खुदा इस खामोशी की वजह क्या है
>> 16 April 2009
कहते हैं दुआओं में बहुत असर होता है ....और हर सच्ची दुआ और सच्चे दिल से माँगने वाले को तो जन्नत भी नसीब होती है ...ऐसा कहा करते थे ....मैं बचपन में सुना करता था ...ठीक उन प्यारी प्यारी राजकुमारियों की कहानी की तरह .....एक ख्वाब की तरह ...इस दुआ वाली बात को मैंने बिल्कुल सच मान लिया .....ठीक वैसे ही जैसे कि मैं माँ के प्यार को मानता था ....सच ...हाँ बिल्कुल सच मानता था
पर मैं बड़ा होने लगा ...मैंने देखा ....अध नंगे बच्चे, भूख से बिलखते बच्चे ....बेसहारा बच्चे ....भीख मांगते बच्चे ......कूड़े के ढेर में अपना जीवन बिताने वाले बच्चे ...और शायद कूड़े के ढेर पर ही एक दिन मर जाने वाले बच्चे .....तब कभी मैंने पहली बार सच्चे दिल से दुआ माँगी थी.... क्योंकि माँ कहा करती थी ...कि सच्चे दिल से माँगी दुआ पूरी होती है ......माँगी मैंने उनके लिए जिंदगी .....कूड़े के ढेर से अलग जिंदगी ....भर पेट खाने वाली जिंदगी .....शिक्षित जिंदगी ....किसी के प्यार तले जीवन बसर करने की जिंदगी .....पर पता नहीं क्यों ....मुझे हर रोज़ वो उसी कूड़े के ढेर पर ही जमा मिलते .....शायद खुदा को फुर्सत नहीं मिली होगी ....मेरी दुआ पर अमल करने की ....मैंने सोचा शायद मैं क्यू में हूँ .....पता नहीं क्यों विश्वाश था कि सच्ची दुआ तो पूरी होती है .....पर ना जाने क्यों... दो बरस बीत जाने पर भी कुछ न हुआ .....वो बात आज भी खटकती है दिल में ....कि शायद कहीं कोई कमी रह गयी होगी ....जो उस नन्ही सी दुआ का कोई असर ना हुआ ....
फिर कुछ घंटियों की आवाज़ सुनाई देती थी मेरे कानों में ...जब माँ मुझे हर सोमवार मंदिर ले जाया करती थी .....सुनाया करती थी मुझे साथ ले कुछ शंखनाद ...और हर मुंह से निकली तमाम दुआएं ....मैं देखा करता था .....एक लम्बी लाइन .....और अचानक से कार से उतरते वो चमकीले कपडों के अन्दर के सुन्दर चेहरे .....
बाद सबसे आ वो दुआ सबसे पहली माँगा करते थे ....बंद मुट्ठी में पुजारी की ...ना जाने क्या क्या रख जाया करते थे .....चन्द सिक्के जानवरों से लड़ते नंगे भूखे लोगों में उछाल जाया करते थे .....भूख से लड़ते वो नंगे कैसे आपस में भिडा करते थे ....कुछ असहाय और बेसहारा हर बार मुझे वहाँ मिला करते थे ....उनकी वो सूरत मेरी आँखों में समां गयी थी .....
एक रोज़ फिर से मुझमें चाह जागी .....दुआ माँगने की ....कि शायद अर्जियां यहाँ देने से काम बनता हो .....उस रोज़ झुक कर माँ के साथ मैंने भी सर झुकाया था .....पर कई सालों तक भी उसका जवाब मुझे नहीं मिला पाया था ..... जो झुका करते थे सर उनके क़दमों में ....उन गरीबों के लाचारों के ... बेसहारों के ....कोई भी फर्क उनमें नहीं आ पाया था .....
फिर एक रोज़ उस माँ को रोते देखा था मैंने .....हर रोज़ जो सर झुकाया करती थी उसकी चौखट पर .....रखती थी भूखा खुद को ...शायद व्रत कहते थे उसे .....अपनी दुआओं में असर लाने की खातिर... सब कुछ किया था उसने .....उस रोज़ उसके आँसुओं ने एक सवाल जहन में पैदा किया ....कि जो दुआ करते हुए अपनी उम्र गुजार दे ...क्या फिर भी उसकी अर्जियां यूँ ही ठुकरा दी जाती हैं ....उस रोज़ फिर उस माँ की खातिर मैंने एक दुआ माँगी थी .....कि मेरी इस माँ की दुआ कबूल क्यों नहीं कर लेता .....
उस रोज़ अपना सर झुकाया था मैंने ...कहते हैं जिसे खुदा उसको मनाया था मैंने .... कई बरस से जो सवाल रख छोडे थे ...उन्हें दोहराया था मैंने .....उस रोज़ भी खामोश था वो मंदिर ...वो मस्जिद और वो प्रार्थना घर .....
कहीं से कोई जवाब ना पा सका मैं ....उस रोज़ एक माँ के आँसुओं में बहता वो दर्द .....वो कभी न भुला सकने वाला मंजर ....और उस पर भी उस खुदा की खामोशी ...मुझे रास ना आई ....उस रोज़ वो आखिरी दुआ थी मेरी
कभी मिलेगा मुझे खुदा
तो फुर्सत से पूछूँगा उससे
आखिर इस खामोशी की वजह क्या है
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17 comments:
खुदा को फुर्सत है कहाँ केवल कर्म उपाय।
दुआ अगर निर्धन करे खुदा होत असहाय।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
दुअायें बहुत हुयीं, अब कर्मभूमि में उतरना होगा। खुदा भी यही चाहता है - जिस दिन हम उतर पड़ेंगे, उसी दिन समाँ बदलेगा।
कोई खुदा, कोई भगवान, कोई गौड़ नहीं ....सब दुनिया के बने बनाये पैतरे हैं .....इसी लिए खामोशी है और रहेगी ....
क्या बात है खुदा मौन रहकर अपना कार्य करता है
लगता है खुदा से ज्यादा ही नाराजगी है। कभी फिर से मिले तो इस पर जरुर बात करेगे दोस्त।
कभी मिलेगा मुझे खुदा
तो फुर्सत से पूछूँगा उससे
आखिर इस खामोशी की वजह क्या है
बहुत ही मार्मिक लिखा है...........
आँखे नाम हो गयीं ...............अंत में सब ऊपर वाले को ही याद करते हैं
कभी मिलेगा मुझे खुदा
तो फुर्सत से पूछूँगा उससे
आखिर इस खामोशी की वजह क्या है
waah behtarin,kuch dua wo bas sunta hai,amal nahi karta,aur wo saari dua achhe kaam ke liye hoti hai,hai na.
मागने से कुछ मिलता नहीं ,
दुःख में कोई हाल पूछता नहीं !
कर्म करके इक्छित फल मिलता नहीं ,
ये वो वो सवाल है जिनका हल मिलता नहीं !!
बहुत खूब भाई .हम तो मुरीद होते जा रहे तुम्हारी सोच और लेखनी के .
जवाब की तलाश है दोस्त 1
बहुत सुन्दर भाव है।एक ऐसा प्रश्न उठाया है जिस का जवाब शायद ही किसी को मिला हो।
किसी ने कहा है -
ए खुदा, मेरी बख्श दे खता
फूल पूजा के तुझ पै चढ़ा न सका
हाथ बन्दों की खिदमत में मशगूल थे
हाथ बंदगी के लिए उठा न सका
खुदा से इतनी तल्खी भी क्या अनिल जी...क्या-क्या देखेगा वो भी
अनिल भाई,
आपने प्रशन तो बड़ा जटिल खडा कर दिया...
इसका उत्तर तो आज तक किसी ने नहीं दिया..
वोह भी क्या क्या करेगा, किस किस की सुनेगा,
हम पूछते हैं, आखिर हम सब ने क्या किया??
आशा करता हूँ आप इसका सही अर्थ समझेंगे...
अति सुन्दर.. लेखन है.
~जयंत
जैसे किसी गीतकार ने बहुत सुन्दर तरीके से कहा है...
"मानो तो गंगा माँ हूँ,
ना मानो तो बहता पानी..."
ऐसे ही उसे माने तो वोह है, ना मानो तो....
फिर भी वोह काम करता ही रहता है.
मैंने अपने जीवन में कुछ पल उसका आभास पाया है, तो मैं उसे मानता हूँ.
यह भी मानता हूँ की "कर्म ही इश्वर की पूजा है.., कर्म किये बिना फल नहीं मिलता..."
पर आपके विचारों का भी आदर करता हूँ.
शेष शुभ,
जयंत
Totally agree with you here!! and have also stop asking from god.
Just believe in doing and you can do a lot.
तकलीफ तो आपकी सही है जनाब. पर क्या करें हम......
गो हाथों में जुम्बिश नहीं थी सहारा देने को
इक दुआ मांग कर तसल्ली कर ली मैंने. -कौतुक
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