दास्तान-ए-मोहब्बत बोले तो 'लव स्टोरी'
>> 27 April 2009
बिल्कुल सर्द मौसम ....ठंडी ठंडी हवा चल रही थी .....पर ऐसे में भी उसका दिल जल रहा था ....ये शायद चौथी सिगरेट होगी.... जिंदगी में पहली बार पी रहा था ....फिर भी किसी ऐसे इंसान की तरह ....जिसे सिगरेट की लत हो ..... उसका कलेजा तो जैसे जला जा रहा था .... हाँ आज उसके लिए सब कुछ ख़त्म था ....आज वो इसे कहकर गयी थी कि वो अपने माता- पिता के खिलाफ नहीं जा सकती .....हाँ वो जिसे उसने बहुत चाहा.....पर आज उसे लग रहा था कि उसकी जिंदगी का मकसद जैसे ख़त्म हो गया हो .....आज वो कसम खा कर आया था ...जैसे कि आज आखिरी रात है .....कल सवेरा किसे देखना है ....
कुछ सोचते हुए वो अगली सिगरेट जला लेता है ..... तभी पीछे की बैंच से आवाज़ आती है .... आप क्या यहाँ से दूर हटके सिगरेट पी सकते हैं .... मैं काफी देर से बर्दाश्त कर रही हूँ ...और आप हैं कि धुंआ उडाये जा रहे हैं .... आदित्य पीछे मुड़कर देखता है ....एक खूबसूरत चेहरा सामने था ....गौर से उसके चेहरे को देखता है ....तभी वो बोलती है जी आपसे ही कह रही हूँ ....
आदित्य का ध्यान टूटता है ...ओह माफ़ कीजिये ...मैंने ध्यान ही नहीं दिया ....हाँ आप क्यों ध्यान देने लगे ....आपको तो ये भी ध्यान नहीं कि ये रेलवे स्टेशन है ...और देर रात को आप सिगरेट पी रहे हैं ...आपको मालूम होना चाहिए ....कि सिगरेट पीना मना है ...ये नियम है. नियम तो बहुत बने हैं ...तो क्या सब माने जाते हैं ...या ये हमारा सभ्य समाज मानता है ....आदित्य बोला ..आज ये आदित्य नहीं उसके अन्दर भरा हुआ गुस्सा बोल रहा था ...इसके साथ ही वो सिगरेट फेंक देता है .....और अपनी बैंच पर सर झुका कर बैठ जाता है ....शायद उसे इंतजार था ...आने वाली ट्रेन का ....उसे खुद भी नहीं पता था कि ...आज क्या होगा .....
क्या आपको पता है कि ये ट्रेन कितनी देर में आएगी ...पीछे से फिर एक आवाज़ आती है .... जी नहीं ...मुझे नहीं पता ....आदित्य बोला. आप हमेशा ऐसे ही गुस्से में रहते हैं क्या ....लड़की बोली ...आदित्य कुछ नहीं बोलता ....शांत , चुपचाप.....खुद से बेखबर .....इतनी सर्द ....कपकपा देने वाली हवा ...और उस पर सिर्फ एक पतली शर्ट ही पहन कर ही तो निकला था ....खुद को संभालता हुआ .....वो बैंच पर से उठा और चहल कदमी करने लगा .....उसे कुछ सूझ नहीं रहा था
तभी आने वाली ट्रेन की खबर दी जाती है ....आवाज़ आती है ....कि फलां स्टेशन से चलकर फलां स्टेशन को जाने वाली गाड़ी प्लेटफोर्म नंबर ... पर आएगी ....लड़की अपना सामान समेटने लगती है ....तभी आदित्य वापस आ अपनी बैंच पर बैठ जाता है.... लड़की पूंछती है ...आपको कहाँ जाना है ? ....पता नहीं ...आदित्य बोला.
कमाल है ...जो भी बात पूँछो आपको पता नहीं ....
शायद जब जिंदगी में कोई वजह न रहे कुछ भी पता रखने की .....तो हमे कुछ पता नहीं रहता ...आदित्य बोला
देखिये मैं ये तो नहीं जानती कि आखिर क्या वजह है ....कि आप इतने परेशान हैं .... लेकिन हो सकता है जिंदगी ने आज आपको कुछ भी पता रखने की कोई वजह नहीं छोड़ी हो ....वही आपको वजह भी दे दे .....हाँ यही तो जिंदगी है ....
तभी ट्रेन के आने की आवाज़ आती है ....शोर मचाती हुई ट्रेन प्लेटफोर्म पर खड़ी हो जाती है .... लड़की अपना सामान ले ट्रेन में चढ़ जाती है ....ट्रेन चली जाती है ....आँखों से ओझल होने में कुछ ही देर लगती है .... कुछ सोचते हुए आदित्य उठता है और फिर बैठ जाता है ....सिगरेट निकालता है .....जलाता है और फिर धुंआ उडाता है .....शायद वो अब अगली ट्रेन का इंतजार करेगा ....उसकी जल्दबाजी सिगरेट का पैकेट ख़त्म कर देती है .....अगली ट्रेन आने की खबर दी जाती है .....वो उठता है ....
वो फिर चहल कदमी करने लगता है ....अचानक उसकी नज़र पीछे की बैंच पर पड़ती है ....एक फाइल दिखाई देती है ....वो उसे उठाता है .... उसमे उस लड़की के डिग्री, सर्टीफिकेट थे .....नाम पढता है ...प्रेरणा ...हाँ प्रेरणा नाम था उसका ....क्या अजीब इत्तेफाक है ....वो एक अजीब हंसी हँसता है ....फिर हौले से मुस्कुराता है ....अब फाइल उसके हाथ में है ...वो धीरे धीरे क़दमों से प्लेटफोर्म के अंतिम छोर पर पहुँच जाता है .....फिर पटरियों पर .....ठीक बीचों बीच पटरियों के खडा है .....सामने से कोई रौशनी चमक रही है ....उसकी आँखों को अब कुछ दिखाई नहीं दे रहा ....
आवाज़ और तेज़ आने लगती है ...शायद अब ट्रेन और पास आने लगी ...अचानक से ही वो दूर उछल कर गिरता है ....ना जाने क्यों अब मरने का उसका मन नहीं है .....फिर वो फाइल खोलता है ....फिर बंद करता है .....फिर खोलता है ...पता देखता है .....फिर हौले से मुस्कुराता है ... शायद चन्द पल और जीने की उसे वजह मिल गयी थी ...शायद अब उसे पता था कि अब उसे क्या करना है .....उस लड़की की बातें उसके कानों में गूंजती हैं .....वो फिर सिगरेट की डिब्बी निकालता है ....पर उसमें सिगरेट नहीं ....वो खाली है .....
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19 comments:
हमेशा की तरह शब्दों की सीमा से परे है ये आप की कहानी.... कितना सजीव चित्रण एक हारे हुए प्रेमी का ... और उम्मीद की उस किरण का भी जो उसे सिखा जाती है कि .... कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त .....अब जिन्दगी प्यार के लिए न सही, अपने लिए न सही औरों के लिए जियो ... बहुत सुंदर कहानी .....
बहुत अच्छा लिखा है आपने .बधाई
जिदंगी में होते है बहुत रंग। एक रंग धुधला हो तो दूसरे रंग़ में रंग जाना चाहिए।
सुन्दर कहानी है।बधाई।
बहुत सुंदर.
रामराम.
अनिल , कथ्य साफ़ सुथरा और स्पष्ट है. पात्रों का चयन भी बोझ नहीं बन रहा माहौल में सिर्फ सिगरेट और बेंच ही अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं, सुन्दर मोड़ भी है फाईल. अब मुझ पाठक की नज़र में इस रचना पर लिखना बेमानी है क्योंकि ये पूर्ण है फिर भी काश लड़की सिर्फ एक ही बात कहती कि आप सिगरेट ना पियें . आपने कथ्य शिल्प और उपचार का पूरा ध्यान रखते हुए लिखा है बल्कि ये कहा जाये दिल से लिखा है बधाई !
किशोर जी अगर आप कुछ सुझाव दे सकें स्पष्ट तो आपकी मेहरबानी होगी ...आपके सुझाव का इंतजार रहेगा
there is a fine line between fiction and real life..a real life incident can inspire a fiction..liked the story...when all doors are closed..there has to be some window open somewhere..
अच्छी कहानी पढ़ने को मिली, बहुत बहुत बधाई।
Anil,
Kaafi spasth shabdon ka prayog kiya hi aapne yahan! Vaakai hi aapne yeh dil se likha hi......bahut sundar!
khoobsurat kahanee.....badhai
अच्छा लिखा मित्रवर। मैं अनुभूत करने का यत्न कर रहा हूं।
प्रिय अनिल कान्त जी,
आपकी कहानी बहुत अच्छी लगी.कहानियां मुझे बहुत पसन्द है. आगे से आपकी रचनाओ का इन्तजार रहेगा.धन्यवाद.
Nice one...
"Pataa nahin" :))
Jayant
अनिल भाई,
आपको धन्यवाद कहने का
अवसर और स्थान नहीं मिला...
तो अब विलंब से ही सही,
और अनुचित स्थान पर ही सही,
मेरा कोटि कोटि धन्यवाद स्वीकारें...
एपी मेरे ब्लॉग के "अनुसरण-कर्ता" बने...
आपने मेरे ब्लॉग के भाग्य सावरे..
आगे भी अवश्य पधारें....
~जयंत
प्रेरणा जीने की प्रेरणा दे कर चली गयी,
दिल इतना खुश था की,
सिगरेट ख़तम पर नही याद थी,
एक बिखरे पल के लिए,खुद को भुलाए बैठे थे,
उधर दूसरे पल ने उनकी,जिंदगी आबाद की.
प्रिय अनिल कान्त जी,
मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, इसी बहाने आपके ब्लॉग से परिचय हो गया। आपकी कहानी बहुत पसंद आई। आशा करता हूँ भविष्य में और भी रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी।
बहुत बहुत शुक्रिया !
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा ! आपने बहुत ही सुंदर लिखा है !
दिलचस्प दास्तान अनिल जी और लेखनी की तारीफ़ क्या करूं,,,,
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