इसे ख़त मत समझना ...क्योंकि ख़त में तो
>> 23 April 2009
तुम हमेशा कहती थी न कि मैं तुम्हें कभी ख़त क्यों नहीं लिखता ....पता है क्योंकि मुझे कभी तुम से प्यारा ख़त लिखना आया ही नहीं ...सच ही तो है ...तुम जब लिखा करती थी ....तो उस ख़त में वो रात होती थी ....जिसे जुदाई में तुमने मुझसे दूर बिताया होता ....वो ढेर सारी बातें होती ...जो तुम बिस्तर पर करवटें बदलते हुए मुझसे कहना चाहती थीं ...और देखो तुम कितनी खूबसूरती से अपने दिल का हाल बयां कर देती थीं ....सच ही तो है ....तुम्हारे ख़त में सब कुछ होता था ....दर्द, प्यार, एहसास, विरह की वेदना, साथ होने का एहसास, दूरियों का हिसाब किताब .....और तुम्हारी भीनी भीनी सी - मीठी सी मुस्कराहट .....
पता है कल ना जाने इस दिल को क्या सूझी ....दिल के दरमियाँ किसी पुराने ख़त का जिक्र आ गया ....जब हाथ तकिये के नीचे गया तो ...आँखों की नमी फैली हुई दिखी ....नहीं नहीं मैं रो कैसे सकता हूँ ....तुमने मना जो किया था .....फिर ना जाने क्या ख्याल आया .....तुम्हारी वो मासूम सी प्यारी सी जिद पूरी करने को मन किया .....आखिर तुम्हे ख़त लिखना चाहा ....तुम ही तो कहा करती थीं ....कि मुझे कभी ख़त लिखना .....सोचा कि क्या मैं लिख पाउँगा ....फिर ना जाने क्यूँ कदम उस डायरी तक गए और उसके किसी पन्ने पर मेरी कलम रुक सी गयी ....क्या लिखूं ....एहसास ...दर्द...ख़ुशी ....उन पलों की यादें ...मुलाकातें ...मुस्कुराहटें ....भीगी पलकें ....मिलन की ख़ुशी ....या तुम्हें दूर जाते देख ...दिल के टूटने की आवाजें ......क्या लिखूं
शायद तुम सोच रही होगी कितना बुद्धू है ...इसे इतना भी नहीं आता ....याद है तुम्हें जब एक बार तुम मेरे इंतजार में उस पार्क की बैंच पर बैठी थीं ....और मेरे आने पर तुम ने खफा होने का बहाना किया था ....उस रोज़ का दिया हुआ वो गुलाब .....तुम्हें सबसे ज्यादा पसंद था ना .....कैसे मैं तुम्हें मना रहा था ....और कुछ ना सूझने पर ...तुमने कहा था कितने बुद्धू हो .....मैं तुमसे कभी खफा हो सकती हूँ भला .....और मैं मुस्कुरा दिया था .....
आज मैं अकेला हूँ ....फासले हैं हमारे दरमियाँ ....बस यादें हैं ....तुम्हारी दी हुई चीज़ें ....जो आज भी महफूज़ हैं ....जब दिल भर आता है तो उन्हें निकाल निकाल देखता हूँ ....कल रात को तुम्हारा दिया हुआ वो पहला गुलाब किताबों के दरमियाँ मिला ....वो सूखा हुआ गुलाब भी गीली गीली मुस्कराहट बिखेर रहा था .....जो उस रोज़ तुमने इस गुलाब के साथ मुझे दी थीं .....हाँ वो शर्माना तुम्हारा ....और कहना कि हाँ तुम मुझे बहुत चाहती हो ....कितनी क्यूट लग रही थीं तुम ....और मेरे कहने पर जब तुमने अपनी आँखों से मेरी आँखों में झाँखा था .....उस रोज़ की वो खूबसूरती ......तुम्हारी चाहत आज भी बयां करती है
और तुम्हारे कहने पर ....कि तुम्हें इजाज़त फिल्म बहुत पसंद है ....मैंने जब देखा उसे .....कितनी करीब लगी ....हाँ आज भी जब तब उसे देख लेता हूँ ....पर अब वो रुला देती है .....ना जाने क्यूँ ....पर चन्द रोज़ बाद फिर दिल कहता है ...और फिर देख इन पलकों को भिगोता हूँ .....हाँ मैं खुश तो हूँ .....खुश ही तो हूँ .....
हाँ जानता हूँ कि तुम्हें पसंद है मेरी मुस्कराहट ....मुस्कुराती हुई आँखें ....और वो जो लिखी थीं चन्द नज्में .....पर सच कहूं ....तुम्हारे चले जाने पर जैसे वो सब जाता सा रहा ....वो हंसी ...वो मुस्कराहट ...वो तराने ....सब कुछ .... याद है तुम्हारी कही हुई वो बात .... तुम खुश होती हो ये देख कि मैं खुश हूँ ....मेरी मुस्कराहट पर तुम फ़िदा हो ..... पर सच तुम्हारे कुछ ख़त हंसा देते हैं ....तो कुछ रुला देते हैं ....
उन खतों के दरमियाँ ....तुम्हारी यादें हैं ....ये सोच उन यादों को पढता हूँ ....तुम्हारे होठों की मुस्कराहट ...हर ख़त पर अपना जादू बिखेरे हुए है ....वो तुम्हारे होठों के निशान आज भी वैसे ही हैं .... जैसे इस दिल पर हैं ....पर इसे ख़त न समझना ...क्योंकि ख़त में लिखना होता है हाले दिल ....हर रोज़ के एहसास ....फासलों की कहानी ....यादों की रौशनी ....और भी बहुत कुछ ....तुम्हें तो पता ही है ....कि मैं खुश हूँ तो तुम खुश हो ....तुमने ही कहा था ...तो कैसे लिख दूं फासलों की दास्ताँ ....दिल की कहानी...आँखों का हर रोज़ गीला होना ..इन लबों का सच ....
कैसे धड़कता है अब ये दिल ....कैसे वो सब ख़त ...वो यादें ....रोज़ रोज़ आकर दरवाजा खटखटाती हैं .....हर रोज़ उन्हें साथ लेकर घर से निकलता हूँ ....और रोज़ देर रात ...फिर से एक नयी याद आ जाती है इस जहन में .....
हाँ इसे ख़त मत समझना ....क्योंकि ख़त में तो लिखना होता है .....
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23 comments:
hmm letter to ise nhi smjhega koi par likhte likhte letter likh toh diya hi aap ne..
.कैसे वो सब ख़त ...वो यादें ....रोज़ रोज़ आकर दरवाजा खटखटाती हैं .....हर रोज़ उन्हें साथ लेकर घर से निकलता हूँ ....और रोज़ देर रात ...फिर से एक नयी याद आ जाती है इस जहन में .....
आपने दिल के jajbaaton को gahre से utaara है ..............
chaa गए आप anil जी
dard hai ,kashish hai , mohabbat hai ... mohabbat bhi badi ajeeb hai .chahat hai jo khatm nahi hoti
हमेशा की तरह रूमानियत के दर्शन हुए.
आँखों की नमी...खतों में यादें... इजाज़त फिल्म ...मुस्कराहटें...यादें!
जज्बातों भरी पोस्ट.
रंजिश भी शिद्दत से निभाता है
ख़त तो भेजता है कुछ लिखता नहीं
हमेशा की तरह दिलचस्प
प्रेम की पराकाष्टा प्रदर्शित करती बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
enme likhi hai raaz ki bate khat jalaana nahi chhupa rakhna...
bahut sundar post anilji.....
बहुत कमाल का ख़त है.....यूँ भी आपकी लेखनी में एक जादू है
जब हाथ तकिये के नीचे गया तो ...आँखों की नमी फैली हुई दिखी ....नहीं नहीं मैं रो कैसे सकता हूँ ....तुमने मना जो किया था .....
सच आँखें नम हो जाती हैं जब पुरानी यादें दिल के किसी कोने से झांकती हैं ...और हमारी झूठी हँसी भी उस दर्द को छुपा नही सकती..... आपकी रचनाओं के बारे में टिपण्णी करना बहुत मुश्किल है क्योंकि भावनाओं को शब्दों में बाँधने का काम आपसे अच्छा कोई कर ही नही सकता .... मुरीद हैं हम आपकी रचनाओं के....
http://bawandar.blogspot.com/2009/04/20.html
अनिल भाई, देखना जरा आपकी एक रचना यहाँ छपी है.
दिलचस्प रचना है.
ये खत था या शायरी..
उलझ गया हूँ अनील जी!!!
मन भीगता सा जाता है बस
anil ji main kya kahun , ise padhkar to meri aankhe bheeg si gayi hai .. man ruk sa gaya hai ..
yaar aise touch touchy mat likho .. dil me kuch hone lagta hai ..
main aapko badhai nahi doonga , balki aapke lekhan ko salaam karunga ..
विजय
http://poemsofvijay.blogspot.com
लिखे जो ख़त तुझे वो तेरी याद मैं हजारों रंग के नजारे बन गये ..ये गीत बचपन मैं खूब सुना है ...ये सटीक है आपकी इस पोस्ट के लिए
अनिल जी, आपको पहली बार पढ़ा और लगा कि आपकी भाषा अपनी है। एक शब्दकर्मी होने के नाते शैली से विशेष प्रेम रखता हूँ...अच्छा लगा आपको पढ़ना अच्छा लगा।
पंकज नारायण
एक बात बताना मित्र - आजकल भी खत-वत का चलन है? या यह नोस्टॉल्जिया ही है।
ये ख़त नहीं हाल-ए-दिल है मेरा
ये फन है तुझसे बात करने का .......
बहुत ही ईमानदार अभिव्यक्ति लगी ,मेरी शुभकामनाएं आपके लिए ........
Pandey Ji
chahne wale jab aaj bhi khat likh dete hain to uska asar khas hota hai ...jo jahan mein ek khushboo ki tarah bas jata hai
तुम्हारे ख़त में सब कुछ होता था......दर्द...,प्यार...,एहसास...विरह की वेदना...., साथ होने का एहसास..., दूरियों का हिसाब किताब ....और तुम्हारी भीनी- भीनी सी मीठी सी मुस्कराहट......
वाह ....! .....सुभानाल्लाह ........!!
जब हाथ तकिये के नीचे गया तो ...आँखों की नमी फैली हुई दिखी ....नहीं नहीं मैं रो कैसे सकता हूँ ....तुमने मना जो किया था .....
अनिल जी इस बार तो कमाल ही कर दी आपने.....बहुत ही भाव पूरण , कोमल ह्रदय की सुकोमल अभिव्यक्ति......!!
शुक्रिया जी
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