधुर आवाज़ चारों और प्रतिध्वनि कर रही थी....साथ ही साथ शंखनाद अपने जोरों पर था....आखिर हो भी क्यों ना...सोमवार के दिन मंदिर में सबसे ज्यादा श्रद्धालु आते थे....शहर के सबसे पौश इलाके में बना ये मंदिर सबकी श्रद्धा का केंद्र था....हर दिन हजारों का चढावा चढ़ता है...और सोमवार के दिन की तो बात ही ख़ास थी....अच्छे खासे रईश आते थे....और खूब पैसा चढाते....
मंदिर के ठीक बाहर मुख्य द्वार पर भिखारियों की अच्छी खासी भीड़ लगती थी....सब इसी आस में आते कि रईशों के दिल पसीज गए तो...आज का पेट भर जायेगा....उन्हीं के बीच एक 60 साल का बूढा लगता 80 साल का था ..जो हर समय वहाँ दिखता था ...चाहे दिन हो या रात ...चाहे आंधी आये या तूफ़ान....उसे वहीँ पाया जाता....सभी लोग उसे पहचान गए थे...पिछले कई सालों से वो यहीं दिखता था....कुछ मांगता नहीं....लेकिन लोग खुद ब खुद उसे जरूर कुछ न कुछ देकर जाते....अमीरों का मानना था कि इस बूढे को कुछ देने पर खुद का भला ही होता है...ये मान्यता सी बन गयी थी...
मंदिर से बाहर निकलते एक सज्जन ने चाय वाले की दुकान पर बैठ एक चाय का आर्डर दिया....फिर चाय की चुस्कियों के साथ मुंह से निकला बड़े ही भले से हैं ये बूढे बाबा....ना कुछ बोलते, ना मांगते....जो और जितना मिल जाए....खा पी लेते हैं....चाय वाला मुस्कुराया....जो करीब 50 की उम्र पार कर चुका होगा....बोला कि बेचारा क्या किसी से कुछ बोलेगा....जिसका सब कुछ ख़त्म हो गया हो वो क्या किसी से बोलेगा...और बोलकर मिलेगा भी क्या उसे...एक वक़्त वो खूब बोला ...लेकिन मिला क्या उसे....आज जिस हालत में है...देख ही रहे हो आप....
मतलब मैं कुछ समझा नहीं...चाय पीते हुए वो सज्जन बोले...साहब अब क्या बोलना और क्या बताना...जिस मंदिर से आप अभी बाहर निकल रहे हो....वो किसी रोज़ इस बूढे का घर हुआ करता था....ये पूरी जमीन इसी की थी....बीवी गुज़र चुकी थी....एक बेटी थी उसकी शादी कर दी थी...उसके ससुराल वालों ने दहेज़ में ये जमीन मांगी थी....उसने हाँ कह दिया था....लेकिन कहते हैं ना कि कब किसकी बुरी नियत तुम पर हो....कोई क्या जाने....तब ये पूरा इलाका बस रहा था...सब अमीर लोगों ने यहाँ प्लाट लिए थे...सब गरीबों ने अपनी जमीन बेचीं थी....ये पूरा पौश इलाका बनता जा रहा था....उन्हीं दिनों ये बूढा अपने एक छोटे से कमरे में अकेला गुजर बसर करता था...पास में ही रहने वाले पंडित जी....जिन्होंने बगल वाला प्लाट खरीदा था...इनकी जमीन पर बुरी नज़र आ गयी....वो जानता था कि किसी की जमीन हड़पने का सबसे आसान उपाय क्या है....
चंद रोज़ के लिए बुड्ढा अपनी लड़की के पास क्या गया....पता नहीं रात ही रात उसने क्या किया कि अगले दिन आस पास सभी रहने वाले लोगों को इकठ्ठा करके बोला कि मुझे सपना आया है कि यहाँ माँ दुर्गा ने अपना वास बनाया है....मुझे यहाँ एक मूर्ती दिखाई दे रही थी....इस पर माँ दुर्गा की कृपा है...इसकी जमीन की खुदाई करके देखो.....कुछ लोगों ने फावडा लाकर खुदाई की तो वहाँ माँ दुर्गा की एक मूर्ती निकली....बस पंडित चिल्लाने लगा कि देखा मैंने कहा था न...अब अगर यहाँ मंदिर नहीं बना तो समझ लो अनर्थ हो जायेगा...खुद माँ ने ये कहा है ....अब सब तुम पर है ...क्या चाहते हो...सब लोगों ने कहा कि हाँ ठीक है यहाँ मंदिर ही बनेगा....बुड्ढा खूब रोया, चीखा, चिल्लाया...मगर उसकी एक ना सुनी ...उसे आश्वासन दिया गया कि उसे दूसरी जमीन खरीद कर दे दी जायेगी....पर देनी किसे थी....उधर उसकी लड़की के ससुराल वालों ने न जाने क्या किया कि....बताते हैं कि वो नदी में डूब गयी..कैसे डूबी..किसने डुबोया ....कोई नहीं जानता...केस चला....बुड्ढा वहाँ भी रोया, चीखा....मगर सुनता कौन है.....ये केस भी हारा....वो केस भी हारा.... बुड्ढा गम में पागल हो गया.....तब से ना कुछ बोलता है...ना सुनता है
और जिस मंदिर के पुरोहित के तुम पैर छू कर आ रहे हो वो पंडित वही है....उसका पूरा परिवार इस मंदिर से कमा खा रहा है....आज के समय में करोड़पति से कम नहीं....उसके लड़के इसी पैसों से दूसरे शहर में कारखाना खोले बैठे हैं.....तमाम अमीर हस्तियाँ आती हैं और ढेर सारा चंदा, चढावा चढा कर जाती हैं.....ऐश है....इस घर के तो अब ठाट हैं ....आखिर हो क्यूँ न खुदा का घर जो ठहरा....
तभी एक बच्ची कार से उतर चलती हुई अपनी मम्मी पापा के साथ आती है....एक केला उस बूढे को देती है....बेचारी नासमझी वाला सवाल करती है...बाबा आप भी क्या यहाँ मन्नत मँगाने आये हो.....तभी फिर से शंखनाद और घंटियों की आवाज़ आने लगती है
24 comments:
very good story
सही में ऐसी कितनी ही कहानियां धर्म के नाम पर बार बार दोहराई जाती है..!अपने देश में सबसे आसन काम धरम के नाम पर बरगलाना ही तो है...!अच्छी रचना के लिए बधाई...
वाह अनिल ..बहुत सुन्दर.
umda !
abhinav !
Behad hi khubsoorat !
very good story. This is such a common sight outside temples all over India.Good post Anil.
bahut sundar kahaani hai vishay vastu par gahri pakad rehati bahut hi achha likhte ho shubhkaamanayem
Nice narration ..
thanks for paying a visit to my page
धर्म के नाम पर अक्सर किसी कमजोर और बेबस व्यक्ति के साथ ऐसा ही होता है, बहुत ही अच्छा लिखा है आपने
बधाई ।
behtareen kahani
jane kyon man bhar aya
बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है अनिल जी आपकी पोस्ट............. सच्ची पूजा क्या है....... क्या भगवान् का यही न्याय है............ क्यूँ ऐसा होता है..........
सच कहूँ तो अनिल भाई मुझे ये कहानी नहीं हकीकत सी लगी...इसमें कोई शक नहीं की आज देश में धर्म के नाम पर पर धर्म कर्म के अलावा सब कुछ हो रहा है...हमारे यहाँ इसी बात को लोग इस अंदाज में कहते थे की ..हनुमान जी तो जमीन कब्जाने वाले भगवान् हो गए हैं...सड़क पर.. खेत में..खलिहान में...जहां जगह मिली मूर्ती लगा दी..फिर शुरू हो जाता है मंदिर निर्माण कार्य....कुछ भी बोले तो सवाल आपकी आस्था पर उठाये जाते हैं...और wo uthaate हैं .....अब क्या कहूँ...हमेशा की तरह दिल को छो गई आपकी कलम...और आपकी अभिव्यक्ति
Anil ye sirf kahani nahi ..... hakikat hain. aisa ho raha hain... samaj mein.... kaisa ajeeb hain na sabkuch....
bahut touching story hain
Hmmmmm nice story..
The last line had all that innocence and the reality picturized to be understood by the reader...
Cheers
अरे भईया काहे को खोल दिया उनका राज....चलने देते ना उनका रोजगार...!!ये भी है एक किस्म का व्यापार.....!!
धांसू स्टोरी। बहुत सटीक वर्णन किया है आपने। ऐसी कई कहानियां असल में भी देखने को मिल जाती हैं। बस बूढा इतना बेबस नहीं दिखा। वह भी मंदिर का हिस्सा हुआ दिखाई दे सकता है।
आँखों से आँसू निकल आये आपकी ये कहानी पढ़कर.....और कुछ ना कहा जाएगा.......
साभार
हमसफ़र यादों का.......
प्रिय अनिल बहुत सुन्दर प्रविष्टि है ! शुभकामनायें !
Achchhi kahaani..
Bahut sundar chitran...
Kaash ke dharm ke naam par ye sab naa hotaa.
Har desh men, har kaal men, har dharm men, har haal men....
Maanav amaanav ban gaye Paraamaanav (Bhagwaan) ke naam par...
Kyaa kahen, har dharm ke haath laal hain, in bhediyon ke chalate.
bhut achhi khani ke dvara dharm ke nam par thgi karne ka steek chitran
na jane kab jagege log ?
prntu ab to aisa lgta hai din prtidin asi ghtnaye bdh ki rhi hai .
shreemadbhagvaji me likha hai ,kalyug me vhi sab hoga .
mannatein bhi unhi ki poori hoti hain jinke paas koi kami pehle hi nahi hoti..
रोचक आलेख . उम्दा.
i liked ur story very much..Indeed people do such things in the name of religion..Its great to see bloggers like u bring up such topics..Kudos :)
jeevant chitran
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