तुम्हारा एक गुमनाम ख़त
>> 15 April 2009
कभी जो उड़ती थी हवाओं के साथ तेरी जुल्फें
तो हवा भी महक जाया करती थी
अब तो साँस लेना भी गुनाह सा लगता है
याद है ना तुम्हे ...जब उस शाम रूमानी मौसम में ....चन्द गिरती बूंदों तले .... और उस पर वो ठंडी ठंडी सर्द हवा .....कैसे तुम्हारी जुल्फें लहरा रही थीं .....सच बहुत खूबसूरत लग रही थीं तुम .... वो बैंच याद है न तुम्हें ....वही उस पार्क के उस मोड़ पर ....जहाँ अक्सर तुम मुझे ले जाकर आइसक्रीम खाने की जिद किया करती थी .....हाँ शायद याद ही होगा ....कितना हँसती थी तुम .....उफ़ तुम्हारी हँसी आज भी मेरे जहन में बसी है ....उस पर से जब तुम जिद किया करती थी .....कि एक और खानी है ...बिलकुल बच्चों की माफिक .....उस पल कितनी मासूम बन जाया करती थीं तुम ....कि जैसे कुछ जानती ही न हो ....पगली कहीं की ....बिलकुल बच्ची बन जाती थी तुम .....
कल शाम उस मोड़ से गुजरा था मैं ....ना जाने क्यों मेरे कदम लडखडा से गए थे ....ना चाहते हुए भी एक पल को थम सा गया था मैं ..... कहीं तुम्हारी याद ना आ जाये ...ये सोच जल्दी से निकल जाना चाहता था...पर सच खुद को रोक ना सका ....ना जाने क्यों कदम रुक गए .....मैं पहली बार तुम्हारे बाद उस पर अकेला बैठा था ....ना जाने क्यों पलकें गीली हो गयी थीं ......
अचानक से ही उस रोज़ पर नज़र गयी मेरी ...जिस रोज़ तुम मुझसे " खुट्टा थी " ....हाँ जब तुम मुझसे बात ना करने की एक्टिंग किया करती थी ...तब तुम यही कहा करती थी ....जाओ मैं खुट्टा हूँ ....कट्टी ..कट्टी ....और मैं मुस्कुरा जाया करता था .....और उस दिन जब दूर दो बच्चे अपनी अपनी बोरी लिए हुए कुछ बीन रहे थे ...कूड़े के ढेर में ...... और दूर अपनी आँखों से आइसक्रीम की तरफ देख रहे थे ....उनकी नज़रें जो आइसक्रीम की चाह रखती थीं ...पर शायद मायूस थी ....तब कैसे तुमने उन्हें पास बुलाया था ....कौन सी आइसक्रीम खाओगे ...तुमने उनसे पूँछा था ...और कैसे वो ना नुकुर सा कर रहे थे .....पर तुमने जब उन्हें आइसक्रीम दिलवाई थी ....और मेरी जेब से पर्स निकाल आइसक्रीम वाले को पैसे दिए थे .....कैसे वो प्यार से निहारते हुए गए थे तुमको .....उस पल तुम उन्हें सबसे प्यारी लगी होगी ....और मुझे भी .....और मैं ने तुम्हारे गले में हाथ डाल कर कहा था .... कितनी क्यूट हो तुम ......
पर आज ये बारिश कुछ अच्छी नहीं लग रही .....वही बूँदें ....वही मौसम है ...पर फिर भी दिल वहीँ खोया सा है ....तुम्हारे नर्म हाथों की गर्मी ...जो आज भी मेरे जेब में रखी हुई है ...सोचता हूँ एक ये गर्मी ही तो है जो आज तक जिंदा है ....बिल्कुल तुम्हारी यादों की तरह ....
अब देखो छाता साथ ना लेकर चलने की बीमारी मुझे आज भी है ....तुम्हें बारिश में भीगने में मज़ा जो आता था ....ना जाने क्यों आज ...जी भर कर भीगने को मन करता है ....मन करता है ये बारिश ना थमे ....या फिर बहा ले जाए मुझे .....अरे नहीं नहीं मैं रो नहीं रहा हूँ ...ये तो बारिश ही है ....हाँ बारिश ही तो है ....तुम भी ना कैसे कैसे वादे ले गयी .....
चन्द रोज़ पहले एक ख़त मेरी किताबों के दरमियाँ मिला .... तुम भी ना ...हमेशा ऐसा ही करती थी ....ख़त लिख कर यहाँ - वहाँ रख छोड़ती थीं .....अब देखो चन्द रोज़ पहले मिला जाकर .....और ये क्या तुम ना फरमाइश बहुत करती हो ...ख़त में भी फरमाइश .....चन्द पल ख़ुशी के मेरी बाहों में ...एक मुट्ठी मेरी मुस्कराहट .....मेरे हाथों की गर्मी .....और वो नज्में जो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी खातिर मैंने लिखी .......हाँ पता चला मुझे तुम्हारी ये फरमाइश थी .....पगली सब कुछ तुम्हारा ही तो था .....
तुम भी ना जब से खुट्टा करके गयी हो ...तब से वापस ही नहीं आयीं .... अब चलो बहुत कट्टी कट्टी खेल लिया ...और मैं तो हमेशा की तरह कब से हार मान चुका हूँ ..... हाँ जानता हूँ एक मुट्ठी मुस्कराहट की फरमाइश रोज़ पूरी करनी है मुझे .....पर फिर भी न जाने क्यूँ ये पलकें बार बार गीली हो जा रही हैं ...
अब देखो ये आइसक्रीम भी ....बह ही गयी .....ठीक मेरे आँसुओं की तरह .....
32 comments:
मैं तो कायल हो गया तुम्हारी लेखनी के. शुद्ध २४ कैरेट सोने की तरह है तुम्हारा ये लेख.
खत में लिखा आपने प्यार भरा एहसास।
प्रेम समर्पण माँगता कहता है इतिहास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com:
प्रवाहपूर्ण लिख रहे हैं आप । धन्यवाद प्रविष्टि के लिए ।
ek mutthi muskurahat roj ,bahut nek aur khubsurat baat keh di.magar kitna mushkil hai na,roj muskurahat ko labon par jamaa karna,baarish ki wo boonde jo jhim jhim si girti thi,aaj chapak chapak sa aawaz karti hai,dard unhe bhi hai kahi,kutti karne ka.sunder triveni.
बहुत खूब अनिल भाई लगे रहो सही जा रहे हैं ।लाजवाब
भाई अनिल जी,
सादर वन्दे
ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रया प्राप्त हुई. बहुत-बहुत आभार. वहाँ से आपके ब्लाग को भी देखने का सौभाग्य मिला. तुरन्त एक शेर याद आया और पुरानी यादें ताज़ा हो गईं
मेरे रोने का जिसमें किस्सा है.
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है.
जैसे आप उस जगह से बच कर निकलना चाहते थे, वैसे मैं आपके ख़त से.....
आपकी उन बेहतरीन यादों और उनकी सलीके़दार प्रस्तुति के लिये बधाई.
मैं आगरा से हूँ और यहीं रहता हूँ. कभी आगरा आयें तो मिलकर खुशी होगी.
उम्मीद है बातचीत का सिलसिला आगे भी चलेगा-
आपका ही॑.....संजीव गौतम
bahut sundar likha hai.
bang bang bhai .excellent
बहुत ही सुन्दर अभि्व्यक्ति है
कुछ सोचेँ कुछ यादें
मानस पट पर छा जाती है
कोई आदि नहीं कोइ अंत नहीं
ना हाथ कभी आती हैंी
आपकी रचना पढ कर मुझे ये पंक्तियां याद आ गयी शुभकामनाये़
प्रेम और वियोग का सुंदर चित्रण, बेहद भावुक क्षणों में ही ऐसे बोल फूटा करते हैं।
वो भी एक दौर था .ये भी एक दौर है ..
अनिल भाई, आपके ब्लॉग का टेम्पलेट बडा ही सुन्दर है। और हॉं, पोस्ट पढकर दिल भारी हो गया।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
अनिल जी आपकी पोस्ट सीधे दिल को बहुत गहरे तक छूती हैं, ब्लॉग खोलते ही सबसे पहले आपकी पोस्ट पर नज़र जाती है, ये पोस्ट पढ़ के कुछ भूली बिसरी बातें याद आ गयीं आपकी अगली पोस्ट का इंतज़ार है |
याद है वो पल जब मेरे रुठने पर तुम कान पकड कर मनाया करती थी.......।
बहुत ही उम्दा.. ख्यालो को क्या शब्द दिए है.. बेमिसाल है इस तरह लेखन
अनिल जी
अन्दर तक उतर गयी आपकी यह कहानी...............चीर गयी कलेजे को.
बस इतना ही कहूँगा..........हहर बार की तरह दिल को छू गयी ये पोस्ट.
बहूत खूब
आप सभी के प्यार और स्नेह का शुक्रिया ....आप सभी यूँ ही मेरा हौसला बढाते रहेंगे ऐसी में आशा करता हूँ .....और हाँ संजीव गौतम जिमेरा बचपन आगरा में ही बीता है ...जब कभी आगरा आया तो आपसे मुलाक़ात होगी
वाह मानना पड़ेगा आपके जादू को.... आगरा के ताज और उसके प्यार के किस्सों को आपने नया अंदाज़ दे दिया है....... वेसे ये बन्दा खुद भी आगरा से है.......
http://yadavsurya.blogspot.com/
गहरे एहसास सिमटे है आपके इस खत में.. बहुत खूब
वाह, रूमानियत तो जैसे इस ब्लॉग को अपना मुकाम बना चुकी हो!
बहुत खूब...भाई..वाह...
नीरज
प्रेम और विरह का बहुत ही सजीव चित्रण किया है .
बहुत सुन्दर
मन किसी और ही दुनिया में खो गया पढ़ते हुए....बेहद खूबसूरत!
बहुत खूबसूरत एक सांस में पढ़ गया लेकिन कुछ कमी सी रह गई आखिर में...
लाजवाब्॥
बहुत सुन्दर लिखा है।
समय समय की बात है। एक और बात है यदि वह साथ होती तो वह उन पलों की याद दिला रही होती और आप य कहानी का नायक कुछ भी याद न होने का नाटक कर रहा होता। तभी तो केवल न मिल पाने वाले प्रेमियों के किस्से होते हैं मिल जाने वालों के नहीं।
घुघूती बासूती
very gr8 mai to fan ho gaya aap ka
realy its very nice
kya bakwaas hai ye sab. Pyar mein ye sab nahi hota. Kya ul jalool likha hai tumne. Kabhi pyar nahi kiya lagta tumne is liye ye sab khwabi baten likhte rehte ho.
its wonderful.
awesome!!!
mere pas shabd nhi hain.
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