तुमसे पहली मुलाक़ात और तुम्हारी वो मुस्कराहट
>> 22 April 2009
बुझता नहीं चिराग मोहब्बत का
जब से जला है इस सीने में
कमबख्त दिल आज भी उसके नाम पर धड़कता है
कुछ मुलाकातें अपना असर छोड़ जाती हैं ...जो इस दिल पर हमेशा अपना कब्जा किये रहती हैं ....यादें भी ना खूब होती हैं ...बस दिमाग की हार्ड डिस्क में एक बार स्टोर हो जाती हैं ....तो बस हो जाती हैं ...कमबख्त इन्हें फोर्मेट भी नहीं मारा जा सकता ....शायद कहीं तुम अगर मेरी ये बातें सुन रही होगी ...तो बहुत जोरों से हँस रही होगी ....पर सच तुम्हें हँसते देख दिल को सुकून मिलता है ....मुझे तुम्हारी हँसी गिरते हुए झरने सी लगती है ....या उस बच्ची की मुस्कराहट की तरह ....जिसे चोकलेट देने पर वो मुस्कुराती है ...खुश होती है .....बिल्कुल मासूम हँसी ....हाँ तुम तुम ऐसे ही तो मुस्कुराया करती थीं
याद है तुम्हें जब तुम मुझसे पहली बार मिली थीं ....उस रोज़ तुमसे मिलने के लिए क्या नहीं किया था .....तुम भी ना ...जब चलती ट्रेन में तुम्हारा एस.एम.एस. मिला था ...और तुम पुँछ रही थीं ...कि मेरा बोगी नंबर और सीट नंबर क्या है .....और मैं कैसे बिना सोचे समझे ...उस बीच स्टेशन पर उतर गया था ....भोपाल स्टेशन की वो शाम मुझे आज भी याद है ....जब मैं अपना सूटकेस ले बाहर तुम्हारे आने का इंतज़ार करने लगा था ...कि बस तुम अब आओगी ...और तुम्हारे आने पर तुम्हारे मुस्कुराते चेहरे को देख दिल को जो राहत मिलेगी ...वो सचमुच बहुत कीमती होगी ...और कैसे मैंने उस रोज़ अपने सामने से उस ट्रेन को जाने दिया था ...वो ट्रेन जिसमें मेरा रिज़र्वेशन था ....बिना कुछ सोचे समझे
और कैसे जब मैंने तुम्हें फ़ोन किया था ....उस रेलवे स्टेशन के टेलीफोन बूथ से ...और पूँछा था कि तुम आई क्यों नही ...और तुमने कैसे कहा था ...कि वो तो मैंने ऐसे ही पूँछा था ...उफ़ तुम्हारी अदा ...मेरी तो साँस अटक गयी थी .....पर तुम कितनी क्यूट निकली ...तुमने कैसे बहाना बना अगले रोज़ आने का वादा किया था ...सच तुम्हारी वो अदा आज भी मुझे बहुत प्यारी लगती है ....तुम मेरे लिए ...कैसे बिना परवाह किये ...उस बस के लम्बे सफ़र से ...मुझसे मिलने आयीं थी ....उस रोज़ तुम मुझे दिल के बेहद करीब मालूम हुई थीं ...हाँ वो एहसास ही तो है ...जो आज भी जिंदा है
मैं कैसे चश्मा लगाये ...स्टाइल मारता हुआ ...अपनी अटैची पर बैठ तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था ....और जब तुम वहाँ पहुँची थी ...तुम्हारी वो मुस्कराहट ...तुम्हारी वो सादगी ....और तुम्हारे होठों के साथ तुम्हारी वो मुस्कुराती आँखें ...आज भी मेरे जेहन में हैं ....लाख कोशिश करने पर भी पल पल मेरी आँखों के सामने ...तुम्हारी वो आँखें आ जाती हैं ...और दिल को एक सुकून दे जाती हैं ...और कभी कभी इन पलकों को गीला कर जाती हैं
उस रोज़ का दिया हुआ तुम्हारा वो कागज़ मैंने आज भी संभाल कर रखा है ....पता नही क्यों अब वो बहुत कीमती हो गया है ...और सच में उसकी कीमत बढती ही जा रही है .....याद है मुझे जब तुम मेरे सामने बैठी थीं ...कितनी खुश थीं तुम ....आज तक मुझसे मिलकर उतना खुश कोई नही हुआ ...जितना उस रोज़ तुम हुई थीं ....और तुम्हारे माथे पर वो हल्की हल्की बूँदें बहुत प्यारी लग रही थीं ...जो मुझसे मिलने की चाह में ....तुम्हारी जल्दबाजी ने पैदा कर दी थी
और वो मुस्कुराते हुए कहना तुम्हारा कि स्टाइल बहुत मारते हो ....अब तो अन्दर हैं हम ...अब तो चश्मा उतार दो ...और जब मैंने चश्मा उतार दिया था ....तो तुम कैसे शरमा रही थीं ...कैसे बार बार मेरी नज़रों से अपनी नज़रें चुरा चुरा कर ...मेज पर रखे उस फूलदान को देखे जा रही थीं ....और मेरे कहने पर कि क्यों इतनी शरमा रही हो ....तो तुम कैसे शर्माते हुए मुस्कुरायी थीं ....उफ़ तुम्हारी वो मोहक मुस्कराहट कैमरे में कैद कर लेने का मन किया था ....तुम्हें पता है आज भी मेरे दिल की एक अलमारी में वो मोहक मुस्कराहट छुपा कर रखी हुई है ....और दूजी अलमारियों में तुम्हारी तमाम यादें छुपा कर रखे हुए हूँ
और जब तुमने कहा था कि आज की इस मुलाक़ात पर ...कुछ याद रखने वाली बात लिख कर दो ...तुम्हें पता है उस रोज़ की ...मेज से उठाये हुए उस कागज़ पर बनी तुम्हारी पेंटिंग आज भी मेरे पास रखी हुई है ....जब बहुत याद आती है तो उसे देख जी बहला लेता हूँ ....और जब चलते हुए हम दोनों साथ थे ...पता है मुझे किस तरह तुमने मुझे इस बात का एहसास भी नही होने दिया ...और 400 रुपये मेरी जेब में ये कहकर रखे थे कि तुम्हें जरूरत होगी इसकी ...मैं जानती हूँ कि तुम्हारे पास पैसे ख़त्म हो गए होंगे ....
उस रोज़ जब तुमसे बिछड़ रहा था.... तो सच दिल बहुत जोरों से धड़क रहा था ....पता नही क्यों .....और कैसे मैंने तुम्हारे गालों पर हाथ रख कहा था ....कि अपना ख्याल रखना ...और तुम मुस्कुरा दी थीं ....पता है मुझे तुम्हारे वहाँ से चले जाने पर तुम बहुत रोयी होगी .... जानती हो ....मैं उस मोड़ पर अटैची पर बैठ ...तुम्हारे इन आँखों से ओझल हो जाने तक तुम्हें देखते रहा था ......जब कभी ख्वाबों में खुद को वहीँ उसी मोड़ पर बैठा हुआ देखता हूँ ....
मैं तुम्हें आज भी बहुत याद करता हूँ ....
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22 comments:
आपका दिल सचमुच बहुत प्यारा है .....तभी तो दिल से इतनी प्यारी प्यारी पोस्टें निकलती हैं ...जिसमें हम डूब जाते हैं .....ये मोहब्बत भी ....कमबख्त एक नशा ही है
आप तो बस रुला सा देते हैं . आपकी कोई भी पोस्ट पढ़ लो दिल उसमें डूब जाता है . आप हमेशा दिल से लिखते हैं
बहुत खूब। भावपूर्ण प्रस्तुति।
दिल को धड़कते रहने के लिए न जाने दुनिया जहान के कौन-कौन से उपाय किए जाते हैं। लेकिन यदि यह मोहब्बत से अपने आप टिक टिक करते रहता है, तो फिर इश्क ही खुदा है :)
मैं कर रहा था गम-ए-जहाँ की बात।
तभी याद आयी वो पहली मुलाकात।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
पहली मुलाकात तो होती ही ऐसी है...ना भूलने वाली !आपने तो बिलकुल जीवंत वर्णनं किया है...
बुझता नहीं चिराग मोहब्बत का
जब से जला है इस सीने में
कमबख्त दिल आज भी उसके नाम पर धड़कता है
wahj ye to treveni si lag rahi hai...
aur writer banne ke bare main kya socha?
दिल से लिखी दिल तक के लिए पोस्ट। बहुत ही अच्छी लगी। उनके दिल तक पहुंची हो या नहीं लेकिन पढ़ने वालों के दिल तक तो पहुंच गई। फिर सिलसिला जारी रहा या पहली मुलाकात ही आखिरी हो गई? कभी मौका लगे तो उस पर भी....।
वाह अनिल जी................दिल को खींच लिया आपने.....पुरानी बातें...........यादें.......... याद आ जाती हैं..........
bahut hi sunder dil ke jazbat bayan huye,khubsurat
jazbaat ko shabdho me yu ukera jata hai.. aaj hi pata chala
प्यार ही प्यार है हर शब्द में........
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया ....जो आपने अपना स्नेह मुझ पर बना रखा है .....आशा करता हूँ कि आप यूँ ही अपना स्नेह बनाये रखेंगे ....
दर्पण जी मैं तो दिल में जो आता है वो लिख देता हूँ ....और लिखने के मामले में मैं अभी बहुत छोटा हूँ
kisi ne jo dil ki kahani sunayee ..tumhari mohabbat boht yaad ayee...aapne jo likha hai...mere pass shabad nahi uspe kahne ke liye....bt can feel ur feelins...
kisi ne jo dil ki kahani sunayee ..tumhari mohabbat boht yaad ayee...aapne jo likha hai...mere pass shabad nahi uspe kahne ke liye....bt can feel ur feelins...
वाह अनिल भाई पहली मुलाकात की खूशबू यहाँ तक आ गई।
वाह अनिल जी आपकी रचनाओं की तारीफ़ करने के लिए शब्द नही होते हैं, लगता है जैसे सब कुछ आंखों के सामने हो रहा है अब तो इंतज़ार है आपकी किताब का ..... कब तक लिखने का सोच रहे है ???
बहुत रूमानी पहले प्रेम की खुशबु सा महकता हुआ .बढ़िया लिखते हैं आप
एक खूबासूरत स्मृति को इतने सुंदर ढ़ंग से उकेरा है आपने कि सब कुछ जैसे सजीव हो उठा..
अच्छा लिखते हो अनिल....बहुत अच्छा
अनिल भाई पहली मुलाकत जान ले लेती है। बहुत शानदार रचना है। उससे भी शानदार आपका फोटो है। सुंदर ब्लॉग है। मेरे ब्लॉग पर हमेशा आते रहिए।
bhut acchha likha hai aap ne
or ye khat hi hai
gargi
अनिल जी को उनकी मोहब्बत के लिए बधाई। बहुत बिरले ही होते हैं जो अपनी मोहब्बत का सही शब्दों में तराश लेते हैं, वाकई आपने जिन शब्दों में अपनी मोहब्बत के मर्म को दर्शाया है, वह काबिले तारीफ है। मैं आशा करता हॅूं कि आप यूं ही रुचि पूर्ण शब्दों से अपनी मोहब्बत के अन्य कई अनछुए पहलुओं से हमें रुबरू कराएंगे। धन्यवाद
Bahut khoobsurat .......aur jivan ki har uplabdhi ke liye dheron shubhkamnayen....
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