पहला प्यार, बोर्ड एग्जाम और पहले प्रेम पत्र का पकड़ा जाना
>> 06 April 2009
इसको पढने से पहले कृपया पिछली पोस्ट मेरा पहला प्यार और बोर्ड एग्जाम पढ़ ले तभी इसका आनंद उठा पायेंगे
इधर हमारी आशिकी के दिन बढ़ते जा रहे थे और उधर बोर्ड परीक्षाएं नज़दीक आती जा रही थी ...और हम इस बात से बिल्कुल बेखबर थे कि परीक्षाओं का क्या होगा ? .....कहते हैं ना इश्क का भूत सारी दुनियां भुला देता है ...लेकिन कोई था जो हमारे इश्क पर नज़र रख रहा था .नम्रता की सहेली हमारी ही कालोनी में रहती थी जिसका नाम सुमन था ....एक दिन सुमन ने अपने घर बुलाया ...उसकी बड़ी बहन वहां थी और उसकी मम्मी कहीं गयी हुई थी ....सुमन की बड़ी बहन बोली ...क्या बात है आजकल बहुत पढाई कर रहे हो ....दिन भर छत पर रहते हो ...धूप नहीं लगती ....मैं उनके इस सवाल का आशय समझ गया लेकिन फिर भी .....हाँ पढाई तो करनी ही पढेगी ...और पूरी छत पर धूप थोड़े रहती है ...मैं छाया में पढता हूँ .....अच्छा चलो अच्छी बात है अगर ऐसा है तो ...[उनका साफ़ साफ़ मतलब था कि बच्चू ठीक से पढाई करो घर बैठकर और ये सब इश्कबाजी छोडो ....वरना बोर्ड परीक्षाओं में लेने के देने पड़ जायेगे ...पर मैं कहाँ उनकी बात मानने वाला था ...जानबूझकर बहाने मार रहा था मैं और वो सीधे कह भी नहीं सकती थी कि उन्हें पता है ...कि मैं छत पर खडा खडा नम्रता को लाइन मारता हूँ ]
और फिर बहुत जल्द समय बीत गया और १० वी कक्षा की परीक्षा प्रारम्भ हो चुकी थी और मैं दिसम्बर तक की अपनी तैयारी के आधार पर अपनी परीक्षा दे रहा था .....अब मुझे एहसास हो रहा था कि प्यार करना कितना महँगा पड़ रहा था मुझे .....और वो भी मेरा पहला प्यार .....जिसमे मैंने लड़की अर्थात नम्रता से सिर्फ़ एक बार बात की थी .....
बात भी क्या .... काफी अँधेरा हो गया है ....क्या मैं आपको आपके घर तक छोड़ दूँ ...नही मैं चली जाऊँगी....ये बात हुई थी अब तक सिर्फ़ हमारे बीच .....अपनी परीक्षा दे तो मैं रहा था लेकिन प्यार का बुखार मेरा कम नही हुआ था ...परीक्षा के दौरान भी मैं छत पर जाता और मेरी आँखें नम्रता को उसके आँगन में तलाश करती...
प्रेमिका की एक झलक पाने के लिए प्रेमी क्या नही करता ....ये तो बस एक प्रेमी ही समझता है और जानता है ....
खासकर किशोरावस्था में हुआ प्यार कुछ ख़ास होता है ....
प्यार के बुखार का असर मेरी परीक्षा पर तो कही न कही पड़ना ही था .... आलम यह था कि गणित की परीक्षा में मैं अक्सर सूत्र भूल रहा था ....मैंने पिछले २-३ महीने से कुछ दोहराया जो नही था ....
100 में से 100 अंक लाने वाले छात्र के मांथे से पसीना निकल रहा था ....और सोच रहा था कि अब क्या करुँ....
खैर जैसे तैसे 50 में से 35 अंको का प्रश्न पत्र किसी तरह मैंने हल किया ...
उस दिन घर आकर अपनी हालत पर मलाल हुआ कि ये क्या हुआ ... दूसरे गणित के प्रश्न पत्र के लिए अभी 4 दिन शेष थे .....उन 4 दिनों में सभी सूत्र दोहराए कि किसी तरह दूसरा प्रश्न पत्र तो सही हो ....हुआ भी वही दूसरे प्रश्न पत्र मैं 50 में से 50 अंको का हल करके आया ......दिल ही दिल में खुशी मिल रही थी ....उस प्रश्न पत्र के साथ ही परीक्षाएं समाप्त हो गयीं ....अब मेरे पास बस एक ही काम था कि नम्रता को देखना और बस नम्रता को देखना .....दिन भर छत पर चढ़ा रहता था ....
और आखिरकार वो समय आ ही गया जब हमने अपना पहला प्रेमपत्र लिख डाला ....हुआ यूँ कि लड़की को ताकते हुए हमे काफ़ी समय बीत चुका था ....हमारे ऊपर रहने वाले भइया ने हमे मुफ्त का सुझाव दे डाला कि कब तक यूँ ही देखता रहेगा कुछ लव लैटर लिख के दे ....आख़िर उधर से भी तो कुछ पता चले ....हमने सोचा कि ये तो प्यार के बहुत मंझे हुए खिलाड़ी हैं और ज्ञानी आदमी तो चलो इनकी बात मान ली जाए ....हमने हिम्मत इकट्ठी की और एक साफ़ और स्वच्छ कागज़ को अपने अरमानो के रंग से रंगीन कर दिया ....हमने अपने प्रेम को स्पष्ट शब्दों का सहारा लेकर लिख डाला और इजहारे मोहब्बत प्रेम पत्र के माध्यम से कर डाला ....अब हमने तो अपना काम कर डाला किंतु अब तनिक भय और चिंता का प्रश्न ये था कि इस प्रेम पत्र को लड़की तक पहुँचायेगा कौन ? इतने में हमारे भाई साहब ने प्रेम पत्र के नीचे हमारे हस्ताक्षर भी कर दिए ....तुम्हारा प्रेमी ...अच्छा हुआ कि हमारा नाम अंकित नही किया उसके नीचे .......
हमारे उन भाई साहब के छोटे भाई को डाकिये का काम सोंपा गया ....और उन्होंने अपने बाल्यावस्था की सबसे बड़ी गलती कर दी ....वो प्रेमपत्र नम्रता की बड़ी बहन को देकर आ गए और सीना चोडा करने लगे ...पर हमारी मति तो मारी ही गयी थी ... कि कभी भी लड़की को इस तरह से अपने प्यार का इजहार नही करना चाहिए .....न जाने क्यूँ हमे एहसास हो गया था कि कुछ अशुभ होने वाला है ....हमने अपनी ही कालोनी में रहने वाली सुमन की बड़ी बहन को सब कुछ समझाया और अपने किए हुए का झूठा पछतावा भी कर डाला और कहा कि किसी तरह इस बार हमे बचा लिया जाए ...वो बोली मैंने तुम्हे उस दिन समझाया था पर तुम तो माने नहीं थे ...मैं तो छाया में पढता हूँ ..वगैरह वगैरह ....हम मुंह लटका कर बोले कि गलती हो गयी आगे से ऐसा नहीं करेंगे ...बस इस बार बचा लिया जाय ...उन्होंने कहा ठीक है मैं देख लूंगी...अगर कोई घर पर आये तो मेरे पास ले आना
नम्रता की बड़ी बहन को हमारा प्रेम पत्र मिल गया तो उन्होंने पहले तो नम्रता की खबर ली कि यही सब करती हो तुम्हारी मम्मी से शिकायत करुँगी ..बहुत बिगड़ गयी हो ..वगैरह वगैरह ...नम्रता बोली मुझे कुछ नहीं पता ...मैं कुछ नहीं जानती इसके बारे में ....अच्छा अगर ऐसी बात है तो जाओ उसके घर शिकायत करके आओ ...सुमन को साथ ले जाना फिर वो हमारे यहाँ शिकायत करने के लिए आयी..आई क्या जबरन भेजी गयी ...वो तो भला हो हमारे पूर्ववत एहसास का कि हमने पहले ही सब कुछ संभाल लिया था ....
हमारे घर में उस समय सभी लोग अन्दर आँगन में बैठे हुए थे ...सब आपस में बातें कर रहे थे ....और ना जाने क्यों हमारे पिताजी का मूड बहुत ख़राब था उस दिन ....ऐसे में हमारी हालत ख़राब थी और हमारा ध्यान पूरा का पूरा दरवाज़े पर ही लगा हुआ था... वरना हमारी उस दिन तो शामत ही आ जाती .....न जाने क्या होता हमारा और हमारे दबे कुचले पहले प्यार का ....
दरवाज़ा खटका और हम दरवाज़ा खोलने गए जो ज्यादातर हम नहीं करते थे ...देखा सामने नम्रता और सुमन खड़ी हैं ...लैटर आगे बाधा कर दिखाते हुए ...ये सब क्या है ...सुमन बोली ..मैं सीधे बोला कि तुम्हारी बड़ी बहन बुला रही हैं ....पर ये सब है क्या ....और नम्रता का मुंह देखने लायक था उस समय ....मैं उन्हें सुमन की बड़ी बहन के घर ले गया ...वहां पहुँच कर सुमन ने खूब खरी खोटी सुनाई और सुमन की बहन ने भी २-४ बातें मुझे बोली ....और नम्रता रोये जा रही थी ...कि मेरी बहन ने अगर घर में कह दिया तो क्या होगा ....खामखाँ ये सब किया ...और भी ढेर सारी बातें ...मैं बस सुनता गया ..सुनता गया ...फिर सुमन की बहन ने मुझसे अलग ले जाकर कहा कि सॉरी बोल दो ....माफ़ी मांग लो ...मैं मरता क्या ना करता ....सॉरी आगे से ऐसा कुछ नहीं करूँगा ....फिर उसने एक बात कही थी जो मुझे आज भी याद है ..."सॉरी बोलने से क्या दिल के अन्दर जो बात पहुँच जाती है वो खत्म हो जातीं हैं क्या "....पर मैं निरा गूढ़ दिमाग ...उस बात का मतलब नहीं समझा उस वक़्त
हमारा पहला और आखिरी प्रेम पत्र इस तरह पकड़ा जाएगा हमने कभी सोचा भी नही था .... खैर लड़की तक संदेशा तो पहुँच ही गया कि हम उसे चाहते हैं ....उसके बाद हमने कभी अपना प्यार जताने कि कोशिश नही की....करते भी तो कैसे करते ...डर जो लगता था कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए ...खामखाँ हम लपेटे में आ जाए ....हाँ हम उसी तरह उसे देखते जरूर रहे थे ...उन्ही प्यार भरी नज़रों से ...
जून में हमारा रिजल्ट आया ....कुछ ठीक ठीक अंदाजा ही नहीं था कि क्या होगा ...हाँ इतना पक्का यकीन था कि पास जरूर हो जायेंगे ...पिताजी ने रिजल्ट देखा सबसे पहले ...तब अख़बारों में रिजल्ट आता था ....और वो ख़ुशी के मारे फूले नहीं समां रहे थे ...मैं प्रथम (1st)आया था ...मेरी जान में जान आई कि चलो बाल बाल बचे कहीं 2nd आते तो ना जाने क्या होता .....पूरी खबर ली जाती अच्छी तरह ...
उसके कुछ दिनों बाद जब अंकपत्र देखा तो कुल 73.16% नंबर आये थे हमारे ...सभी के सभी टीचर कह रहे थे तुम्हे क्या हुआ ...इतने ख़राब नंबर कैसे आये ...हमने तो सोचा था कि 85% नंबर तो तुम लाओगे ही ....तुमने तो सब कुछ उल्टा पुल्टा कर दिया ...तुमसे कितनी आशाएं थी ....स्कूल में तुम्हारा परफॉर्मेंस कितना अच्छा था ...वगैरह वगैरह...और हम बस सुन रहे थे ...और अपना अंकपत्र लेकर चले आये
अगले २ साल तक उसी तरह वो लड़की हमे देखती रही और हम उसे ....वही मुस्कुराना ...हमारे घर की ओर देखना ....हमारे घर की तरफ़ से निकलते हुए हमारे घर की तरफ़ निहारना ......ये सब सामान्य प्रक्रिया रही ...शायद वो मन ही मन चाहती हो की हम दोबारा उसे अपने प्यार का इजहार करे ...किंतु हमने ऐसा नही किया दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीटा है जैसी हालत हो गयी थी हमारी ....आख़िर मेरा पहला प्रेम पत्र पकड़ा जो गया था ..... वो दिन है और आज का दिन हमने कभी किसी को प्रेम पत्र नही लिखा ...शायद वो मेरा पहला और आखिरी प्रेम पत्र था ....
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15 comments:
मार्मिक ..कितनी ही प्रेम कहानिया ऐसे ही ख़त्म हो जाती होंगी
ओह्ह!! पढ़ते चले गये.
इश्क ने निकम्मा कर दिया गालिब...वरना
अनिल भाई हमारे रशिक लेखक और कवि है । जो लिखते हैं भई मजेदार और रूचिकर लगता है ।
ग्रेट.... आपने पुराने वाले दिन याद दिला दिए.. जब हम दोस्त लड़कियों में से मेरी वाली और उसकी वाली की एक एक पल की हर खबर रखा करते थे. और प्यार की इन्तहा पर पहुँच गए थे. ये बात दीगर है की हममें से कोई भी इज़हार नहीं कर पाया था.....
शुक्र है अनिल सी प्लस पढ़ते पढ़ते , बीते दिनों की मधुर स्मृतियों को अभी भी दिल की भाषा में लिख रहे... अब तक तो कोडिंग हो जाया करती है
अरे अनिल भाई हमसे कुछ पूछ लिया होता। लव लेटर कभी भी साफ शब्दों में नही लिखा जाता है। वो हमेशा कोड भाषा में लिखा जाता है। खैर शुरु शुरु में गलती होती ही है। आगे से मत करना। हमेशा कोड भाषा का प्रयोग करना।
वैसे अनुराग जी सही कह रहे है।
Ha Ha Ha ....rochak sansmaran....
Maja aaya padhkar....
दरअसल पहला प्यार इसलिये स्पेशल होता है क्योंकि सबसे ज्यादा चोट-खरोंच-सिकुड़न-मरोड़न उस बेचारे को ही प्राप्त होती है। :D
बहुत सुंदर टेंप्लेट चुना है! बिल्कुल आपकी चमकती मुस्कुराहट की तरह! :) लेकिन आपकी टेंप्लेट में दो "undefined" शब्द दिखायी दे रहे हैं ऊपर। उन्हें ठीक करने के बाद यह टिप्पणी हटा दें! धन्यवाद!
अच्छा ये वही नम्रता है न जिसे तूने दिलो जान से चाह था ...और आगरा से अंकल जी का ट्रान्सफर हो जाने पर तेरी लव स्टोरी अधूरी रह गयी थी ....है न ?
चलो कोई बात नही पहला पत्र पकड़ाया तो लेकिन इसे आखिरी मत कहो, क्या पता कभी फ़िर लिख्नना पड़ जाये।इस बार मगर पकड़ाना मत्।
भई, पहली बार इस ब्लॉग का रुख किया और आते ही झटका लगा कि पहले पिछली पोस्ट पढ़ें फिर इसका लुत्फ लें। लेकिन मैंने पहले ये पोस्ट पढ़ी और फिर पिछली, अंत जानने की उत्सुक्ता होती है। अच्छा लिखा है, पर एक भाग और बनाकर थोड़ा छोटा-छोटा पोस्ट करें तो और अच्छा लगेगा। दूसरी बात, टेम्पलेट बहुत ही अच्छी लगी और ब्लॉग भी अच्छे तरीके से सुज्जित है। खूब।
bas yahi kahenge,ki baat dil ko choo gayi....
vaakayi,shabdon ke jaal mein yun faanste hain aap,ki hum bas padhte hi rah gaye....!
अब भी देर नहीं हुई है. इक बार फिर से उसे पाने की कोशिश अच्छा रहेगा. वरना कहना पड़ेगा. अच्छा लिखते हैं
दिल में अब दर्द-इ-मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं......
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