वो तेरा ख्वाब था जिसे मैं देखा करता था
>> 29 April 2009
शहर के एक छोर पर बने हुए उस रेस्टोरेंट में बैठा वो खयाली बातें बुन रहा था ....यूँ ही अकेले घंटों बैठे रहना उसे भाता था .... कभी जब यूँ ही दिल करता है ....तो ये फुर्सत के लम्हात बहुत नेक और भले लगने लगते हैं ....पता नहीं आज ये बिन मौसम बरसात कैसे हो चली .....हल्की हल्की बूँदें गिर रही थीं ...कोई उससे बचना चाह रहा था ...तो कोई उन में भीगना .....तभी एक सुन्दर चेहरा ...हँसता खिलखिलाता रेस्टोरेंट में दस्तक देता है .....उसके साथ उसकी सहेली थी ....वो भी कम प्यारी ना थी ....
कॉफी जो अभी अभी उसकी टेबल पर रखी गयी थी ...उसको उँगलियों में फँसा ...उसका एक कतरा गले के नीचे उतारता है .....उसकी नज़र उस खूबसूरत चेहरे पर जाती है ......एक नज़र भर देखने के बाद ...वो नज़र हटा लेता है ....वो ठीक उसके सामने वाली टेबल पर बैठती है ..... ऐसे जैसे की दोनों की निगाहें न चाहते हुए भी टकरा जायें .....
वो एक खूबसूरत सूट पहने थी ..... जिसे देख मानो साफ़ साफ़ झलक रहा था ...कि कोई भी चीज़ बनावटी नहीं .... वो बार बार अपने हाथ में पहने हुए कड़े को घुमाये जा रही थी ...और हंसती खिलखिलाती बातें किये जा रही थी ..... उसकी आँखें भी उसकी बातों के साथ गतिमान होती थी ....ऐसा लगता मानों कि वो भी बातें किये जा रही हों ....बिल्कुल झील की तरह .... उसकी सहली ने भी शायद कॉफी का आर्डर दिया होगा ...तभी वहां दो कॉफी रखी जाती हैं ....एक पल तो लगा कहीं ये रेस्टोरेंट कॉफी के लिए तो नहीं जाना जाता ....
जब वो कॉफी उठा अपने होठों से लगा रही थी ...तभी उसकी निगाहें उस ख्यालों को बुनने वाले से टकराती हैं ...जो ठीक उसकी नज़रों के सामने था ....वो एक पल यूँ ही उसकी आँखों में देखती रहती है ....फिर न जाने क्या सूझती है ....कि दूजे ही पल ...अपनी नज़रों को घुमा कहीं और देखने लगती है .....
वो यूँ ही उस खूबसूरत झील सी आँखों वाली को देखता रहता है ...उसने यूँ इस तरह कभी किसी लड़की की आँखों को लगातार नहीं देखा था ...शायद ये एक इत्तेफाक ही था ...जो बारिश की बूंदों के दरमियान .... झील सी आँखें रेस्टोरेंट के अन्दर हों ....फिर वो खूबसूरत आँखें उसकी आँखों से टकराती हैं .....और दूसरी और देखने लगती हैं ....
फिर ना जाने उसे क्या सूझती है ...वो अपनी जगह अपनी सहेली को बिठा देती है .....उसकी सहेली जो एक्स्ट्रा स्मार्ट थी ....वो एक नज़र देखती है सामने वाली टेबल पर बैठे इंसान को ...और बक बक सी करने लगती है ....शायद कह रही हो कि आजकल के लड़के ...बस ऐसे ही हैं ....लड़कियों को घूरने के आलावा कोई काम नहीं .....चन्द मिनटों में कॉफी ख़त्म हो जाती है ....वो दोनों बाहर जाने लगती हैं .....पर जल्दबाजी में उस खूबसूरत झील सी आँखों वाली का बटुआ गिर जाता है .....जिसे वो जल्दबाजी में ध्यान नहीं देती ....
वो अपनी सीट से उठता है और बटुए को उठा उन्हें देने के लिए बाहर निकलता है ....वो दोनों छाते के अन्दर थीं ...हल्की हल्की बूँदें अब भी पड़ रही थीं ....वो जल्द से जल्द उन्हें बटुआ देना चाह रहा था .....बारिश उसे भिगोये जा रही थी ....वो अपनी रफ्तार तेज करता है .....और उनके पास पहुँच कहता है ...सुनिए ....तभी वो पीछे मुडती हैं ....एक्स्ट्रा स्मार्ट दोस्त बोलती है ...तुम लड़के लोगों के पास और कोई काम नहीं है ....बस लड़कियों का पीछा करना ...वो बात आधी काटता है ...पर मैं ... हाँ तुम कौन से अलग हो ...मुझे पता है वहां रेस्टोरेंट में कैसे टुकुर टुकुर देख रहे थे .....सब पता है .....वो बोला पर मैं आपका ये बटुआ देने आया हूँ ...जो आपका उधर रास्ते में गिर गया था .....ये सुन वो शांत हो गयी ....शायद अपनी बातों पर शर्मा रही थी ....वो खूबसूरत झील सी आँखों वाली थोडा मुस्कुरा जाती है ....बटुआ हाथ में लेते हुए ...थैंक यू ....वो मुस्कुरा जाता है ... वो कुछ और बोलना चाहती है ....इससे पहले वो मुस्कुराते हुए मुड़ता है ...और वापस रफ्ता रफ्ता चल देता है ....उन्हीं अपने ख्यालों में ....वो वहीँ उसी तरह खड़ी रहती हैं ....शायद कुछ कहना चाहती थीं पर ...वक़्त न मिला ....या शायद उसने दिया नहीं .....वो यूँ ही चला जाता है ...बिना कुछ बोले ...बिना कुछ सुने
अगले रोज़ वो एक लाइब्रेरी जाती है ...उसी शहर में बनी शांत ..और दिलचस्प जगह ...जहाँ तमाम विषयों ...विचारों की किताबें थीं ....जहाँ शोर नहीं था ....जहाँ उसकी खुद की पसंद थी ....वो लाइन से लगी लाइब्रेरी की किताबों के दरमियान ...अपनी पसंदीदा किताब खोजने लगती है ....उन्हीं किताबों की लाइन के दरमियाँ ...वो शख्स खडा दिखाई देता है ...वो भी अपनी पसंदीदा किताब खोज रहा होगा शायद ...
वो पलटता है ...तभी दोनों की निगाहें टकराती हैं ...एक पल यूँ ही वो उसकी आँखों में देखती रहती है ....फिर चुप्पी तोड़ बोलती है ...वो कल ...वो कल के लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ ....हम लोगों ने बिना सोचे समझे आपको ना जाने क्या क्या बोल दिया ....वो फिर मुस्कुरा जाता है ....कोई नहीं ....कभी कभी हो जाता है ऐसा .... वो भी मुस्कुरा जाती है ....तो आप यहाँ रोज़ आते हैं ....वो हाँ में आँखें झुकाता है ....आपका नाम क्या है ....जी अभिमन्यु .....मेरा नाम नैना है कहकर वो हाथ आगे बढाती है .....अभिमन्यु मुस्कुराकर उससे हाथ मिलाता है ....तभी वहां सीट से चुप रहने का संकेत आता है ..... वो किताब लेकर बाहर चल देता है ..... वो बाहर जाकर अभिमन्यु से पूंछती है ... आप कल आयेंगे .....वो हाँ मैं सर हिलाता है ...और मुस्कुराता हुआ चल देता है
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14 comments:
haaaay.. ye aashiqui ki bhini bhini khushboo..
सुन्दर कहानी थी ..आप प्रेम कहानियां अच्छी लिख लेते हैं.
प्यार की टकरार का सुन्दर चित्रण किया है आपने..लिखते रहिये
उफ़ ये मुलाकातें .....कहीं इश्क में तब्दील न हो जाएँ ...
बहुत अच्छा लिखते हो भाई
मोहब्बत से भरा ब्लॉग ...मोहब्बत से भरी पोस्ट ...
इश्क की भीनी भीनी खुशबू आ रही है
good story...a very simple and straight portrayal of a hopeful begining of a romance..
अच्छी लगी यह प्रेम कहानी ...अच्छा लिखते हैं आप
boht achha laga pad ke...woh klayee me tera kangan gumana yaad hai...humko ab tak ashqi ka wo zmaana yaad hai...
boht achha laga pad ke...woh klayee me tera kangan gumana yaad hai...humko ab tak ashqi ka wo zmaana yaad hai...
pehli baar dil bhaari hue bina kahaani khatam hui.....waakai achchi kahaani..
बेहतरीन प्रवाहमय कथा.
सुन्दर प्रवाह लिए कहानी !!!!
जैसे आँखों के आगे सब गुज़र रहा हो ....
जीवंत !!!
ek khubsurat mulakat,ishq ki pehli sidhi,behad sunder ,andaze bayan lajawab
आप प्रेम कहानियां अच्छी लिख लेते हैं
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