बचपन का सपना और 20 रुपये
>> 19 April 2009
कुछ सपने सबसे प्यारे और सबसे नेक लगते हैं ....बिल्कुल ओस की बूंदों की तरह ....नन्ही मुस्कान की तरह ....माँ के दुलार की तरह ....पहले प्यार की तरह ....और मुझे भी बहुत प्यारा था वो सपना ....सच बहुत प्यारा ...एक दम दिल के करीब ...कि जो सच हो जाये तो समझो कि दिल का मयूर नाचने लग जाए
मैं भी कितना पागल था अजीब अजीब से सपने देखने लग जाता था ...कि अगर ऐसा हो जाए तो कैसा हो ....अगर मैं ये कर सकूँ ......तो आह मज़ा आ जाये ..... ऐसे ही मन में एक प्यारी सी ख्वाहिश पैदा हो गयी ....माउथ आर्गन बजाने की .....कि काश मेरे पास माउथ आर्गन हो तो मैं भी बजाना सीखूं .....कितना अच्छा लगेगा ...जब मैं माउथ आर्गन बजाऊंगा .....बस यही सोचते हुए कभी कभी तो दिल घंटो ख़ुशी से झूमता रहता ....
बस एक बार किसी फिल्म में देख लिए किसी को बजाते हुए ....तो हो गए लट्टू ...कि अरे वाह जब वो बजा सकता है तो हम क्यों नहीं .....और ये बात हमारा छोटा भाई बहुत खूब जानता था ...बचपन ....बड़ा ही अजीब होता है ...कैसी कैसी प्यारी प्यारी ख्वाहिशें पैदा कर लेते हैं हम ....मुझे याद है कि बचपन में मेरा छोटा भाई बहुत जिद्दी हुआ करता था ...अगर किसी बात की ठान ले तो मजाल है कि उसे पूरा किये बिना मान जाये ...फिर तो चाहे उसको मार लो पीट लो ...कुछ भी कर लो ...पर वो मानने वाला नहीं ....
मुझे अच्छी तरह याद है कि जब महीने के अंतिम दिन हुआ करते थे ...तो कैसे हाथों को रोक कर मम्मी घर का खर्चा चलाती थीं ....आखिर एक मध्यम वर्गीय परिवार के हालत महीने के अंत में ऐसे ही हो जाते हैं ......एक बार जब स्कूल में मैडम ने रंग लाने के लिए कहा था ...कि अगर अगले रोज़ जो बच्चे रंग नहीं लाये तो ...उसे सजा मिलेगी .....
मेरा छोटा भाई कैसे जिद पकड़ कर बैठ गया था ...कि अगर स्कूल जायेगा तो रंग लेकर जायेगा ...नहीं तो जायेगा नहीं ....उस दिन घर में पैसे नहीं थे ...शायद महीने का अंतिम दिन होगा ....लाख समझाया कि अगले दिन ले देंगे ...पर नहीं जी ...हमारे छोटे भाई नहीं माने ....बात इतनी बढ़ गयी कि पिताजी ने गुस्से में आकर उसकी मार लगा दी ....तब भी वो स्कूल जाने के लिए राजी न हुआ ...तब कहीं जाकर माँ ने अपने संदूक में खोज बीन कर चन्द पड़े हुए सिक्के जमा कर ..उसके रंगों के पैसों का बंदोबस्त किया था .....और मैं बिना रंगों के गया था ....ऐसा था मेरा छोटा जिद्दी भाई ....
पर एक बार की बात है ...जब राम नवमी के दिन थे ....माँ ने हम दोनों को पास के ही भैया के साथ झाँकियाँ देखने भेज दिया था ...माँ ने दोनों भाइयों के लिए कोई 20 रुपये दिए होंगे .....तब मैंने वो अपने छोटे भाई को ही रखने के लिए दे दिए थे ....जब हम वहाँ पहुँचे तो वो अपने दोस्तों के साथ मस्त हो गया ...और मैं उस में रम गया जहाँ लोग अपने अभिनय से लोगों का दिल बहला रहे थे ....मुफ्त में ...शायद कुछ ऐसा रहा हो ....सब कुछ देखने के बाद हम घर वापस आ गए ....
अगले दो रोज़ बाद 10 अक्टूबर को मेरा जन्म दिन था .... घर पर जन्म दिन मनाया गया ....और जब केक काटने के बाद सभी लोग कुछ न कुछ गिफ्ट दे रहे थे ...तब मेरे भाई ने चमकीली पन्नी में लिपटा हुआ एक तौहफा दिया .....और कहा भैया अभी नहीं खोलना ...बाद में खोलना ....मैंने कहा ठीक है ...पर ये तुम लाये कहाँ से .....वो बस मुस्कुरा भर रह गया .....
जब सब कुछ ख़त्म हो गया और सब के जाने के बाद मैंने वो खोला तो उसे देख के मैं उछल पड़ा ...अरे ये तो माउथ आर्गन है .....कहाँ से ...मतलब कैसे लाये तुम ....किसने दिलाया .....मैंने अपने भाई को बोला .....वो बोला उस दिन मैंने पूरे 20 रुपये का यही खरीद लिया था ....उस पल मुझे लगा ...कि हाय ...मेरा जिद्दी भाई भी इस कदर सोच सकता है ...बेचारे ने ना कुछ खाया ...और न ही अपने लिए कुछ लिया ...पूरे के पूरे पैसों से ...अपने इस बड़े भाई के सपने को पूरा करने के लिए सारे के सारे पैसे इसी में खर्च कर दिए ....उस पल मैं बयां नहीं कर सकता कि मुझे कैसा महसूस हो रहा था ...मैंने अपने भाई को बाहों में भर लिया .....सच वो पल भुलाये नहीं भूलता ....
मेरा वो जिद्दी भाई ...मेरा वो प्यारा भाई ....अपनी सभी जिद ताक़ पर रख कर मेरे लिए माउथ आर्गन खरीद लाया .....सच उस पल ऐसा लगा कि ...मेरा सपना कुछ भी नहीं था ... ..उस ख़ुशी के आगे जो मेरे भाई ने उस पल मुझे दी थी .....हाँ मुझे याद है कि मैं माउथ आर्गन तो ज्यादा कुछ खास नहीं सीख सका ....लेकिन हाँ सीटी बजाना इतना अच्छा सीखा ....कि भाई क्या ...सब लोग कहते कि "दिल तो पागल है " का शाहरुख़ खान भी मेरे आगे पानी भरे आकर और कहे कि भाई मुझे ऎसी सीटी बजाना सिखा दो .....सच में बहुत सालों तक सीटी बजायी ....पूरी धुन के साथ ...हर गाने पर .....आज भी जब कभी धुन में होता हूँ तो सीटी बजाने लगता हूँ
फिर वक़्त ने धीरे धीरे मेरे भाई को जिद्दी ना रहने दिया ...अब वो भी समझने लगा था कि ...एक मध्यम वर्गीय परिवार का गुजारा कैसे चलता है .....जिंदगी कैसे जी जाती है ...... हाँ ये जिंदगी ही तो है ...जो इंसान को सब कुछ सिखा देती है .....पर एक बात जो मुझे जिस पल भी याद आ जाती है ...कि किस कदर मेरे भाई ने उस बचपन में भी मेरी चाहत के बारे में सोचा .....सच बहुत प्यार आ जाता है ...मुझे अपने भाई पर .....मेरा वो प्यारा सा जिद्दी सा भाई
27 comments:
anil bhai,hameshaa kee tarah apne vishisht andaaj mein bahtu hee umda likhaa hai aapne, sachmuch wo din koi nahin lautaa sakta par kaash ki laut pate
आप दोनो भाइयों का प्यार यूं ही बने रहे ... शुभकामनाएं।
आपकी बातें बहुत प्यारी होती हैं .....सचमुच हम जैसे तो खो जाते हैं ...आपकी दुनियां में
बचपन की हसीन यादें !! अच्छा लगा पढ़ कर.
सबके बचपन की यही कहानी है!
बहुत बढ़िया लिखा जी। हमें भी अपने जीवन में पैसे की तंगी और छोटे छोटे बलिदान याद आ गये। यही तो जीवन को रंग देते हैं।
ज़िन्दगी जो सिखाये,पर बचपन की मासूम इक्षा और उस उम्र में उसे देने की इक्षा.....
कैसे भूल सकते हैं.........छोटे भाई का प्यार उसकी जिद्द से कहीं ऊपर था.....
aap to aankho mein aansu le aaye is post ke zariye... bhugwaan aapko aur aapke bhaai ko lambi umar de.!!
मै भी बचापन मे सीटी बजाना सीख गया था।था क्या आज तक़ बजाता हूं,और इसे अपने मूंह मिया मिट्टू न समझा जाय,काफ़ी सुरीली सीटी बजाता हूं।तब घर मे बहुत डांट पड़ती थी कि ये जब देखो लफ़ंगो की तरह सीटी बजाते रह्ते हो।सड़क चलते भी बजाता था।बार-बार डांट खाने से त्रस्त आकर मैने माउथ आर्गन बजाना शुरू किया काफ़ी समय तक़ बजाया,अब नही बजाता,मगर सीटी अब भी नही छूटी हां कम ज़रूर हो गई है।कभी कभार बहुत बढिया मूड हो तो अपने आप सीटी बजने लगती है। अच्छा लगा पढ कर,एक बात और बताना चाहूंगा मेरे दोनो छोटे भाई आपके छोटे भाई की तरह नही थे,वे जैसे मुझे माउथ आर्गन निकाल्ते देखते थे भाग जाते थे और जब उन्हे पकड़ कर कुछ सुना कर पूछता था तो बोलते थे सेम भैया सेम बजा रहे हो,मज़ा आ गया अब जायें……………………॥ हा हा हा सालो बाद किसी ने वो पल याद दिलाये है,बहुत आभार आपका।
अनिल जी.............हमेशा की तरह.......खूबसूरत सी कहानी buni है माउथ ओरगन क बीच ............दिल को छूने वली रचना
jeena isi ka naam hai .......
लम्बी रेस के घोडे ......
Shukriya sir jee...hmari bhi kuch yaaden taza kar di aapne
आपने अपनी बचपन की यादों को बखूबी उतारा है ....आपके छोटे भाई को सलाम ...यही प्रेम हमेशा बना रहे ....!!
अनिल जी
बहुत ही भावुक संस्मरण है आपका ,
आनंद आ गया.
यही होता है रिश्तों मतलब.
- विजय
हम सब के बचपन की कहानी। इस बार 10 अक्टूबर याद रहेगा।
jaisa mainer pehle bhi kaha tha aap ek acche kahanikaar hain....
...badhiya sansmaran !!
अच्छी प्यारी बातें। माउथ आर्गन मेरा भी प्रिय वाद्य है और शायद प्रिय साथी भी, जो मेरे मन के साथ कभी भी गुनगुना उठता है।
बहुत अच्छा लिखा है भई ! बचपन और भाई दोनों लाजवाब होते है ......इनसे जुडी बहुत सी बाते तो कभी नही नहीं भूलती ! !
बहुत शानदार बाते लिखी हैं. वाकई कुछ याद करा दिया इस पोस्ट ने.
रामराम.
बहुत ही सुन्दर घटना सुनाई, पढ़ कर मन प्रसन हो होगा , आप बंधुयों में ऐसा प्यार बरकरार रहे .
अनिल जी कभी मिलेगे तो जरा सिटी बजाना हमें भी सीखा दिजेयेगा , बड़ी तम्मना है हमारी पर आज तक सीख नहीं पाए .
अनिल जी, आपकी रचनाएँ कहीं गहरे तक छु जाती हैं दिल को ... आपकी अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा जल्दी लिखियेगा |
sapne dekhna to insaan ki fitrat hai..sapne dekhenge tabhi to pure honge..aapko bachpan ke sapne abhi tak yaad hai...boht achha likha aapne
आप सभी का अपने विचार प्रस्तुत करने , टिपण्णी करने के लिए शुक्रिया ....आप यूँ ही अपना स्नेह बनाये रखेंगे ऐसी मैं आशा करता हूँ ....अलोक जी सीटी बजाना अच्छी बात नहीं होती :) :)
ऐसा लोग कहते हैं :) :)
At last!!! Very well written and extremely reader friendly language. Keep up the great work!! Inspite of not being very good at Hindi, I am a regular at your blog...thanks for changing the settings
Thanks ....Thanks a lot for your comment
Good one...
Another of those that only you have written.
Some day, I will also try my hands on story writing and I hope to be able to get such attentive and appreciating readers (that means you are really good) :))
~Jayant
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