मेरे प्यार के इज़हार का मुश्किल दौर

>> 28 August 2009

यूँ तो जिंदगी में कई मुश्किल दौर से गुजरा...और गुजरता हुआ यहाँ तक पहुंचा...पर जब अपनी आँखें बंद करके सोचता हूँ तो पता है सबसे मुश्किल घडी कौनसी लगती है...तुम्हें पा लेने और फिर खो देने के एहसास का पूर्णतः सच होना...तुम्हें पा लेने से पहले जब घंटो तुमसे गुफ्तगू करता था...वो तुम्हारी ढेर सारी बातें...जो कभी मुझे बच्चों की सी हरकतें लगती और कभी एकदम से बड़ों की सी...और इन सबके बीच वो ढेर सारे खुशियों के पल...उन्हें दामन में समेट लेने का मन करता...

कई रोज़ बाद जब एहसास हुआ कि ये मुझे क्या हो गया है...ये मेरा दिल आखिर तुम्हारे होने और ना होने पर अपनी शक्लो सूरत क्यों बदल लेता है...और तुम्हारी हाँ और ना की आशंकाओं से घिरे मेरे दिल का क्या हाल रहा उन दिनों...ये तो दिल ही जानता है...कभी दिल में ख्याल आता कि तुम्हारे चेहरे को अपने हाथों में लेकर...तुम्हारी आँखों में आँखें डालकर कहूँ कि "हाँ तुम ही तो हो जिसके होने का एहसास हरदम मेरे साथ रहता है"...कभी हथेलियों पर...कभी पीठ पर तुम्हारी उँगलियों से बनायीं गयी बेतरतीब सी शक्लों से...कभी जेब में पड़े तुम्हारे नर्म एहसास से...कभी कई घड़ियों की टिकटिक तक मेरी आँखों में तुम्हारी आँखों के एहसास से...

जब ख्याल आया कि तुमसे अपने उस एहसास को बयान करूँ...तो सचमुच वो सबसे मुश्किल घडी थी...एकदम मुश्किल दौर में पहुँच गया था...शायद मैं भी तुम्हारी ही तरह से कभी बच्चों सी तो कभी बड़ों सी हरकतें करने लगा था...

कभी मन करता कि तुम्हारे पास आकर तुमसे कह दूँ...क्या तुम यूँ ही हरदम मुझे ये एहसास कराओगी...क्या हरदम तुम यूँ ही मेरे साथ, मेरे पास रहोगी...और तेज़ दौड़ लगाऊं...तेज़ बहुत तेज़...ताकि तुम्हारे उस हाँ और ना की कशमकश से छुटकारा तो मिले...और दौड़ता दौड़ता हांफने तक...पसीने में चूर होने तक मुझे कुछ सुनाई न दे...कि कहीं तुमने ये तो नहीं कह दिया कि 'नहीं'...या फिर मुझे सोचने का वक़्त चाहिए...क्योंकि कुछ भी ऐसा ना सुनने के कारण मैं दौड़ना चाहता था...पसीने में तर बदर होने तक...उस पल लगा कि मैं भी कितना बच्चा हूँ...एकदम से...और जब तुमसे एक दिन ये बात कही तो कैसे तुम हंस दी थी...बुद्धू...शायद ऐसा कुछ कहा हो

एक पल लगा कि तुमसे बातों ही बातों में कह दूँ कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो...इस बात से भी ज्यादा...इस एहसास से भी ज्यादा...इस ख्वाब से भी ज्यादा...इस ख़याल से भी ज्यादा...सबसे ज्यादा...क्या तुम हरदम मेरे साथ रहोगी...यूँ ही...कभी बच्चों की सी तो कभी बड़ों की सी बनकर...पर इन सब बातों के दरमियान भी तुम मुझे खिलखिलाकर हँस दोगी जैसी सी लगने लगती...

जिस दिन, जिस पल...उस टिक टिक की आवाज़ वाली घडी के साथ मेरे दिल की आवाज़ सुनाई देने लगी...उस दिन एहसास हुआ कि अभी बोल दूँ...शायद रात के 2 बज रहे होंगे...उस खामोशी में भी एक प्यारी सी धुन सुनाई देने लगी थी...जो घडी की टिकटिक और मेरे दिल के तेज़ धड़कने से भी जुदा थी...उस एहसास की धुन जो उस पल हुआ था...सबसे प्यारी...बिल्कुल तुम्हारी तरह

पता है सबसे ज्यादा मुश्किल घडी कौन सी थी...जब मैंने अपने दिल की बात तुमसे कह दी थी...और फिर मोबाइल का नेटवर्क ना मिल पाने पर...फ़ोन के कट जाने पर...तुम्हारी हाँ और ना के बीच की कशमकश से मैं और मेरा दिल किस कदर दो चार हुआ...ये या तो दिल ही जानता है या वो एहसास खुद...पूरे 21 मिनट 37 सेकंड में मैंने वो सब एहसास बयान किये थे...जिसमें तुम बस सुन रही थीं और मैं बस उस एहसास को बयाँ कर रहा था

उस जिद्दी नेटवर्क से लड़ता हुआ...उसे मनाता हुआ...कई जतन से जब मोबाइल के बटन दबा रहा था...तब उस दौरान तुम्हारी कॉल का आ जाना...सच पूंछो तो "मेरे दिल की हार्ट बीट एकदम से पीक पर पहुँच गयी थीं"...उस पल जब तुमने कहा कि "हाँ"...तुम जानती हो उस एक शब्द को सुन लेने भर से मैं और मेरा दिल सातवें आसमान पर था...ऐसा लगा कि सुबह की उस नर्म घास की पत्तियों पर ओस की बूंदे मेरे पैरों को छू रही हों...पहाडों की छत पर खडा मैं तुम्हें बाहों में ले ठंडी ठंडी हवा का आनंद ले रहा हूँ...सच वो पल मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल था...और वो घडी सबसे मुश्किल की घडी...सच तुम्हारी हाँ ने मेरी जिंदगी के मायने ही बदल दिए...

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मेरा वो प्यारा सा एकतरफा प्यार

>> 25 August 2009

वो बसंत ऋतु से पहले के दिन थे...जब पेड़ से पत्ते झड़ रहे थे और नए पत्ते आने को थे...शरद ऋतु ने अपने पाँव पूरी तरह पसार लिए थे...और शर्दियों की वो धूप बड़ी प्यारी थी...वो गुनगुनी सी धूप और आने वाले बोर्ड एग्जाम...किताबों का और मेरा आपस का रिश्ता बड़ा ही नेक और मजबूत था...वो मेरी दोस्त थीं...और उनके साथ रहना मुझे बहुत अच्छा लगता था...उस गुनगुनी धूप और आने वाली बसंत ऋतु से भी प्यारा कोई होता है...ये मैंने उस रोज़ जाना...

जिस रोज़ वो उन जाडों की गुनगुनी धूप में मुझे दिखी...उस रोज़ सब कुछ जाता रहा...मेरा दिल..मेरा चैन...पढाई-लिखाई...और किताबें दोस्त बनकर साथ तो थीं...लेकिन अब किताबों के दिल की बात मैं ना तो सुनता था और ना ही समझता था...अब एक नयी सी आवाज़ सुनाई देती थी...मेरे दिल की अजीब सी हरकत की आवाज़...जो कमबख्त उसके सामने आते ही जोरों से धड़कने लगता था

महज 15 बरस के उस मासूम दिल का क्या हाल था ये तो वो मेरा मासूम दिल जानता था या फिर में...क्योंकि वो 15 बरस का दिल तो आखिर मेरा ही था...मुझे उसमें शिल्पा शेट्टी दिखती थी या यूँ कहूँ कि शिल्पा शेट्टी में वो दिखती...कहने को तो छलांग भर गली फांदने के बाद उसका घर था और नीम के पेड़ का आधा हिस्सा उसके आँगन में अपनी छाया बिखेरता और आधी मेरे आँगन में

महज 15 बरस की उम्र में एक मासूम दिल क्लीन बोल्ड हो गया...उसकी वो खिलखिलाती हंसी...जो मेरे दिल पर ऐसा असर करती कि बस पूंछो मत...एक तो जाडों की वो धूप और छत पर पढने का सफ़र जो अपनी राह बदल चुका था...रास्ते कब और कैसे बदल जाते हैं ये मैंने तब जाना...बहुत जद्दोजहद के बाद पता चला कि उसका नाम नम्रता है और वो भी दसवीं की परीक्षा देने वाली है...घर में उसे रोली बुलाते हैं, उसके घर में एक कुत्ता है, वो तीन बहने और एक भाई हैं, पिताजी फार्मेसिस्ट और माँ गृहणी हैं...मेरी अपनी सरकारी छत से उसका सरकारी आँगन साफ़ साफ़ दिखता और उसके दीदार के लिए मैं सारा दिन छत पर ही टंगा रहता...

कई रोज़ बाद हमारे एक बड़े भाई साहब ने हमको इस बात का इल्म कराया कि हमें प्यार हुआ है...आने वाली बोर्ड परीक्षा और इस होने वाले एकतरफा प्यार का ये अनूठा मेल था...होने जा रही खुदखुशी का हमें जरा भी इल्म ना था...क्योंकि बोर्ड परीक्षा में अपने विद्यालय में सबसे ज्यादा नंबर लाने का दारोमदार हमारे ही ऊपर था...सभी अध्यापकगण मुझसे यही उम्मीद लगाये हुए थे और मैं निगोड़ा नयी उम्मीद पाल बैठा था...एकतरफा मोहब्बत को एक सम्पूर्ण प्रेम कहानी बनाने की

हमारी प्रेम कहानी का तो पता नहीं लेकिन नम्रता को इस बात का इल्म हो चला था कि ये लड़का हमारे चक्कर में है...हम पर लाइन मारता है...हम इस बात से बेखबर कि आने वाली बोर्ड परीक्षाओं का क्या होगा...हम अपने एकतरफा प्रेम को बढ़ावा दे रहे थे...लेकिन कहते हैं ना कुछ एहसास उसी वक़्त होते हैं जब वो क्षण सामने आता है...आने वाली बसंत ऋतु से पहले की अपनी की गयी तैयार गठरी को लेकर हम अपनी परीक्षा देने गए...तब हमें एहसास हुआ कि एकतरफा प्यार, वक़्त और बोर्ड परीक्षा के क्या मायने हैं...और इस बात का भी कि हर काम का एक वाजिब समय होना चाहिए

परीक्षा ख़त्म होने तक हम एक ज़ंग जीत चुके थे और वो ये कि नम्रता से हमने बात कर ली थी..."आपका एग्जाम कैसा गया"...और सिर्फ इतनी बात कर लेने भर पर हम फूले नहीं समां रहे थे...परीक्षा ख़त्म होने के साथ ही हम अपने उन भाई साहब के बहकावे में आकर अपनी जिंदगी का पहला प्रेम पत्र लिख चुके थे और जो गलत हाथों में पहुँच जाने के कारण हमारे अधूरे प्यार का कारण बना

जब लड़की को प्रेम पत्र ना मिलकर उसके घर वालों को मिल जाए तो उसका हश्र क्या होता है ये उसी दिन पता चला...जब मेरे पहला और आखिरी प्रेम पत्र पकडा गया...ख़ुशी इस बात की थी कि चलो लड़की को पता तो चल गया कि हमें उससे प्यार है...और गम बहुत सारे कि अब क्या होगा और अब तो प्रेम पत्र जैसी चीज़ भी नहीं कर सकते...बस उसे देखना और उससे बात करने की कोशिश के आलावा हम कुछ ना कर सके...उसके सामने पड़ते ही हमारा गला सूख जाता और हाथ पाँव के रोये खड़े हो जाते...

बोर्ड की परीक्षाओं में हमारे नंबर 73% प्रतिशत आये जो कि उत्तर प्रदेश बोर्ड की परीक्षाओं के हिसाब से अच्छे थे...और इसके साथ ही हमारी मोहब्बत के दुश्मन कुछ कम ना बने...हमारी ही कालोनी में रहने वाले और हमारी ही हमउम्र मुएँ लोंडो ने हमारे प्यार को शमशान घाट पहुँचाने का बीडा उठा लिया...उन्होंने नम्रता और उसकी सहेली के क्या कान भरे...कि हमें राखी बांधने के लिए तैयार करवा लिया...

जिसको चाहते हों और वही राखी बाँध दे तो उसका ना जीना आसान होता और ना मरना...ये हमने उन दिनों उस होने वाले प्लान के दौरान जाना...वो तो खुदा हम पर मेहरबान रहा कि नम्रता ने हमें राखी नहीं बाँधी...वरना ना जाने क्या हश्र होता हमारी मोहब्बत का...फिर दिल में यह आस भी रही कि राखी नहीं बांधी तो मतलब कि कुछ चांस बनते हैं...लेकिन वक़्त बीतता चला गया और हम बस एक तरफा प्यार ही करते रहे...उस दौरान हमने बामुश्किल 2-3 बार ही नम्रता से बात की...लेकिन हाल ये रहता कि उसे देख पाने के लिए ना जाने क्या क्या करना होता

वो बारहवीं के बाद का दौर था...जब पता चला कि अब हमारा इस शहर से दाना पानी उठ गया है...पिताजी का ट्रांसफर हो जाने के कारण अब हम उसे कभी नहीं देख पायेंगे...और इसी गम के साथ हमने अपना शहर बदला...कुछ 8-10 बार हमने उसके घर के नंबर पर फ़ोन करके उससे बात करने की कोशिश की लेकिन जब कभी भी उसने फ़ोन उठाया हम कभी कुछ बोल ना सके...गले में घूँट निगलते ही रह गए...और उसके साथ ही दिन से महीने, महीने से फिर साल बने...धीरे धीरे एहसास हुआ कि शायद वह एकतरफा प्यार ही था...और जो वक़्त के साथ ख़त्म सा हो चला...

करीब 8 बरस बाद और अभी 1 बरस पहले एक सुखद संयोग हुआ...आगरा में, ये उस खुदा का ही करिश्मा था कि उस ऑटो में जिसमें मैं बैठा उसमें वो पहले से बैठी थी...दिल अजीब कशमकश में था और खुश भी...वो मेरे सामने थी और मैं बिलकुल बदल चुका था...उसने मुझे पहचाना नहीं...मैंने उसे हैलो बोला और उसके साथ ही ये भी कि शायद आपने मुझे पहचाना नहीं...बातों ही बातों में मैंने उसे पुराने दिनों की चन्द बातें...नीम का पेड़...वो छत याद दिलायी...पुरानी बातें जानकर वो मुस्कुरा गयी...'काफी बदल गए हैं आप, इतने दिनों बाद आप यूँ मिलोगे मैंने सोचा भी नहीं था'...ये जब उसने कहा तो दिल में सुखद एहसास सा हुआ...आगे की बातों में पता चला कि उसकी शादी पक्की हो चुकी है...मैंने मुस्कुराते हुए उसे बधाई दी...

उसके ऑटो से उतर जाने के बाद सब कुछ फ्लैश बैक में चला...फ्लैश बैक अच्छा लगा और उस दिन ये जानकर मुझे बुरा नहीं लग रहा था कि उसकी शादी पक्की हो गयी...हाँ अपने पुराने दिनों के फ्लैश बैक पर मैं मुस्कुरा रहा था...दिल मैं बस यही बात रह रह कर आ रही थी...''उफ़ मेरा पहला प्यारा सा एकतरफा प्यार"...

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बंद पुराने संदूक से कुछ यादें

>> 21 August 2009

चन्द रोज़ पहले जब घर गया तो यूँ लगा जैसे कि सुकून और आनंद तो बस वहीँ है जहां आपके अपने हों...कहने को तो कई शहर बदल दिए इन पिछले 6-7 सालों में मगर सच तो यही है कि मैं जब भी सुकून की तलाश करता हूँ तो वो मुझे माँ के पास ही मिलता है...उनका आँचल थामें...उनके पल्लू को पकड़ पीछे छुपा सा खडा हुआ दिखता है वो सुकून...जैसे मैं बचपन में खडा रहता था...बेपरवाह...जानता था माँ जो है हर दुःख और परेशानी से बचा जो लेगी...और जब तब बापू की मार से बचने के लिए भी मेरी पसंदीदा जगह भी माँ का पल्लू पकड़ उनके पीछे छुप जाना ही बहुत होता था...अब जब मैं उनके पास जाता हूँ तो उस सुकून ने मेरी जगह ले ली है...और जैसे चिढा सा रहा हो...लेकिन मेरे माँ के पैरों में गिरते ही ना जाने वो कहाँ चला गया...शायद मैं जो पहुँच गया था

उस रोज़ माँ ने अपने पुराने बक्से को खोल कुछ यादें निकालनी चाहीं...माँ ये क्या है...ये टिफिन...ये बक्से में कैसे...उस रोज़ माँ ने बताया कि जब मैं छोटा था तब इसी टिफिन में खाना ले जाया करता था...कमाल है...माँ ने अभी तक संभाल कर रखा हुआ है....और ना जाने ऐसी कितनी यादें होंगी जो माँ ने यूँ ही संभाल कर रखी होंगी...पूंछने पर माँ ने हंसते हुए कहा कि जब तेरा कोई बच्चा होगा तब एक बार उसको भी इस टिफिन में खाना देकर भेजूंगी...मैं मुस्कुरा दिया...ओह माँ तुम भी ना...

उसी रोज़ मुझे वो फोटो माँ ने दिखाया जो छटवीं कक्षा में मुझे माँ ने ले जाकर खिचाया था...माँ ने बताया कि उस रोज़ उन्होंने मुझे बहुत डांटा था, शायद पिटाई भी की थी और बाद में माँ के सीने से लग रात में काफी देर तक रोया था और कब सो गया पता भी नहीं चला...अजीब बात है वो फोटो शायद बहुत सालों बाद मैंने देखा था...खुद को भी नहीं पहचान पाया था...पर माँ को हर वो बात याद है...शायद हर वो दिन जब मैं उनके पास था...

वहाँ रहते उस रोज़ निशा का फ़ोन आया...माँ ने फ़ोन उठाया था...कमरे में आकर मुझे दिया...बाद में माँ पूंछ रही थी कि कौन है...मैं मुस्कुरा दिया...माँ...तुम भी ना...क्या सोचती रहती हो...वो मेरी दोस्त है...माँ बोली बस...मैं फिर मुस्कुराया...माँ बोली फिर हमारा क्या फायदा...मेरे मुंह से निकला...माँ...कुछ देर बाद बोली अच्छा तो कोई लड़की पसंद है क्या...मैंने ना में सर हिलाया...माँ मुस्कुरा दी...

माँ ने बताया कि जब मैं छोटा था और हम जब आगरा में रहते थे तो वहाँ पड़ोस में ही रहने वाली आंटी जी की लड़की उन्हें बहुत पसंद थी और तब वो सोचा करती थीं कि शायद बड़े होने पर हम दोनों की शादी करा दें...मैंने हँसते हुए पूंछा कहाँ हैं अब वो...माँ ने अफ़सोस जताते हुए बताया कि उसकी शादी हो गयी...माँ बता रही थीं कि बचपन में वो लड़की और मैं गर्ल फ्रेंड और बॉय फ्रेंड बने घूमते थे...हमेशा साथ खेलते थे...मैंने सारी बात सुनकर शर्म से अपना मुंह उनकी गोद में छिपा लिया

माँ ने एक बार फिर पुँछ ही लिया कैसी है वो....मैंने कहा कौन...अरे वही निशा...मैंने कहा माँ...तुम भी ना...माँ बोली तुझे कोई और लड़की पसंद है क्या...मैंने ना में सर हिलाया...वो बोली जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया और एक हमारा लड़का है...फिर मुस्कुराने की बारी उनकी थी...मैं क्या करता...मैं भी एक क्यूट सी स्माइल देकर रह गया...और तकिये में अपना मुंह छिपा लिया...ओह माँ :) :)

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सफर - ऐ रोमांटिक जर्नी (अन्तिम भाग)

>> 17 August 2009

इसे पढने से पहले पहला भाग और दूसरा भाग अवश्य पढ़ लें

कुछ सफ़र दिल में पूरे होने की आस लिए हुए बीच में ही अधूरे छूट जाते हैं...मानव और पल्लवी का ये सफ़र भी कुछ ऐसा ही था...मानव वहाँ से फ्लाईट पकड़ कर दूसरे शहर को रवाना हो जाता है और पल्लवी वहाँ से कहाँ गयी मानव को कुछ नहीं पता था...लेकिन उसने ऐसा तो बिलकुल नहीं सोचा था...कि इस सफ़र का ऐसा भी एक मोड़ आएगा...वो बस एक अजीब उधेड़बुन में था...क्या उसे पल्लवी अच्छी लगती है...क्या पल्लवी उसे दोबारा मिलेगी...

पल्लवी अपने घर पहुँचती है उसकी माँ उसका बैग पकड़कर कहती है ये पैर में क्या हो गया...अरे वो कुछ नहीं हल्का सा पैर मुड गया था...अब ठीक हूँ...अच्छा ठीक है हाथ मुंह धो ले और फिर कुछ खा पीकर आराम कर, सो जा थक गयी होगी...पल्लवी अपने कमरे में जाती है और कुछ ही देर में सो जाती है...उसकी माँ उसके कमरे में खाना खाने के लिए कहने आई लेकिन उसे सोता देखकर चली जाती हैं...पल्लवी को अचानक से मानव का चेहरा सामने दिखाई देता है...बिलकुल ऐसे जैसे कि वो उसके एकदम करीब हो...बिलकुल पास...एकदम पास...और वो जाग जाती है...रात के 3बज रहे हैं...मानव मेरे सपने में...पल्लवी सोचती है ये मुझे क्या हो गया है...उठकर रसोई में जाकर कुछ खाकर फिर सो जाती है

सुबह पल्लवी की सहेली उसके घर आती है...हैलो आंटी जी...कहाँ है पल्लवी...अपने कमरे में...वो पल्लवी के कमरे में जाती है...तो आ गयी मैडम...बड़े लम्बे टूर पर गयी थी आप तो...तो क्या क्या किया वहाँ...पल्लवी उसे मानव के बारे में बताती है...आये हाय क्या बात है...कैसा था हैंडसम...कैसी बातें करता था...क्या कहा उसने...क्या क्या बातें हुई...कुछ हुआ...पूजा तू भी न...अरे बता ना यार...ऐसा कुछ नहीं हुआ...हाँ शुरू में थोडा फ्लर्टी लगा...बाद में ठीक था...आय हाय फ्लर्टी...तो बात कहाँ तक पहुंची...कैसी बात...अरे लव शव...और क्या...उसने आई लव यू बोला कि नहीं...तूने कुछ कहा कि नहीं...वगैरह वगैरह...पूजा तू भी ना...ऐसा कुछ नहीं था...ला उसका नंबर दे में भी बात करूँ...आखिर हम भी तो देखें कौन है और कैसा है...और जब पल्लवी आखिरी की बात बताती है तो पूजा दंग रह जाती है...व्हाट...मतलब तूने ऐसा बोला...पूजा पल्लवी को तमाम बातें बोलती है...तेरा कुछ नहीं हो सकता...वगैरह वगैरह

पल्लवी कहती है जो होना है सो होगा...खामखाँ की फिक्र न कर...पूजा कहती है कि अगर तुझे उससे प्यार हो गया तो...फिर तू क्या करेगी...व्हाट...'प्यार'...कुछ भी बोलती रहती है तू...पल्लवी पूजा को बोलती है...ये अपनी लव थियोरी बंद कर और कुछ काम की बात कर...पूजा कहती है चल बाहर घूमने चलते हैं...फिर दोनों स्कूटी पर बाहर चल देती हैं...रास्ते में पल्लवी पूजा को बताती है कि उसे बस अपनी एक बात अच्छी नहीं लगी कि उसने उसे पूरा सच नहीं बताया कि वो लेक्चरार भी है...पूजा खामोश रह जाती है कुछ कहती नहीं...बस इतना कहती है कि अच्छे लड़के किस्मत से मिलते हैं और तूने अपनी किस्मत पर ठोकर मार ली

पूजा और पल्लवी वापस घर आ जाती हैं...पूजा उसे छोड़कर चली जाती है...पल्लवी अपने कमरे में सोच में डूबी हुई बैठी है...बार बार उसके दिमाग में मानव से बात करते रहने का फ्लैश बैक चलता है...कभी उसकी कोई बात तो कभी उसकी कोई बात...उसकी माँ आती है और कहती है खाना खा ले बेटा...

अब पल्लवी को हर छोटी बड़ी बात में मानव के जुड़े होने का एहसास होने लगता है...कभी टेबल पर रखे आलू के परांठों से तो कभी चाय से...कभी किसी बात से तो कभी किसी बात से...वक़्त धीरे धीरे बीतने लगता है...पर उसका सोचना कि वक़्त के साथ मानव से जुडी यादें भी जाती रहेंगी...ऐसा कुछ भी नहीं हुआ...हर दूसरे दिन उसे मानव सपनों में दिखाई देने लगा...

कई महीने बीत चुके पर वो बातें...वो चेहरा अभी भी जेहन में था...वो यादें कमबख्त पीछा ही नहीं छोड़ती...सोच में डूबी हुई पल्लवी अपने कमरे में बैठी है...खिड़की के सहारे...वो डूबते हुए सूरज की ओर देख रही है...कमरे में पन्ने बिखरे पड़ें हैं...पंखें की हवा से अस्त व्यस्त...पल्लवी की माँ कमरे में आती है...पल्लवी...अरे ये सब क्या है...कहाँ ध्यान है तेरा...वहाँ क्या देख रही है...पल्लवी का ध्यान टूटता है...अरे कुछ नहीं...वो डूबता हुआ सूरज...क्या बात है पल्लवी...कुछ बात है क्या...नहीं तो...कुछ नहीं...तो फिर तू आजकल इतनी उखड़ी उखड़ी क्यों रहती है...अरे कुछ भी तो नहीं हैं...आप भी ना खामखाँ परेशान हो रही हैं...कुछ होगा तो आपको नहीं बताऊंगी

पूजा पल्लवी के घर आती है...उसके कमरे में जाती है...पल्लवी उसे सारी बात बताती है...पूजा सारी बातें ध्यान से सुनती है...पल्लवी की आँखों में देखती है और फिर जोर से हंसती है...बेटा तू तो गयी काम से...तुझे प्यार हुआ है...और तुझे पता ही नहीं...व्हाट...प्यार...क्या बात कर रही है...पल्लवी पूजा को बोलती है....क्यों ये उसका सपनों में आना...उसकी बातें सोचती रहना...उसकी बातें अच्छी लगना...ये प्यार नहीं है तो और क्या है...पल्लवी सोच में पड़ जाती है...इसे प्यार कहते हैं...हाँ बेटा इसे ही प्यार कहते हैं...पूजा बोली...तो अब...पल्लवी पूजा की ओर देखती है

दोनों सोच में पड़ जाते हैं कि अब क्या हो...पूजा बोलती है तूने सारे रस्ते तो पहले ही बंद कर दिए और अब मुझसे उम्मीद लगा रही है कि कुछ हो जाये...तब तो उस दिन बड़ी कह आई थी कि मैं खुद को समझना चाहती हूँ...मैं देखना चाहती हूँ...वगैरह वगैरह...अब तो बस ऊपर वाले पर छोड़ दे...जो होना है अब वही करेगा...हम लोग तो वैसे भी अब कुछ नहीं कर सकते...पल्लवी पूजा के चेहरे की ओर देखती है...और पल्लवी की आँखों से आंसू निकल आते हैं...वो पूजा के गले से लग जाती है

पूजा पल्लवी को समझा बुझा कर चली जाती है...आज पल्लवी जी भर के रोई...खूब...जितना दिल चाहा...उसकी नज़र खिड़की के बाहर जाती है...बारिश होने लगी...इस बारिश के साथ ही मानव की यादें जुडी हुई थी...वो भागती हुई छत पर जाती है...और बाहें फैलाकर बारिश में भीगती है..."कभी खुद की मर्ज़ी से बारिश में भीगी हो...नहीं भीगी हो तो भीग कर देखना...तब पता चलेगा"...एकदम फ्लैश बैक में चली जाती है पल्लवी...ये बात मानव ने उसे बोली थी...आज मानव की बात सच साबित हुई...उसे आज बारिश में अच्छा लग रहा था...साथ ही साथ ये बारिश एक तड़प लिए हुए थी...सब कुछ था लेकिन मानव कहीं नहीं था

अब पल्लवी को हवा में दुपट्टा उडाना अच्छा लगता था...अब वो आलू का परांठा खाना पसंद करने लगी थी...पूजा के साथ तेज रफ्तार से चलती स्कूटी पर खड़ी होकर वो अपना दुपट्टा उडाती...अब उसे उन सब बातों से प्यार हो चला था जो मानव ने कहीं थीं

वक़्त अब करवट ले रहा था...अब ये प्यार एक दर्द भी साथ लिए हुए रहता...ना मिल पाने का दर्द...इस दर्द के साथ अब पल्लवी ने जीना सीख लिया...लेकिन उसका प्यार और भी गहरा होता जा रहा था...इस बात को पूरे 2 साल बीत चुके थे...आज पूजा और पल्लवी मंदिर गए...पल्लवी अब आये दिन मंदिर जाती और भगवान से विनती करती कि बस एक बार वो मानव से मिला दे...कम से कम वो अपने दिल की बात तो कह सके...वो जान तो सके कि मानव क्या सोचता है...उस दिन मानव क्या कहना चाहता था...मानव का क्या हाल है

2 साल और मानव...बहुत कुछ बदल दिया इन 2 सालों ने...उसका हाल पल्लवी से बुरा था...प्यार का एहसास और एक दर्द कि पल्लवी ने आखिरी बार जाते हुए उसकी बात ना सुनी...आखिर पल्लवी ने एक बार भी नहीं सोचा...प्यार के साथ अब वो एक घुटन लिए हुए भी जी रहा था...और इस बात को सोचता रहता कि बस एक बार मिल जाए पल्लवी तो वो अपने दिल का पूरा हाल बयान कर दें...हर वो बात कह दे जो उसके दिल में है....जो उसने इन बीते 2 सालों में महसूस की है...और जोर से डांटे...अपने प्यार को बयाँ कर दे

आज वो सब कुछ छोड़ छाड़कर दूसरे शहर जा रहा है...उसका दोस्त उसे छोड़ने आया है...क्यों कर रहा है यार तू मानव ऐसा...इतनी अच्छी नौकरी को छोड़कर जा रहा है...जगह बदलने से क्या होगा...क्या तू उसे भूल पायेगा...तू जहां भी जाएगा उसे याद करेगा...तू उससे प्यार करता है...खुद को कब तक यूँ ही सजा देता रहेगा...छोड़ यार सब ठीक है...तू अपना ख्याल रखना...वहाँ पढाऊँगा तो थोडा ध्यान बटेगा...और नौकरी का क्या है, दोबारा दिल करेगा तो फिर आ जाऊंगा....जब चाहे बदल लो...मानव का दोस्त मानव से गले मिलता है...चल अपना ख़याल रखना...और देख ज्यादा खामखाँ की बातें मत सोचना...हाँ ठीक है

# 2 साल...हाँ पूरे 2 साल बीत जाने के बाद

पानी की बड़ी सी नाव है मानव उसमें चढ़ता है...आखिर उसे पार करके उसे दूसरी ओर से शहर की गाडी लेने आएगी...नाव में करीव 15-20 लोग और भी बैठे हुए हैं...आमने सामने...वो जाकर अपना बैग उसमें रख देता है और नीचे गर्दन झुकाए बैठ जाता है...अभी अभी उसने एक चेहरा देखा...हाँ वही चेहरा जो वो हर रोज़ सपने में देखता है...वही चेहरा जिसके बारे में वो सोचता रहता है...वही चेहरा जिसकी वजह से वो सब कुछ छोड़ छाड़ कर आया है...वो सोचता है कि ये उसका बस वहम होगा...वो गर्दन उठाता है...उस नाव में उसके ठीक सामने पल्लवी बैठी थी...पल्लवी उसे देखे जा रही थी...दोनों की आँखें बस एक दूसरे को देखे जा रही थीं...ऐसे जैसे कि कितने जन्मों के बिछडे हुए मिले हैं...दोनों की हालत बेसुध सी हो गयी...दोनों कहीं खो से गए...दोनों ने बड़े ध्यान से एक दूसरे को देखा...उन्हें पक्का यकीन हो गया कि उन्होंने वाकई एक दूसरे को देखा है...और वो सच में एक दूसरे के सामने हैं

पल्लवी वहाँ से उठकर मानव के पास आ जाती है..उसके पड़ोस में बैठे हुए भाई साहब को अपनी जगह जाने के लिए कहती है...दोनों को इतनी ख़ुशी कभी नहीं मिली...कभी भी नहीं...कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या कहें...कहाँ से बात शुरू करें...पल्लवी हौले से कहती है..."दुनिया गोल है"...और मुस्कुराती है...मानव बोलता है कुछ कहा...ह्म्म्म...नहीं फिर मानव की ओर देखकर मुस्कुरा जाती है...

दोनों के मुंह से निकलता है...यहाँ कैसे...कहाँ जा रहे हो...फिर दोनों चुप हो जाते हैं...ओके ठीक है पहले आप कहो...पल्लवी नहीं आप कहो...मानव मुस्कुरा जाता है...क्यों आज आप पहले नहीं कहोगी...पल्लवी ना में सर हिलाती है...उसकी आँखें ऐसे लग रही थीं जैसे सब कुछ आज इसी पल कह देना चाहती हैं...सामने इतने सारे लोग बैठे हुए थे...इसलिए दोनों ने खुद को रोक रखा था...

कहाँ जा रहे हैं आप...पल्लवी मानव से पूंछती है...ह्म्म्म यहीं...और उसके सवाल को नज़र अंदाज़ कर देता है...मानव के दिल में एक अजीब सी घुटन थी...वो प्यार भी करता था और इस बात से भी खफा था कि वो जब चाहे तब कुछ जाने और उसे कुछ जानने का हक़ नहीं...

कुछ ही देर में नाव दूसरी तरफ पहुँच जाती है...दोनों उतरते हैं...मानव उतर कर चलने लगता है...पल्लवी उसके पीछे पीछे जाने लगती है...कहाँ जा रहे हैं...मेरी बात तो सुनिए...और उसका हाथ पकड़ लेती है...नारज हो क्या...मानव उसकी ओर देखता है और कहता है...नहीं...मैं क्यों नाराज़ होने लगा...आखिर तुम मेरी हो कौन...क्या रिश्ता है...जो मैं नारज होने लगा...तुम कुछ भी तो नहीं...सॉरी आप...पल्लवी कहती हैं नहीं मुझे आप तुम ही कहो...कम से कम हक़ तो जताते हो...

हक़ किस हक़ की बात कर रही हो...ह्म्म्म....यूँ ही बीच रास्ते में छोड़ कर जाने की...तुम सब कुछ जान लेना चाहती हो लेकिन कुछ बताना नहीं चाहती...मुझे तुम्हारे नाम के सिवाय क्या पता है...कुछ भी तो नहीं...फिर क्यों...आखिर क्यों मैं बेवजह ये सब बातें करूँ...मानव जोर से चिल्लाकर पल्लवी को बोलता है

पल्लवी बोलती है पर मैं कुछ कहना चाहती हूँ...क्या कहना चाहती हो...आई ऍम सॉरी...मेरी वजह से आपको जो तकलीफ हुई उसके लिए...और मुझे लगता है कि...मानव कहता है...बस खुश हो आज जानकार कि ये दुनिया गोल है...आज दो साल बाद पता चल गया...अब तो खुश हो...मैं कहना चाहती हूँ कि...क्या कहना चाहती हो....पल्लवी मानव के ख़राब मूड को देखकर शांत हो जाती है...मानव कहता है आज 2 साल बाद यही कहना चाहती हो कि हम दोस्त बन सकते हैं...तुम मुझसे बात मत करना...समझी तुम...

मानव पल्लवी से कहता है कि पिछली बार तुमने कहा था...कि तुम देखना चाहती हो कि ये दुनिया गोल है कि नहीं...आज मैं कहता हूँ कि अब मैं जानना चाहता हूँ कि मुझमें कहाँ कमी है...आखिर रिश्ते बनाने से मैं डरता क्यों हूँ...और अब मैं जानना चाहता हूँ कि जिस रिश्ते के बारे में मैं सोच रहा हूँ...क्या मैं निभा सकता हूँ...मुझे पता है कि तुम्हें ज्यादा कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ता..पर मुझे पड़ता है...

इस तरह वो पल्लवी की बात बिना सुने चला जाता है...आज पल्लवी मानव की तरह मायूस खड़ी थी...आज वो बहुत कुछ कहना चाहती थी...लेकिन मानव ने उसे मौका नहीं दिया...ठीक वैसे ही जैसे कभी उसने नहीं दिया था...वो आज उसे छोड़ कर ठीक उसके सामने चला गया...और वो उसे बस जाते हुए देख रही है...वो कहाँ जा रहा है....उसे नहीं पता...पर आज वो इतना जान गयी थी कि मानव के मन में क्या है...और वो उसे चाहता है...वरना इतना गुस्सा वो कभी नहीं दिखाता...

2 महीने बीत चुके हैं पूजा, पल्लवी के घर आती है और उसे किसी तरह समझा कर चली जाती है...आज उसके कमरे में एक अजीब सी खामोशी है...किताब सब उलट पुलट हैं...बिस्तर भी ठीक नहीं है...पल्लवी की माँ उसके कमरे में आती है...पल्लवी के पास बैठ कर उसकी माँ उसके सर पर हाथ फिराती हैं..क्या हुआ बेटा...और पल्लवी अपने माँ के सीने से लग कर बुरी तरह से रोने लगती है

क्या हुआ बेटा कुछ बोल तो सही...और फिर पल्लवी रो रोकर सारी बात अपनी माँ को बताती है...उसकी माँ उसे दिलासा देती हैं कि सब ठीक हो जाएगा...लेकिन उन्हें भी नहीं पता था कैसे...उस भगवान पर भरोसा रख सब ठीक हो जायेगा...और पल्लवी को अपनी गोद में लिटाकर उसे सुलाती हैं

वक़्त बीतता रहा और पल्लवी का हाल तो प्यार में बुरा हो रखा था...वो जानती थी कि जब एक बार वो मिला है तो उसे जिंदगी में कभी न कभी फिर मानव जरूर मिलेगा...तब वो उसके सीने से लग कर खूब रोएगी और उसे बताएगी कि वो उसे कितना प्यार करती है

छः महीने गुजर चुके थे...पल्लवी दूसरी जगह नौकरी के लिए चली जाती है...अब उसका दिल यहाँ नहीं लगता था...अपना मन बदलने के लिए कुछ महीने का कहकर वो दूसरे शहर में नौकरी करने चली जाती है...जहां मानव का बहुत कुछ जुडा हुआ है...एक तो बारिश जो आये दिन होती रहती है...जहां वो हवा में अपना आँचल उड़ा सकती है...जी खोलकर दौड़ सकती है...लेकिन वो करती नहीं...वो एक अजीब सी खामोशी लिए रहती है...उसकी आँखें बहुत कुछ कहना चाहती हैं लेकिन फिर भी खामोश हैं

उधर मानव पल्लवी के शहर में नौकरी करने पहुँच जाता है...लेकिन उसे नहीं पता कि वो पल्लवी का शहर है...वो पल्लवी के पिताजी की ही यूनिवर्सिटी में पढाने लगता है...पल्लवी के पिताजी का लगाव मानव से कुछ ज्यादा ही हो जाता है...वो उसे बेटे की तरह चाहने लगते हैं...पल्लवी के पिताजी शाम को डिनर पर मानव को बुलाते हैं

मानव डिनर टेबल पर बैठा होता है...पल्लवी की माँ और पिताजी भी डिनर टेबल पर बैठे होते हैं...तभी मानव की नज़र पल्लवी की तस्वीर पर जाती है...वो अचानक से उठकर वहाँ पहुँचता है...ये इशारा करते हुए बोलता है...पल्लवी की माँ कहती है ये हमारी बेटी है...कहाँ हैं ये...पल्लवी की माँ कहती है कि उसकी खुद से ही लड़ाई चल रही है आजकल...पता नहीं ऐसा क्या किया है उसने कि...जिससे वो प्यार करती है वो उसकी बात बिना सुने उसे छोड़ कर चला गया...और ये कहते हुए वो रोने लगती हैं...मानव कहता है प्यार...मानव पल्लवी की माँ के पास जाकर कहता है कहाँ है पल्लवी...मुझे अभी उससे मिलना है...पल्लवी की माँ एक पल में ही उसकी बातों से समझ जाती हैं कि यही वो लड़का है....और वो पूरी कहानी बताती हैं...और अंततः वो उसका पता बताती हैं...वो कहता है मुझे निकलना है...मैं उससे जल्द से जल्द मिलना चाहता हूँ...उनके पैर छू कर कहता है मुझे बहुत जल्दी है अब...और वो उसी रात पल्लवी के शहर को निकल लेता है

पहाडियों में बसा हुआ शहर...हल्की हल्की बारिश हो रही है...पल्लवी छतरी लेकर पैदल चल रही है...मानव पीछे से बोलता है...पता है ये दुनिया गोल है...और यहाँ चाहने वाले इसी दुनिया में कहीं ना कहीं टकरा ही जाते हैं...चाहने वाले मिल ही जाते हैं...पल्लवी एकदम पलटती है...पीछे बारिश में भीगता हुआ मानव खडा हुआ है...

पल्लवी मानव को देखकर खुश हो जाती है...मानव तेज आवाज में दूर से बोलता है...मुझे तुमसे कुछ कहना है...पल्लवी चिल्लाती है क्या...आई लव यू...मैं तुमसे प्यार करता हूँ...बहुत बहुत बहुत...पल्लवी बोलती है...जानती हूँ...मैं भी आपसे कुछ कहना चाहती हूँ...मानव कहता है जानता हूँ...पल्लवी कहती है फिर भी मुझे कहना है...आई लव यू...आई लव यू...आई लव यू...और दोनों एक दूसरे के करीब आकर एक दूसरे के गले से लग जाते हैं

जानती हो बारिश में भीगने में मजा आता है...पल्लवी हाँ में सर हिलाती है...मानव कहता है पर ये नहीं जानती ना कि साथ साथ भीगने में ज्यादा मजा आता है...पल्लवी हंसने लगती है...अच्छा...और वो छतरी फेंक देती है...फिर वो दोनों धीरे धीरे आगे बढ़ने लगते हैं...आपस में कुछ नोक झोक सी आवाजें आ रही हैं...अच्छा जानती हो बारिश में 'किस' करने में...

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सफर - ए रोमांटिक जर्नी (भाग-2)

>> 16 August 2009

आगे पढने से पहले कहानी का पहला भाग पढ़ लें

सभी लोग जल्दी से तैयार होकर बस में बैठ जाते हैं...पर इस बार थोडा सा बदलाव आया है...इस बार पल्लवी और मानव एक साथ बैठे हैं...बिल्कुल पास पास...बस चल देती है और सब राहत की सांस लेते हैं कि चलो अब बस चल तो रही है...फिर बीच बीच में कभी मानव पल्लवी की तरफ देखता और फिर आँखें चुरा कर दूजी ओर कर लेता और कभी पल्लवी मानव की ओर देख कर खिड़की की ओर देखने लगती

तो आप क्या लिखती हैं आपने बताया नहीं मानव पल्लवी से पूंछता है...आर्टीकल, इकोनोमिक्स, एंड सम सोशल इस्युज...ह्म्म्म अच्छा और कोई किताब वगैरह नहीं लिखी...हाँ कोशिश कर रही हूँ...देखो कब तक लिख पाती हूँ...चलो अच्छा है भगवान तुम्हें कामयाबी दे कहता हुआ मानव अपना सिर सीट के पीछे टिकाते हुए आँखें बंद करता है...मतलब...पल्लवी बोली...मतलब यही कि आप कामयाब हों आँख खोलते मानव हुए बोला...अरे देखो थोडी थोडी धूप निकल रही है...खिड़की के परदे हटाओ...देखो बाहर मौसम कितना प्यारा है...पल्लवी परदे हटाती है...सूरज सुबह निकल रहा है और बहुत प्यारा लग रहा है...वाऊ सो ब्यूटीफुल...पल्लवी बोलती है....मानव कहता है देखो वो मोर...कहाँ...अरे वो वहाँ...वो कितना प्यारा है ना...हाँ बिल्कुल आपकी तरह...पल्लवी मानव की तरफ देखकर सिर हिलाती है और फिर से बाहर देखने लगती है

पता है इस उगते हुए सूरज की भी एक कहानी है...मानव पल्लवी से कहता है...इसकी भी एक कहानी है, अरे वाह क्या कहानी है बताओ...पल्लवी मानव से कहती है...ये उगता हुआ सूरज सिर्फ उन्हीं लोगों को प्यारा लगता है...जो उसे प्यारा समझ कर देख रहे होते हैं...वरना तो कुछ लोग कहते हैं कि क्या फालतू की बातें हैं...ह्म्म्म हाँ शायद ऐसा हो पल्लवी बोली

और फिर बातों ही बातों में पल्लवी को नींद आ जाती है...वो कब सो जाती है उसे पता ही नहीं चलता...और मानव के कंधे पर सर रखकर आराम की नींद लेती है...मानव उसे बड़े प्यार से सोने देता है और कभी उसके चेहरे को देखता तो कभी उसके बालों को ठीक करने की कोशिश करता...और इस बात का पूरा ख़याल रखता कि उसकी नींद ना टूटे...बस काफी चल चुकी थी...बस एक ढाबे पर रूकती है...अचानक से पल्लवी की नींद टूटती है...और वो खुद को मानव के कंधे पर पाती है...ओह आई ऍम सॉरी...वो मुझे पता ही नहीं चला कब मैं...मानव मुस्कुराता है...तो आपकी नींद पूरी हो गयी...चलो कुछ खायेंगी आप...भाई मुझे तो बहुत जोरों की भूख लग रही है...हाँ मुझे भी

पल्लवी उतर कर पानी से अपना चेहरा धोती है...मानव चोरी छिपी नज़रों से देख रहा होता है...जब पल्लवी की नज़र मानव पर जाती है तो मानव कहीं ओर देखने का नाटक करने लगता है...फिर से पल्लवी की ओर देखते हुए बोलता है...क्या खाना है आपको...क्या है यहाँ...आलू के पराँठे...वो तो बहुत ओइली होते हैं...और कुछ नहीं है...भाई मुझे तो बहुत पसंद हैं आलू के परांठे...और मैं तो यही खाने जा रहा हूँ...और वैसे भी एक दिन खा लेने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा आपको...मानव मुस्कुराते हुए कहता है...मानव परांठे ले आता है...पल्लवी कोल्ड ड्रिंक लेकर पीने लगती है...मानव पल्लवी को परांठा रोल करके देता है....और आखिरकार पल्लवी परांठा खा लेती है...

खाना खाने के बाद दोनों बस की ओर चलने लगते हैं और अचानक से पल्लवी का पैर मुड जाता है...वो दर्द से कराह उठती है...मानव उसे संभालते हुए एक जगह बिठाता है...दवा लगाकर अपना रुमाल बाँध देता है...फिर उसे सहारा देते हुए बस में ले जाता है...थैंक्स मानव...थैंक्स अ लोट...मानव कहता है जल्दी ठीक हो जाओगी डोंट वरी...

अब कुछ था जो दोनों के बीच होने लगा था...क्या ये दोनों को ही नहीं पता था...पर शायद मोहब्बत अपना रंग दिखाने लगी थी...कभी पल्लवी मानव की ओर देखती और फिर नज़र खिड़की के बाहर कर लेती तो कभी मानव उसे यूँ ही देखता...फिर मानव अपनी आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगता है...पल्लवी मानव के चेहरे को देखती है...उसे कुछ महसूस हो रहा था पर क्या वो नहीं जानती थी...और इस तरह सफ़र आगे बढ़ता ही जा रहा था...

बस अपने आखिर पड़ाव पर पहुँचने वाली थी...मानव अपनी आँखें खोलता है...और ठीक से बैठ जाता है...खिड़की के बाहर झांकता है...शाम हो चली थी...सूरज डूब रहा था...कमाल है ये रंग भी कुछ वैसा ही था...पर ये अपने साथ उदासी क्यों लेकर आया था...शायद एक रात जो आने वाले थी...पल्लवी कहती है सूरज डूब रहा है...मानव कहता है ह्म्म्म वो दिन का दामन छोड़कर जाना चाह रहा है...कल फिर जो आना है उसे...शायद वो भी सोना चाहता है...पल्लवी मानव की ओर अजीब नज़रों से देखती है और फिर सूरज को देखने लगती है...बस रुक जाती है...बस का आखिरी पड़ाव भी आ चुका था...जहां से लोगों को अपने अपने गंतत्व को जाना था...किसको कहाँ वो सिर्फ उनको ही पता था...

मानव पल्लवी दोनों बस के बाहर खड़े होते हैं...बाकी की सवारियां धीरे धीरे करके जा रही हैं...मानव और पल्लवी दोनों आमने सामने खड़े होते हैं...मानव मुस्कुराते हुए पल्लवी के चेहरे को देखता है...फिर इस तरह से करता है जैसे कुछ कहना चाह रहा हो...फिर कहीं दूसरी ओर देखने लगता है...पल्लवी भी मानव को देखती है फिर खामोशी से जमीन को देखने लगती है...मानव कुछ कहना चाह रहा होता है तभी पल्लवी भी कुछ कहने लगती है...हाँ पल्लवी कहो...नहीं आप कुछ कहना चाह रहे थे...नहीं आप बोलो...पल्लवी जमीन को कुरेदती है फिर बोलती है...देखो मानव आपसे बात हुई अच्छा लगा...आप अच्छे इंसान हो...और आपकी वो कही हुई बात कि दुनिया गोल है...लोग यहाँ टकराते हैं...फिर से भी मिलते हैं...मैं जानना चाहती हूँ कि क्या वाकई ऐसा कुछ होता है...क्या वाकई दुनिया गोल है...क्या वाकई हम दोबारा मिल सकते हैं...देने को तो हम आपस में एक दूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी दे सकते हैं...आगे बात भी कर सकते हैं...पर मैं अभी ऐसा नहीं चाहती...

हाँ अगर हम दोनों दोबारा मिलते हैं तो हम अच्छे दोस्त जरूर बन सकते हैं...शायद हमें तब तक समय भी मिले...बातों को समझने का...खुद को और ज्यादा समझने का...क्योंकि आपसे बात करके मैं सोच रही हूँ कि क्या मैं वाकई खुद को जानती हूँ...तो क्या मुझे ये मौका दोगे आप...मानव ने दिल में बहुत कुछ सोच रखा था कि ये कहूँगा या वो कहूँगा लेकिन पल्लवी की बातों ने उसे खामोश कर दिया...अब उसके पास शब्दों की कमी थी...उसका चेहरा उसकी आँखें एक अजीब रंग ले लेती हैं...वो मुस्कुराता है...और अपना हाथ बढाता है...अपना ख्याल रखना...वो ऑटो वाले को बुलाता है...और पल्लवी को उसमें बिठाता है...पल्लवी बोलती है आप कुछ कहना चाह रहे थे...मानव अपना सर हिलाता है...और कहता है अपना ख्याल रखना....ऑटो वाला चला जाता है...कहाँ मानव को नहीं पता...एक लड़की जिसके साथ वो अभी अभी आ रहा था...वो जा रही थी...कहाँ उसे नहीं पता...वो कुछ देर खडा रहता है...यूँ ही मायूस...उसकी आँखें पल्लवी को दूर तक छोड़ती हैं...शायद उसे रिश्ते निभाना अभी नहीं आया...या फिर बनाना...एक यही ख्याल जो कि मानव को आया...और वो अपना बैग उठाकर चल देता है...आगे पढने के लिए यहाँ क्लिक करें

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सफ़र - ए रोमांटिक जर्नी

>> 13 August 2009

अचानक से बस तेज़ ब्रेक के साथ रूकती है...जैसे कि ड्राईवर ने फुल पॉवर के साथ ब्रेक लगाया हो...बस में बैठे हुए सभी आगे की ओर गिरते से...उंघियाते और नींद लेते लोग वापस बस की खैर खबर लेते हुए...क्या हुआ ड्राईवर साहब...बस आगे नहीं जायेगी...क्यों...क्यों नहीं जायेगी...अरे आगे रास्ता ख़राब है...घना कोहरा है और आगे पेड़ टूटे पड़े हैं रास्ता जाम है...एक सज्जन बोले तो अब क्या करें...क्या करें का क्या मतलब...यहीं सामने वो होटल दिखाई पड़ रहा है...वहीँ कुछ इंतजाम देखिये...एक दूसरे सज्जन बोले अरे तो क्या हमने एसी बस का टिकट इसीलिए लिया था...ड्राईवर बोला...एसी बस का, रास्ता जाम होने से क्या मतलब...कमाल करते हैं आप भी...बस के कुछ यात्री मुस्कुराते से हैं...

बस के यात्री एक एक करके बस से उतरने लगते हैं...5 वें नंबर पर करीब 26 साल की खूबसूरत लड़की उतरती है और उसके पीछे उतरने वाली एक आंटी उनसे टाइम पूंछती हैं...क्या टाइम हुआ है बेटी...जी 2 बज रहे हैं...इस मुए मौसम को भी रात के २ बजे ही ख़राब होना था...ये कहते हुए वो अपने पतिदेव से कहती हैं ठीक से उतारियेगा...हाँ हाँ भाग्यवान तुम तो पहले उतर जाओ...

लगभग लगभग आखिरी में करीब 28 साल का लड़का उतरता है...उसकी पीठ पर बैग है और हाथ में गिटार...वो ड्राईवर के पास जाकर पूंछता है अब बस कब जायेगी...देखो अब तो सुबह होने पर ही पता चलेगा...ह्म्म्म
ओके...सभी फिर होटल की तरफ जाने लगते हैं...उस छोटे से होटल में बस के यात्री अपना बंदोबस्त जैसे तैसे कर लेते हैं

बाहर लाइट जल्दी दिखाई दे रही है...वो अपना गिटार उठाता है और बाहर की ओर कदम बढाता है...होटल के बाहर बैंच पड़ी हुई है...वो वहाँ जाकर बैठ जाता है...अपने गिटार को बजाने लगता है...गिटार बजाते हुए उसकी नज़र दूसरी ओर बैठी हुई लड़की पर जाती है...वो हाथ में किताब लिए हुए कुछ पढ़ रही है...गिटार की आवाज़ सुनकर वो उधर देखती है...और फिर से किताब पढने लगती है

तब तक होटल में काम करने वाला बुजुर्ग वहाँ आ जाता है...अरे इतनी रात आप बाहर कोहरे में बैठे क्या कर रहे हैं...ठण्ड लग जायेगी अन्दर चले जाइये...वो गिटार बजाना बंद करके पूंछता है चाय मिलेगी क्या बाबा...इस वक़्त तो मुश्किल है...अरे क्या बाबा हम आपके मेहमान हैं और आप हैं कि ऐसी बातें कर रहे हैं...अच्छा ठीक है...हम कोशिश करते हैं...अरे रुकिए दो बना कर लाइयेगा...दो क्यों...अरे आपकी वो भी तो मेहमान हैं...उस लड़की की ओर इशारा करते हुए कहता है...अच्छा अच्छा ठीक है...

मैं चाय नहीं पीती...वो बाबा के चले जाने पर बोलती है...क्यों...क्यों नहीं पीती कहता हुआ वो उधर ही जाने लगता है...अरे नहीं पीने के पीछे भी वजह तो नहीं होती...वैसे आपके लिए तो और भी जरूरी हो जाती है...आप इस कोहरे में भी बहुत मेहनत का काम कर रही हैं...किताब पढने की कोशिश...वो इस बात पर मुस्कुरा जाती है...वैसे लगता तो नहीं कि आप सिर्फ किताब पढने के लिए यहाँ बाहर कोहरे में बैठी हुई हैं...नहीं...मुझे खर्राटे सोने नहीं दे रहे थे तो मैं बाहर आ गयी...वो मेरे कमरे में जो लोग सो रही हैं उन्होंने खर्राटे ले लेकर मुझे सोने नहीं दिया...इसीलिए बाहर चली आई

तब तक वो बाबा चाय लेकर आ जाते हैं...लो बच्चा लोग पी लो चाय और जल्दी से अन्दर जाओ वरना ठण्ड लग जायेगी...बाबा मैं नहीं पीती चाय...अरे बिटिया पी के तो देखो अदरक वाली चाय है...ठण्ड में फायदा करेगी...वो चाय ले लेती है

दोनों चाय की चुस्कियां लेते हैं...अच्छा गिटार बजाते हैं आप...शुक्रिया कहता हुआ वो हल्का सा मुस्कुराता है...कहीं आपका नाम राज या राहुल तो नहीं...क्यों...राज या राहुल ही क्यों...अरे नहीं वो ऐसे ही...वो ना शाहरुख़ खान की फिल्मों में उसका नाम यही होता है ना...और वो अक्सर गिटार भी बजाता है...वो हँसता है...हा हा हा...नहीं नहीं नहीं...वैल मेरा नाम 'मानव' है और आपका...मैं पल्लवी...कहते हुए वो चाय की चुस्की लेती है...और फिर से दोनों के बीच खामोशी छा जाती है

आपको क्या लगता है सुबह कोहरा कम होगा...मानव पल्लवी से कहता है...पता नहीं...वो तो सुबह ही पता चलेगा...वैसे चाय अच्छी थी...हाँ मैं नहीं पीती लेकिन फिर भी मुझे अच्छी लगी...तो क्या करती हैं आप...आई एम अ राईटर...ह्म्म्म लगती भी हैं...क्या मतलब पल्लवी कहती है...नहीं मतलब आपके बोलने का अंदाज़ और पहनावा...पल्लवी मुस्कुरा जाती है....अच्छा आप क्या करते हैं...मैं आईआईटी से पास आउट हूँ और एक कंपनी में इंजिनियर हूँ.

तो आप राईटर हैं...क्या लिखती हैं आप...आई मीन...कौन से विषय आपके पसंदीदा हैं...पल्लवी बोली...कुछ भी...अच्छा जैसे प्रेम कहानियाँ मानव बोला...ना...मुझे लव स्टोरीज समझ नहीं आती...पल्लवी बोलती है...क्यों क्या बुराई होती है लव स्टोरीज में...मानव पल्लवी की ओर देखकर बोलता है...मुझे समझ नहीं आती...और ऐसा मुझे कुछ महसूस नहीं होता...और हम जिनसे रूबरू नहीं होते तब तक हम उस बात पर उतना यकीन नहीं करते...शायद यही वजह हो...और कम से कम मैं तो कतई नहीं...पल्लवी जवाब देती है...मानव मुस्कुराता है...क्या पता प्रेम कहानियाँ भी उसी तरह सच होती हों जैसे भगवान का होना लोग सच मानते हैं...बैंच पर बैठा 'मानव' आसमान की ओर देखते हुए बोलता है

पल्लवी बोली...लोग सच मानते हैं का क्या मतलब...आप नहीं मानते कि भगवान है...पता नहीं...आई मीन...मैं कन्फ्यूज्ड हूँ...उसके होने और ना होने के बारे में...मैं बीच में अटका हूँ...तो साफ़ तौर पर मैं ये भी नहीं कह सकता कि भगवान नहीं है...मानव उसकी ओर देखते हुए बोला...और प्रेम कहानियाँ...उनके बारे में क्या ख़याल है आपका...पल्लवी बोली...आई थिंक वो इसी दुनिया में होती हैं तो उनके होने पर भरोसा किया जा सकता है...जैसे तुम्हारे और मेरे होने पर...मानव बोला

लगता है आपकी लव मैरिज हुई है...पल्लवी बोली...मानव मुस्कुराता है...नहीं आई एम सिंगल...अच्छा क्यों...क्यों का क्या मतलब...नहीं की तो नहीं की...और वैसे भी रिश्ता निभाने के लिए एक वजह का होना बहुत जरूरी है...और मुझे वजह नहीं मिलती...शायद मैं रिश्ते निभाने में कमजोर हूँ...खैर मेरा छोडिये...आपने शादी क्यों नहीं की...मानव बोला...आप कैसे कह सकते हैं कि मैंने शादी नहीं की...पल्लवी बोली...बस यूँ ही आपको देखकर तो कोई भी बोल सकता है कि अभी आपकी शादी नहीं हुई...मुस्कुराते हुए मानव ने कहा...अच्छा ऐसा भी है...पल्लवी बोली...तो क्यों नहीं की आपने अभी तक...मानव ने फिर से पूंछा...

पता नहीं...पर हाँ शायद मैं ये देखना चाहती हूँ कि आखिर प्यार होता भी है या नहीं...कि क्या वाकई लोगों को प्यार होता है...और अगर होता है तो फिर मुझे भी होना चाहिए...और जब तक ऐसा नहीं है...तब तक शादी करने से क्या फायदा...पल्लवी बोली...कमाल है एक तरफ आप प्रेम कहानियों पर विशवास नहीं करती और फिर ये भी मानती हैं कि दो इंसान सच्चा प्यार भी करते हैं...मानव बोला...पल्लवी मुस्कुरा दी...शायद मैं भी एक आम सी लड़की हूँ इस मामले में...ये वजह हो सकती है

राईटर और एक आम सी लड़की...'नाईस कॉम्बिनेशन'...कहता हुआ मानव मुस्कुराता है...आप मुस्कुराये क्यों...पल्लवी बोली...नहीं वो ऐसे ही...वैसे आप तो खूबसूरत हैं...आपको चाहने वाले तो मिल ही जायेंगे...पल्लवी मानव की ओर अजीब सी आँखें करके देखती है...मतलब...मानव बोला...मतलब कि जैसे आपकी आँखें बहुत खूबसूरत है...इनमें ख़ास बात है...बहुत ख़ास...आपकी आँखें बहुत प्यारी हैं...कम से कम किसी को आपकी आँखों से तो 100% प्यार हो जायेगा...पल्लवी मुस्कुराती हुई कहती है...आप मेरे साथ फ्लर्ट कर रहे हैं...नहीं बिलकुल नहीं...मैंने कब किया...मानव बोला

तो आपकी फॅमिली में कौन कौन है...आपके पिताजी क्या करते हैं...पल्लवी मानव से पूंछती है...मानव उस सवाल को नजरंदाज करते हुए गिटार बजाने लगता है...आपको म्यूजिक पसंद है...आई मीन आपको गिटार पसंद है...पल्लवी से पूंछता है...हाँ मुझे म्यूजिक बहुत पसंद है...क्या सुनना पसंद करती हैं आप...कुछ भी जो सुनने में अच्छा लगे...ह्म्म्म ओके...तो कुछ सुनेंगी आप...हाँ क्यों नहीं पल्लवी बोली
मानव उसे एक गाने पर गिटार बजा कर सुनाता है...
"जरा नज़र उठा के देखो
बैठे हैं हम यहीं
बेखबर मुझसे क्यों हो
इतने बुरे भी हम नहीं..."

गाना ख़त्म होते होते मानव बोलता है...मेरा बाप मुझे और मेरी माँ को छोड़कर चला गया जब मैं 12 साल का था...और उसने दूसरी शादी कर ली...ओह आई एम सॉरी पल्लवी बोली...मानव मुस्कुराता है...इट्स ओके...तो आंटी जी क्या करती हैं...वो टीचर हैं...तब तक वो बुजुर्ग बाबा उधर आ जाता है...अरे बच्चा लोग तुम अभी तक यही हो...गए नहीं अन्दर...क्या करें बाबा नींद ही नहीं आ रही...पल्लवी बोली...वैसे आपकी चाय अच्छी थी...और पियोगी बिटिया...मानव कहता है अरे वाह उन्हें बिना कहे ही चाय पिलाई जा रही है...बाबा हंसते हैं...ठीक है पिला दीजिए बाबा पल्लवी बोली

और आपकी फॅमिली में सब...मानव पूंछता है...मेरी फॅमिली में...मैं,मम्मी और पापा...पापा फिजिक्स के प्रोफ़ेसर हैं...लिखना और पढना उनका शौक है...हमेशा किताबों में लगे रहते हैं...पल्लवी बोली...ह्म्म्म प्रोफ़ेसर...तभी आप उन पर गयी हो...लिखने और पढने में...मानव बोला...पल्लवी अपने हाथ में किताब को देखकर मुस्कुरा दी...क्यों आप नहीं पढ़ते कभी कुछ...हाँ कभी कभी...'बट ओनली लव स्टोरीज' मुस्कुराते हुए मानव बोलता है...
और वैसे भी मेरा मानना है कि प्यार तो हो जाता है...कब, कैसे, क्यों और कहाँ...पता भी नहीं चलता...उसके लिए दिन, महीने या साल नहीं लगते...जब होना होता है तो किसी एक पल, एक दिन या एक रात का होना ही काफी होता है प्यार के लिए

अच्छा ऐसा होता है क्या वाकई में...पल्लवी बोली...मानव बोला हाँ क्यों नहीं ऐसा ही होता है...जहां आपने सोचना शुरू किया नहीं और बस प्यार हुआ नहीं...फिर वही पल, वही बातें, वही दिन और वही शख्स आपको प्यारा लगने लगता है...और कब आपको प्यार हो जाता है आपको पता भी नहीं चलता...'कम ओन' ऐसा प्रेम कहानियों में ही होता है...पल्लवी बोली...हाँ तो जब प्यार होगा तभी प्रेम कहानी भी बनेगी...मानव मुस्कुराते हुए बोला

इंट्रेस्टिंग...वैरी इंट्रेस्टिंग...पल्लवी हंसते हुए बोली...देखना ये दुनिया गोल है...मानव उंगली घुमाते हुए बोलता है...चाहने और प्यार करने वाले इस दुनिया में हैं जो गोल गोल चक्कर लगा रहे हैं...आपके लिए भी कोई होगा जो चक्कर लगाते लगाते आपसे टकरा जायेगा और आपको पता भी नहीं चलेगा...मेरी बात याद रखना...हाँ हजूर बिलकुल याद रखेंगे आपकी इस बात को...मुस्कुराते हुए पल्लवी बोली...और फिर हंस दी...तब तक बाबा चाय लेकर आ जाते हैं...दोनों चाय लेकर पीने लगते हैं...

पल्लवी बोली...वैसे मेरी माँ तुम्हें बहुत पसंद करेंगी...उन्हें ऐसी बातों पर बहुत भरोसा है...वो पूरा यकीन करती हैं...और पता है उन्होंने पापा को खुद प्रपोज किया था शादी के लिए...वरना पापा तो थे किताबों में सर खपाने वाले...पता नहीं शादी करते भी कि नहीं...अच्छा ऐसी बात है...चलो इस वजह से आपका होना तो तय हुआ...मुस्कुराते हुए मानव बोला

और आपके पापा का क्या कहना है मानव बोला...अरे उनका रिसर्च और किताबों से ही पीछा नहीं छूटता...हाँ लेकिन मम्मी को प्यार बहुत करते हैं...'बोथ आर परफेक्ट'...सीखो उनसे कुछ...मानव बोला...क्या मतलब...पल्लवी बोली...मतलब यही कि 'मोहब्बत' कोई किताब नहीं जिसे लिखा या पढ़ा जाए...और ना ही इस इंतज़ार में बैठे रहे कि 'इसका जब बेस्ट एडिशन आएगा तो पढेंगे समय निकाल कर'...ये तो एक अच्छे मौसम की तरह आता है और तब आप छतरी तान कर खड़े ना रहे...कि अरे कहीं भीग ना जाएँ...मानव उसकी ओर मुस्कुराते हुए कहता है

उफ़ आप और आपकी बातें...आप कोई किताब क्यों नहीं लिखते...खूब बिकेंगी...पल्लवी बोली...अच्छा आप खरीदोगी...जी नहीं...तो फिर लिखने का क्या फायदा...क्या मतलब...कुछ नहीं कहता हुआ मानव बैंच पर बैठा आसमान की ओर देखता है

अच्छा कभी हवा में अपना आँचल उडाया है...या अपनी मर्ज़ी से बारिश में भीगी हो कभी...मानव पल्लवी से पूंछता है...क्यों पल्लवी बोली...अगर नहीं किया तो करके देखना...पल्लवी मुस्कुराते हुए अपना सर हिलाती है...कभी फुर्सत के लम्हें निकाल कर खुद को देखना और खुद के बारे में सोचना...आईने के सामने खड़ी होकर...जब आपको खुद से प्यार होने लगे तो समझना कि मेरी बातों में क्या है...मानव बोला

तभी उधर बस का ड्राईवर आवाज़ लगता है...भाई सब लोग तैयार हो जाओ 15 मिनट में बस जायेगी...ओह 'थैंक गौड' रास्ता साफ़ हुआ...पल्लवी बोली...हाँ चलो अच्छा है...मानव अपनी घडी की ओर देखता है...वैसे भी 6 बज गए...चलो चल कर हाथ मुंह धो लेते हैं...फिर जल्दी से चलना भी है...और फिर दोनों उठकर होटल के अन्दर जाते हैं...आगे जारी है

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नन्हें मन की नन्ही दास्ताँ

>> 10 August 2009

रात का सन्नाटा जब पसरता है तो वो अपने साथ एक अजीब सी खामोशी लेकर आता है...उस सन्नाटे के साथ शोर मचाते हुए तमाम ख़याल भी आते हैं...रात का भी अपना वजूद है वो सबको अपना आँचल देती है...आप दिल खोल कर सपने बुन सकते हैं...पूरे हो सकने वाले भी और ना पूरे हो सकने वाले भी...ये दुनिया का सिस्टम भी अजीब है...यहाँ सपने भी किश्तों में देखे जाते हैं...जब छोटे होते हैं तो अलग सपने...जब जवान होते हैं तो अलग...बूढे होते होते तो शायद देखे गए सपने भी बूढे हो चलते हैं...रह जाती हैं तो वो यादें...हाँ वही पुरानी यादें...कभी कभी यादें सपनों से भी ज्यादा प्यारी लगती हैं...जिन्हें रात अपने सर पर पोटली में बाँध कर लाती है और धीरे धीरे उसकी गांठें खोलती है....हाँ यादें...

ना जाने क्यूँ ये रात आज कुछ कहना चाहती है...आज इसने पोटली मेरे सामने रख दी है...आज उसने मुझे गांठें खोलने को दी हैं...ऐसा हर बार नहीं होता...ना जाने क्यों आज रात को मुझ पर इतना प्यार आया है...शायद आज ये उसका रूमानी अंदाज़ है

बचपन में क्लास की 'सेकंड लास्ट रो' में एक लड़का बैठा करता था...उसे उस वक़्त बैंच से उतना ही प्यार था जितना जवानी में आशिक को अपनी महबूबा से होता है और बुढापे में पति को अपनी बीवी से...अपने में खोया सा रहने वाला...और इस बात से डरने वाला कि टीचर कोई सवाल ना पूंछ बैठे...वो हमेशा इस उधेड़बुन में रहता कि उसे जो पता है क्या वो सही है...या कहीं वो गलत तो नहीं...अगर गलत हुआ तो फिर क्या होगा...'समटाईम्स पीपुल से Shy Nature का है'...गणित में कमजोर...क्यों था उसे भी नहीं पता...लेकिन उसे गणित से कभी डर नहीं लगा...सवालों के हल के मामले में वो हमेशा 'कन्फ्यूज्ड' रहता...दोस्त भी गिने चुने...बामुश्किल एक या दो

कहते हैं जो बीत जाता है वो भूतकाल कहलाता है...और जिसे हम याद कहते हैं उसका सम्बन्ध उसी से होता है...अगर भूत नहीं तो वो बुरी या अच्छी याद भी नहीं रहेगी

उसे एक बार उसके टीचर स्टेज पर खडा कर देते हैं और सबके सामने कुछ सुनाने के लिए बोलते हैं...कुछ भी लेकिन सुनाना है...कोई कविता, कहानी, या और कुछ...कुछ भी...मगर सुनाना है...वो तमाम चेहरे देखता है जो सिर्फ उसे देख रहे हैं...उसे घूर रहे हैं...वो कुछ भी नहीं सुना पाता...कुछ भी नहीं...क्यों...उसे खुद नहीं पाता...वो सोचता है कि उसे तो ये भी आता था...वो भी आता था...फिर क्यों...क्यों नहीं सुनाया उसने...गणित में 17 और 18 नंबर लाकर वो बस पास भर हुआ है...जबकि उसे लगभग लगभग सभी सवाल आते थे...फिर भी वो ज्यादा नंबर नहीं ला सका

बच्चों की नज़र में वो एक बुद्धू लड़का था...भीड़ का पिछला हिस्सा...उसने ना जाने क्यों एक दिन अपनी बैंच पर बैठने वाले लड़के से कहा कि मैं क्लास में प्रथम आने वाले फलां लड़के से भी ज्यादा नंबर लाऊंगा...और उस लड़के ने सबके सामने इस बात को कहकर कैसे उसकी खिल्ली उडाई...वो इस बार के 'फाइनल' में भी जैसे तैसे पास भर हुआ है

कहते हैं कुछ यादें ऐसी होती हैं जो मैमोरी से फ्लैश आउट नहीं होती...चाहकर भी नहीं...क्योंकि वो जिंदगी का हिस्सा बन जाती हैं

वक़्त ने करवट ली है...अब वो 9th क्लास में आ गया...ना जाने क्यों सब बदल सा रहा है...उसे पढने में मजा आता है...उसे नए गणित के अध्यापक मिले हैं...अब वो कन्फ्यूज्ड नहीं रहता...पता नहीं क्यों 'लाइट' के चले जाने पर भी वो बाहर जाकर बच्चों के साथ नहीं खेलता...उसे बस पढना है...उससे कोई नहीं कहता कि तुम इतना पढो...पर वो पढ़ रहा है...क्लास टीचर 2 बच्चों को सामने खडा करके बोलते हैं...ये बच्चे बहुत होशियार हैं...देखना यही प्रथम आयेंगे...वो उन दोनों में से कोई नहीं है...आज उसने किसी से नहीं कहा कि वो फलां लड़के से ज्यादा नंबर लायेगा

आज 'हाफ ईयरली एग्जाम' का रिजल्ट आया है...उसके गणित में पूरे 100 में से 92 नंबर आये हैं...क्लास टीचर आज सामने खड़े होकर मोनिटर से पूंछते हैं कि क्लास में फर्स्ट कौन आया है...मोनिटर एक लड़के का नाम बताता है...वो आज भी सेकंड लास्ट रो में बैठा अपना नाम सुन रहा है...ताज्जुब है उसे खुद नहीं पता कि वो क्लास में फर्स्ट आया है...क्लास टीचर उस लड़के को बुलाते है...और उसे एक अनोखी दृष्टि से देखते है...शायद उसने कुछ अनोखा कर दिया है...उसके बताये हुए दोनों लड़के 'उस लड़के' को देख रहे हैं...उनमें वो फलां लड़का भी है...जिससे ज्यादा नंबर लाने के लिए उसने कुछ साल पहले बोला था...ये भी एक अजीब इत्तेफाक है...ना चाहते हुए आज वो उससे ज्यादा नंबर लाया है...नहीं सबसे ज्यादा...क्यों...क्योंकि उसके गणित में सबसे ज्यादा नंबर हैं...जितने दूर दूर तक किसी के भी नहीं...

वक़्त बदल रहा है...अब क्लास का हर लड़का उसे चाहता है...उसके पास आकर सवालों का हल पूंछता है...अब वो स्टेज पर बुलाया जाता है तो हमेशा कुछ ना कुछ सुना देता है...क्लास टीचर ने उसे सबसे आगे बैठने को बोला है...वो आगे बैठा है...टीचर की नज़रों से नज़रें मिलाकर...आज वो चाहता है कि टीचर उससे सवाल पूंछे...आज वो बिलकुल भी कन्फ्यूज्ड नहीं...बहुत कुछ बदला...लगातार अब वो क्लास में फर्स्ट आता है...कुछ बदला है...हाँ उसका आत्मविश्वास...कब और कैसे आ गया...उसे पता ही नहीं चला...बस उसे इतना पता है कि वो लगातार पढ़ा है...उसे पढना अच्छा लगता है...अब गणित की वजह से उसे पूरा स्कूल जानता है...

एक चीज़ उसकी नहीं बदली...उसका एक दोस्त जो तब भी उसका सबसे अच्छा दोस्त था और आज भी उसका सबसे अच्छा दोस्त है...हर बुरे दौर में भी और हर अच्छे दौर में भी वो जैसे का तैसा है...उसने बहुत जल्द जान लिया है कि दोस्ती किसे कहते हैं और दोस्त का क्या मतलब है...बिना किसी के बताये...और ये भी कि परिश्रम और लगन हमेशा अच्छे परिणाम देते हैं...और कुछ भी बता कर अलग से करने की जरूरत नहीं पड़ती

आज उसे इन यादों के सहारे 'फ्लैश बैक' में जाने का मौका मिला है और क्लास में खडा हुआ मोनिटर जिस लड़के का नाम क्लास टीचर को बता रहा है...उसकी आवाज़ की खनक मेरे कानों में आज भी रोमांच पैदा कर रही है..."सर जी अनिल कान्त फर्स्ट आया है"

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