मेरा चाँद मुझे आया है नज़र
>> 30 June 2009
अगर मैं तुम्हें चाँद कहूँ तो तुम क्या कहोगी...तो मैं कहूँगी सब्जी ख़त्म हो गयी है...आज शाम को बाज़ार से ले आना...और अगर मैं कहूँ कि तुम चाँदनी हो तो...तो मैं कहूँगी ऑफिस जाना है देर हो रही है...अरे सुनो न...जाने दो लंच भी बनाना है...क्या बीवीयों की तरह काम करने चल देती हो....मैं उसका हाथ पकड़ कर खीचता हूँ...क्या सुबह सुबह रोमांटिक हो जाते हो आप...चलो नहा लो...मुझे कन्धों पर हाँथ रख कर बाथरूम तक धकेल कर आती है....आपको भी ऑफिस जाना है और मुझे भी....
चन्द मिनटों बाद मैं आवाज़ देता हूँ अरे सुनती हो रामखिलावन की अम्मा ज़रा तौलिया तो देना...वो तौलिया लाती है...और मुस्कुराती हुई बोलती है...ये क्या रामखिलावन की अम्मा...कौन है रामखिलावन...अरे अपना बच्चा अगर लड़का हुआ तो तुम रामखिलावन की अम्मा हो जाओगी ना...छी...रामखिलावन...क्यूँ क्या बुराई है रामखिलावन में...मैं हँसते हुए बोलता हूँ...रामखिलावन की अम्मा...और हँसते हुए तौलिया उसके सर पर फेंक देता हूँ...वो मेरा गला पकड़ लेती है...एक बार और बोला तो...मैं हँसता हूँ....वो भी मुस्कुराने लगती है...और ये रोजाना तौलिया मुझसे क्यूँ मांगते हो...लेकर जाया करो...ह्म्म्म्म्म...हर रोज़ की तरह करता हूँ...और वो हर रोज़ की तरह मुस्कुरा जाती है...और इस तरह सर हिलाती है कि ...जिसका मतलब है कि आप कभी नहीं सुधर सकते
वो ऑफिस के लिए तैयार होने के लिए बोल नहाने चली जाती है...उसके तैयार होने तक मैं अख़बार पढता रहता हूँ...वो बाहर निकलती है...अरे क्या आप अभी तक अखबार पढ़ रहे हैं....तैयार नहीं होना...ऑफिस नहीं जाना...ह्म्म्म्म्म...हाँ हो रहा हूँ ना....और शर्ट पहनता हूँ...फिर एक आवाज़ अरे जान देखो इसका बटन....क्या हुआ बटन को...टूट गया...वो जल्दी से सुई धागा लेकर आती है...बटन लगाने लगती है...ये क्या करते हो आप बटन का...हर दूसरे रोज़ टूट जाता है...मैं मुस्कुराता हूँ...अच्छी लग रही हो...और गहरी सांस लेता हूँ...वो दांत से धागा काटती है...ये हर दूसरे रोज़ की कहानी है...उसे भी पता है...कि मैं जानबूझकर बटन तोड़ देता हूँ...और उसके धागा काटने के बाद उसे किस करूँगा...उसके बाद वो मेरी बंद मुट्ठी से टूटा हुआ बटन लेकर वापस डिब्बे में रख देती है...कुछ आदतें जो बन जाती हैं...दिल में घर कर जाती हैं...उनमें से ही है ये एक आदत
हर रोज़ की तरह ही वो अब मुझे नाश्ता करा रही है...मेरा मनपसंद परांठा....हर रोज़ की तरह वो अब बोलेगी...आपका परांठा खाना बंद करना पड़ेगा...देखो टीवी में क्या दिखाते हैं...और हर रोज़ की तरह ही मैं मुस्कुरा जाता हूँ...तभी मोबाइल की घंटी बजती है....दोस्त से बातें...बातें करते करते...ऑफिस निकलने के लिए अब मैं कुछ खोजने लगता हूँ...कपडे पलटता हूँ...कभी सोफा...कभी बिस्तर....कभी कुछ तो कभी कुछ...क्या हुआ क्या खोज रहे हैं आप...अरे...और फिर खोजने लग जाता हूँ...अरे बताओ ना...काफी देर खोजता हूँ...अरे मोबाइल नहीं मिल रहा...वो मुस्कुरा जाती है...आप भी न इतने बड़े भुलक्कड़ है कि...कान से क्या लगा रखा है...अब मुस्कुराने की बारी मेरी है...अपनी इस बेवकूफी और भूलने की आदत पर मुझे हंसी आती है...
दिन गुजर गया है...शाम हो चली...ऑफिस से वापस लौटना है...उसकी कॉल आ रही है...कहाँ हैं आप...निकले कि नहीं...ह्म्म्म...बस निकल रहा हूँ...अच्छा आज याद है ना...क्या...उफ्फ फिर भूल गए...कल बोला था ना आज हम बाहर खाना खायेंगे...अरे हाँ...हाँ ठीक है...ठीक है आप वहाँ पहुँच जाना...ह्म्म्म्म...कुछ देर बाद हम आमने सामने होते हैं...अच्छा ये केंडल लाइट डिनर भी अच्छा तरीका है...वो मुस्कुराती है...वो कैसे...वो ऐसे की चाँद भी तो अँधेरे में ही दिखता है...और मेरा चाँद बहुत खूबसूरत हो जाता है अँधेरे में...वो खिलखिला उठती है...आप भी ना हमेशा
वापस घर आ मैं अपने लॉन में खडा हूँ...वो पीछे से आकर मुझे कहती है...अच्छा आँखें बंद करके पहचानो कि मेरे हाथ में क्या है...मैं गहरी सांस लेता हूँ...गाजर का हलवा...इसकी खुशबू में तुम्हारे हाथों का जादू बस जाता है...फिर हर बार की तरह वो मुझे अपने हाथों से हलवा खिलाती है...अरे रुको मैं कुछ भूल गया...अरे हाँ...एक मिनट रुको...मैं कमरे से वापस आकर उसे गुलाब देता हूँ...हर रोज़ की तरह मैं इसे लाना नहीं भूला...वो मेरे सीने से लग जाती है...आई लव यू की मीठी मीठी आवाज़ मेरे कानों में...मेरी साँसों में घुल रही है
28 comments:
गजरा मोहब्बत वाला
गजरा या गजरेला
अथवा कजरा
जब मोहब्बत हो तो
सब्जी, तौलिया, अखबार, चाय
जो भी हो सामने
सब मोहब्बत वाले हो जाते हैं
अच्छी रचना दिल हुआ प्रसन्न।
man khush ho gaya bhaiya
आपकी शब्द बुनकरी मनहर है।
रचना पढने को विवश करती है
बहुत सुंदर रचना. धन्यवाद.
रामराम
मोहब्बत की बातों को क्या रुप दिया है। वाह जी वाह।
अनिल जी आप शब्द लिखते नहीं हो............... बुनते हो .......... एहसास की चासनी में डुबो कर ............. सुन्दर लिखा है
kya likhun samajh nahi aa raha......
gajab ka likhte kain anil ji...
badhai.........
बहुत सुन्दरता से रचा है, बधाई.
So Romantic :)
kya kahein hum to bas aapki lekhni ke deewane hain
Beautiful....
pyaar aur yatharth ka khoobsurat mishran............
ati uttam!
bahot badhiya...
भई वाह...विवाहित जीवन के भावों की सुन्दरतम प्रस्तुति....कमोबेश ये सबके साथ होत है.....पर ये सपना है या हकीकत..ये आप ने बताया ही नहीं...
विवाहित जीवन के मीठी झलकियाँ ..मन आनंदित हो जाता है !
ीअनिल जी आपकी रचनाओं का मुझे हमेशा इन्तज़ार रहता है मगर हैरान हूँ कि ये रचना मुझ से कैसे छुपी रह गयी बहुत ही सुन्दर और भावमय अभव्यक्ति है बधाई
realistic yet romantic
aapke shabdon men ye taazgi aur khushboo hamesha rahe...
mohabbat ke ahsaason ko badi khoobsoorti se bandha hai......lajawaab
So many romantic posts back to back!! Something special?? eh??
Love ur writting style!! Now have to check ur archives as well.. BTW are romantic posts ur forte??
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया
प्रसन्न वदन जी ये सिर्फ एक ख्याल है क्योंकि मेरी अभी तक शादी नहीं हुई
Preposterous Girl ji मुझे रोमांटिक पोस्ट लिखना अच्छा लगता है....शायद ऐसा मेरा स्वाभाव हो या ये मेरे नेचर से मेल खता है :) :)
kya likhte hain aap
mashaallah
bahut hi practical aur meethi rachna hai. liked it a lot. great post!
Anil aap ke liye mere blog par ek award wait kar raha hain
विवाह होने तक इस तरह की रूमानियत के ख्वाब देखने में कोई बुराई नहीं है.
bahut pyari see man ko chhu lene vaal prastuti.kya kahe Anil bhai bahut bhavuk aur balance hokar prastuti dee, married ho ya unmarried sabko masti dene mein saksham .dil se badhai.
waaaaaaaaaaaah
aur sirf waaaaaaaaaaah
kya baat hai , bhai padhkar dil khush ho gaya ji
badhai aur badhai
Aabhar
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html
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