जिंदगी, संघर्ष और तजुर्बा
>> 13 April 2009
बचपन में जब माँ के प्यार के छाँव तले फिल्म देखा करता था ...तो सब कुछ कितना आसान लगता था .... जब एक बच्चा छोटा है और सड़क पर भागता भागता एकदम से बड़ा हो जाता था ....और एक फिल्म का हीरो बन जाता था ....रईसी ठाट बाट...खुद का कारोबार ...नहीं तो कोई मोटर गैराज ही सही .....उसकी जिंदगी को चन्द पलों में समेट कर रख देते थे ....उसकी जिंदगी के संघर्ष को भी कितनी आसानी से दिखाते थे .....और उसकी जीत तो तय होती थी .....फिल्मों में कितना अच्छा लगता था वो संघर्ष .....हीरो का संघर्ष ....एक अलग छाप छोड़ जाता था ...और मन में और दिल में एक अलग छवि बना जाता था .....कि हीरो तो हर हाल में संघर्ष करके विजय पा ही जाता है .....लेकिन उस संघर्ष की जद्दोजहद को शायद ही कोई महसूस कर सके ...क्योंकि फिल्मों में तो सब बहुत खूबसूरती से फिल्माया जाता है ना ...सब कुछ अच्छा और हसीन लगता है .....
पर कहते हैं न कि अपनी दुनिया और अपनी जिंदगी फिल्मों से परे होती है ...यहाँ सुख और ख़ुशी दो पल की मेहमान होती है ....और एक लम्बी काली रात सा संघर्ष अपने पैर पसारे रहता है .....बिल्कुल थका देने वाला .....हरा देने वाला ...कमजोर कर देने वाला .....तब कोई हीरो याद नहीं आता ....तब लगता है कि जिंदगी और इसको जीने की जद्दोजहद क्या होती है ......सच कितनी अलग है ये जिंदगी .....
जब तक होश सँभालने लायक हुआ तब तक जिंदगी बहुत ठीक सी गुजरी ....जाना ही नहीं कि संघर्ष क्या होता है .....लड़ने की शक्ति कहाँ से आती है .....कहाँ से मिलता है हौसला ......कैसी जीत के लिए दिन रात एक करना होता है ......शायद जब तक नहीं ...जब तक कि उस संघर्ष से सामना नहीं होता ...तब तक हम और हमारा होश किसी खयाली दुनिया में रहता है ......
पर कहते हैं ना कि जब जिंदगी खुद सिखाने पर आती है तो ऐसा सिखाती है कि ......बच्चू पल्ला झाड़ कर ऐसे नहीं जाने दूंगी .....बिल्कुल पक्का बना कर छोडूंगी पत्थर के माफिक .....एक ही पल में होश ठिकाने आ जाते हैं जब पास कुछ नहीं होता ...खुद ही सब कुछ पाना होता है ......कल का पता नहीं होता ...आज की भी फिक्र होती है ....और जिम्मेदारी हो सो अलग .....पर कहाँ सीखा था तब तक मैं ... जब तक मेरा खुद सामना नहीं हुआ था जिंदगी से
याद है मुझे जब एक अंकल के संघर्ष की कहानी मुझे सुनाई जा रही थी ...कुछ सभ्य और बुजुर्ग लोगों के बीच बैठ ......कि वो एक ऐसे इंसान थे जिनके पास एक वक़्त खाने को निवाला नहीं था ...पढाई पूरी करनी थी ....कपडे नहीं थे ....ऐसा कुछ नहीं था कि कह सकें कि हाँ कम से कम मेरे पास ये है जो मुझे नहीं लेना होगा .....पर एक चीज़ थी उनके अन्दर हौसला ....जिंदगी से लड़कर उससे अपना सब कुछ छीन कर ..अपना बना लेने का हौसला और ताकत ...और वो हिम्मत अंत तक डटे रहने की ...
एक रात जब वो भूखे थे तो रिक्शे वालों के पास गए और बोले कि मुझे रिक्शा दे दो चलाने के लिए ...भूख इतनी लगी थी कि पेट को सापी (कपड़े) से बाँध रखा था .....तब रिक्शे वालों ने कहा था कि क्या करते हो ....पढता हूँ ....पर तुम ये सब क्यों .....अंकल के मुंह से निकला था ...कि ये सब न पूँछो ...उन्हें अब भी याद है कि किस तरह वो रात को रिक्शा चलाते थे और दिन में पढने कॉलेज जाते थे .....कॉलेज के साथियों ने जब एक दिन उन्हें देख लिया तब सबने उनकी मदद करनी चाही ...पर उन्होंने मदद न ली ....कहा कि तुम कब तक मदद कर सकते हो मेरी ...ये लड़ाई तो मुझे खुद लड़नी होगी .....आखिर ये संघर्ष ही तो मेरा जीवन है ...मुझे कमजोर मत बनाओ ......कैसे लड़ लड़ कर जिंदगी से ...वो एक बैंक मैनेजर बने थे .....और जब उनके खुद के बच्चे इंजिनियर और डॉक्टर बन गए ...तब भी वो अपना अतीत नहीं भूले ....वो जान चुके थे कि जिंदगी क्या है ...सत्य क्या है ...संघर्ष क्या है
कितना अच्छा लगा था उनके संघर्ष की कहानी को सुन कर ....पर अंदाजा नहीं था उस दर्द का ...उस दुख का ..उस मुसीबत का .....पर कहते हैं न कि जब जिंदगी सिखाने पर आती है तो एक झटके में सब कुछ सिखा देती है
मेरी जिंदगी ने अचानक से करवट ली ....जिंदगी ने अचानक से ही सब कुछ छीन लिया मुझसे .....इतना तोडा कि उठना भी मुश्किल था .....याद है मुझे जब में एम.सी.ए. द्वितीय वर्ष में था ....जब मेरे पास अगले सेमेस्टर की फीस भरने तक के पैसे नहीं थे .....कोई नहीं था ऐसा जहाँ से कोई आशा की किरण नज़र आती ...सब कुछ बिखरा हुआ था .....मैं समेट भी नहीं सकता था ...एक पल तो लगने लगा था कि कहीं मुझे एम.सी.ए. छोड़नी न पड़ जाए ..... किसी ने साथ नहीं दिया उस पल ...न कोई रिश्तेदार सामने आया .....कहीं से कोई आस नहीं दिखाई दे रही थी ...वजूद बिखर सा गया था ......तब सिर्फ और सिर्फ मेरे दोस्तों और मेरे सीनियरों ने मेरा साथ दिया था .....न भुला सकने वाले दिन थे वो ........जो जब बीत जाते हैं तो आसान से लगने लगते हैं ...पर उस पल सबसे ज्यादा मुश्किल होते हैं ...
याद है मुझे जब एम.सी.ए. के बाद में दिल्ली की सड़कों पर अपने जूते घिसा करता था ....रास्ते जो ख़त्म नहीं होते थे उन पर चले जाता था .....पर फ्रेशर समझ नौकरी ना देने वालों की कमी नहीं .....एक दिन जूता भी रो रो कर फट गया था ...आगे से मेरी दो उँगलियाँ बाहर निकल आयी थी .... मेरे पास सिर्फ इतने पैसे थे कि खाना भर खा सकूं .....उस रोज़ पूरे २० किलोमीटर पैदल चला था ....4-6 जूता सही करने वालों के चक्कर लगाये थे ...तब जाकर उस कीमत में जूता सही करने वाला मिला था ....जितने मेरे पास पैसे थे ...उस रोज़ में भूखा सोया था ....वैसे भूखा मैं सिर्फ एक रोज़ नहीं सोया ...पर वो रोज़ कुछ ख़ास याद रहता है मुझे .....
चिलचिलाती धूप और खाली पेट की भूख ...दोनों एक साथ ...दोनों ने दोस्ती कर ली थी ...और जिंदगी दूर खड़ी मुस्कुराती थी .....तब कभी कभी माँ के आँचल तले देखी वो फिल्में याद आ जाती थी ...जिनमें हीरो को भागते भागते बड़ा कर देते थे और अचानक से वो एक कारोबारी या बड़ा आदमी बन जाता था .....तब पता चलता था कि जिंदगी का कोई फ्लेश बैक नहीं होता और ना ही जिंदगी को फॉरवर्ड कर सकते....कि चलो यार ये बहुत ख़राब हिस्सा है ...इसे रिमोट पकड़ आगे बढाओ ...बहुत रुलाऊ है यार ...पका दिया इसने तो .....पर नहीं जी जिंदगी न फॉरवर्ड की जा सकती न बैक .....बस इस जिंदगी के हर पल को जीना पड़ता है ......अब ये जो संघर्ष होता है ना ...ये सुनने में प्यारा लगता है .....पर बिल्कुल नहीं साहब .....जब हर 5 वे दिन भूखा रहना पड़े तब पता चलता है ...जब जूते घिस जाएँ ...किसी आलीशान ऑफिस में घुस इंटरव्यू देना हो ....और जूता शर्मा रहा हो ...उस पर धूल चढी हो ....आप पसीना पोंछते हुए अन्दर घुसे हों .....लाइन में एक से एक सुन्दर हसीना हो ....एक पल भी रुके बिना अंग्रेजी को तलवार की माफिक चलाने वाली हाथ में लिए युद्ध में खड़ी हों ....और आप कहें अरे बाप रे ...ये अप्सरा ....और ये तलवार ....और जब शाम को मायूस लौटना पड़े ......और तो और जी जिस ढाबे पर खाना खाते हों ...गुजारे के लिए कम से कम पैसे में खाना खाना चाहें ...तो चन्द रोज़ बाद ढाबे वाला भी उल्टी निगाहों से देखने लगे ....जो शुरू में २ पराठों के साथ आपको सब्जी मुफ्त देता हो ....वो अब कहता हो कि इसका तो रोज रोज का है ...और प्लेट में सूखे पराठें लगभग पटकता हुआ सा जाये ......जब एक एक दिन को दोस्तों का सहारा ले ले कर काटना पड़े ...कभी इस दोस्त के यहाँ तो कभी उस दोस्त के यहाँ ....सच तब पता चलता है कि जिंदगी क्या है ...संघर्ष क्या है
संघर्ष की गाथा बहुत विचित्र होती है जी ...जब यही जिंदगी लगातार जीनी पड़े कई दिनों तक ...तब याद आता है वो हीरो का रोड पर भाग कर बड़े हो जाना ...एक बड़ा आदमी बन जाना ....और फिर मुझे वो अंकल याद आते हैं जिन्होंने रिक्शा भी चलाया था और पढ़े भी थे ......और फिर बैंक मैनेजर भी बने थे
हाँ जिंदगी ने मुझे अब भूखा सुलाना बंद कर दिया है ...और इतना देने लगी है कि अपने परिवार को भी भूखा ना सोने दूँ .....पर अभी संघर्ष लम्बा है ......देखो कब पिक्चर वाले हीरो की माफिक बड़ा आदमी बन पाता हूँ ...या फिर वो अंकल जो मैनेजर बन अपनी सभी जरूरतों को पूरा कर रिटायर हुए थे ........देखें जिंदगी कहाँ ले जाती है
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35 comments:
बेहतर अभिव्यक्ति । धन्यवाद ।
पोस्ट के शुरु में ये undefined क्या है? शायद तारीख का फॉर्मेट सही नहीं है टेम्प्लेट के लिहाज से । बारी-बारी सभी फॉर्मेट आजमायें, शायद सही हो जाय ।
शुक्रिया दोस्त ...मैंने ध्यान भी नहीं दिया था ...आपने ध्यान भी दिया और मुझे उसका हल भी बताया ...आपका बहुत बहुत शुक्रिया
ज़ल्द बड़े आदमी बन जाओगे,मेरी और पूरे ब्लाग परिवार की शुभकामनाएँ आपके साथ है।संघर्ष से तो खैर सामना नही हुआ लेकिन तुमने जिस तरह सामना किया है ज़रूर तुम संघर्ष की भट्टी से तप कर निकलने वाले कुंदन की तरह चमकोगे।
आप एक दिन बहुत कामयाब होंगे ....संघर्ष करते रहने वाले हमेशा कामयाब होते हैं
अनिल जी आपने जितना संघर्ष किया है आजतक मैंने उसकी कल्पना भी नहीं की शायद उसका परिणाम ये है की आज तक मैं उस मकाम को हासिल नहीं कर पाया जो मुझे अब तक पा लेना चाहिए था .
बिना संघर्ष के किसी को कुछ नहीं मिलता और आपने जितना झेला है उससे आप का हौसला बढा ही होगा .
भगवान करे आप जीवन में खूब तरक्की करे और एक मिसाल की तरह बने जिसे सब याद करे , जैसे आप अंकल जी की बारे में बता रहे हैं .
मेरी शुभ कामनाये आपके साथ है .
जीवन-संघर्ष में आपकी सफ़लता के लिये हार्दिक मंगलकामनायें। लिखते रहिये ताकि औरों को भी हौसला मिले।
बहुत अच्छा लिखते हो भई ... चिंता मत करो ... मेहनत करो ... जल्द ही बडे आदमी बन जाओगे ... मेरी शुभकामनाएं भी तुम्हारे साथ है।
Writer hiding behind a web designer ..carry on ...
जिंदगी, संघर्ष और तजुर्बा.....
I am not a web designer dost.....I m a Programmer/Software Engineer.
and writing is my hobby.....
well thanks for the valuable comment.
प्रिय अनिलकांत,
संघर्ष, जीवन का पहल सबक है और शायद आखिरी भी. मेरी यह बात हो सकता है प्रथमतः किसी के भी गले नही उतरे, पर इसे याद रखें कि जीवन के प्रथम आगमन से गर्भस्थ शिशु कोख में संघर्षरत था, वहीं धरती का स्पर्श भी उसे, जन्म-प्रक्रिया के दौरान किये हुये संघर्ष से ही संभव हो पाया है.
इसके बाद तो जीवन जैसे, संघर्षों की ही कहानी है.
जो तराशा गया वही देवता है, या यूँ कह ले कि घिस-घिस के ही शंकर बना जा सकता है और कुछ मुकाम भी हांसिल किया जा सकता है.
उज्जवल और खुशहाल जीवन की शुभकामनाओं के साथ,
मुकेश कुमार तिवारी
आपकी कलम और आपकी अभिव्यक्ति में बहुत दम है...
keep it up
आपके ब्लॉग का लेआउट बहुत पसंद आया...
मीत
मन के विचारो को आप बड़ी सहजता केसाथ कह जाते हो....
बहुत अच्छा लिखा है....... लिखते रहिये......
AAP KE VYAKTITV MEIN BAHUT KUCHH HAI.KAABILE TAREEF HO, TO TAREEF TO KARNI HI PADEGI. BADHAAI.
अजीब बात है....ऐसा सच में भी हो सकता है?सबसे बड़ी बात स्पष्ट अभिव्यक्ति ...मैं एक झटके में पूरी पोस्ट पर फिसलता चला गया॥
संघर्ष करनेवाला को मुकाम जरूर मिला है, आपको भी मिलेगा, मेरी शुभकामना आपके साथ है।
बहुत सुंदर लिखा है आपने .संघर्ष तो जीवन जीनें का नाम है .
Anilji,
Sabse pehle to us sookhe pattekee tasveer behad pasand aayee...
Aaur aapke lekhankee mai hameshase kayal hoon...lekin jistarahse aap maa ko yad karte hain, manme aataa hai, kitnee khushnaseeb maa hogee wo..kaash har beta/aulaad apnee maako isee samvednaake saath yaad kare...
sneh aur shubhkamnayon sahit
shama
sanghrash se hi jivan hai varnaa to aasaani se milne waali kaamyaabi menkoi ras nahi....sach ke liye badhaai
हरेक का अपना संघर्ष है नरक है स्वर्ग है यही हमें दूसरो से अलग कतार में खड़ा करता है जो संघर्ष करते हैं वही जीते हैं जिंदगी और जिंदगी जीती हैं उनका संघर्ष ....
आप सभी के प्यार, स्नेह और हौसला बढ़ाने के लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ ...आशा करता हूँ कि आप सभी का स्नेह और प्यार यूँ ही मेरे साथ बना रहेगा
मत हो तू उदास
जरा हौसंला तो रख
वह सुबह जरुर आऐगी
जब तेरी मंजिल तुझे मिल जाएगी
जिदंगी चलने का नाम है
यूँ ही चला चल।
sir main too suruaat kar rahii par jaahati hun sabh bhii kare
bahut acchi baat kahi ...
apke blog ki charcha yahan par zarror dekhein.
dhanyabaad Anil ji ! aap ki lekhni damdaar hai,anand aya!
सब से पहले देर से पहुंची आप की इतनी अच्छी पोस्ट पर..उस के लिए क्षमा चाहती हूँ.
दिल को छू लेने वाली पोस्ट है..बहुत अच्छा लिखा है आप ने..अंकल का पेट पर कपडा बाँध का भूख को रोकना....उनके अथक संघर्ष की कहानी पढ़ कर यही लगा की चलते रहने का नाम ही जीवन है..उंचाईयां किसी को आसानी से ,aur किसी को मुश्किल से मिलती हैं.
शुक्रिया अल्पना जी ...आशा करता हूँ की आप यूँ ही समय निकाल कर मुझे पढ़ती रहेंगी
सितारों के आगे जहाँ और भी है , कि मत हो उदास ऐ दोस्त , जहाँ रैन है वहां भोर भी है !
कोई यहाँ आकर देख ले की शब्द बोलते भी हैं !
...अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति..
likhte rahiye...
http://vjswami4u@blogspot.com
Aap ye bataye jo b stories apne likhi he ye sab real he...................
haan ye real story hai...ye meri story hai
So you are a software programmer???
In which technology you work??
by the way I am in .Net.
Monika Gupta
mere pas shabd nhi hai fir v kahe ki koshis karti hu ki ye sanghrsh par vijay ki kahani hai apki.ese hi likhte rahiye
Awesome !
New to your blog but will be a regular reader since now.
You have an organized mind of a Software Engineer and a gracious humour.
Keep Writing.
jujh kaanto ki dagar se tu jhum ke nikal,
tu hai jameen ka par viraat aasman pe chal,
dil me zazba bhi hai, baahon me hai bal,
tu aise chal, hawaaon ka rukh badal.
Dear Anil Ji,
Namaskar.
I am a Teacher in a school in Delhi. Students of this generation are reluctant to read story books in Hindi. I am trying to encourage this generation by taking help from your articles / stories. Your contribution in the service of Hindi is encouraging. I do not know Hindi typing. Kindly give your phone number.
Yogesh Sharma
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