मेरा पहला प्यार और बोर्ड एग्जाम
>> 03 April 2009
बात उन दिनों की है जब मैं 10 वी कक्षा में पढता था अर्थात सन् 1997 की सर्दियों की बात है ........ जनवरी का महीना था ...जिसका मतलब शायद बसंत आने वाला था ....मैं अपनी कॉलोनी की छत पर धूप में पढने के लिए जाता था .... हमारी पुलिस कॉलोनी के पड़ोस में ही अस्पताल कर्मचारियों की कॉलोनी थी ..... मैं अपनी छत पर काफी देर से पढाई में तल्लीन था ...कुछ थकान के बाद में अंगडाई लेने लगा और अपने हाथ को इधर उधर करने लगा ..... अचानक ही मेरी नज़र हॉस्पिटल कॉलोनी की छत पर गई .....एक लड़की मेरी नक़ल कर रही थी ...जिस तरह मैं अंगडाई ले रहा था और अपने हाथ इधर उधर कर रहा था ....वो भी उसी तरह कर रही थी.... उन दिनों मैं बहुत शर्मीले स्वाभाव का हुआ करता था ....मैं उस लड़की की ऐसी हरकत से शरमा गया .....हाय मैं शर्म से लाल हुआ ...जैसी हालत हो गयी थी हमारी
मैं चुपचाप अपनी किताब लेकर पढने लगा और उसकी ओर ध्यान नही दिया लेकिन चंचल मन तो आखिर चंचल होता है ...ऊपर से किशोरावस्था...कुछ समय बाद मैंने दोबारा उधर देखा तो वो लड़की फिर से मेरी नक़ल करने लगी .....अब वो अपने हाथ मैं किताब लेकर पढने की नक़ल करने लगी .....उसके साथ करीब 4-5 लड़कियाँ और भी थी जो कि उसके घर पर ट्यूशन पढने आती थी ...ये बात मुझे बाद में पता चली ....खैर मैं वहां से उठ कर नीचे दूसरी मंजिल पर रहने वाले भईया के पास चला गया ....उन्हें सारा माज़रा बताया .....उन्होंने कहा अच्छा अभी देखता हूँ .... उन्होंने लड़कियों से कहा क्या बात है जाओ चुपचाप अपनी पढाई करो ...वो ठीक उनके घर के सामने दिखने वाले घर में रहती थी...
बाद में भईया से पता चला कि उस लड़की का नाम नम्रता है ... करीब 5-10 दिन तक तो उसकी हरकतों पर मेरा ज्यादा ध्यान नही गया ...वो उसी तरह मेरी तरफ़ मुस्कुरा मुस्कुरा कर देखती और कभी कंकडी मारती या फिर कभी मेरी नक़ल करती ..... मैंने सारा वाक्या अपने ऊपर वाले भईया को बताया ....उन्होंने पहले तो ज्यादा ध्यान नही दिया .....लेकिन वो हमारी कालोनी में प्यार के मामले में बहुत मशहूर थे ...उनकी तब तक 4-5 प्रेम कहानियाँ चल चुकी थी ...
कुछ रोज़ बाद जब मैंने उन्हें फिर बताया तो उन्होंने कहा कि हो सकता है की वो लड़की तुझे पसंद करती हो ....चाहने लगी हो ....एक लड़के के लिए ये पोधीने के पेड पर चढाने वाली बात होती है .....मैं भी चढ़ते चढ़ते उस पेड़ पर चढ़ ही गया ...मैं भी धीरे धीरे शायद प्यार रुपी रोग का रोगी बनता जा रहा था .....
करीब 2-3 दिन वो लड़की जब दिखाई नही दी तो मेरा ध्यान इस बात पर गया ...शायद मुझे उसकी उल्टी सीधी हरकतों की आदत पड़ चुकी थी ...और प्यार का बुखार मुझे चढ़ चुका था ....मैंने छत से उस घर की तरफ़ देखा उसका आँगन वहां से दिखाई देता था ....एक दिन बाद वो अपने आँगन में दिखाई दी ....अब मेरा उसे देखने का सिलसिला शुरू हो चुका था .....
मैं अपने पहले प्यार के पहले पायदान पर पैर रख चुका था .... अब हर रोज़ दिन भर उसे देखने के सिवाय मेरे पास दूसरा काम नही था.... ये भी भूल चुका था कि मार्च में मेरे बोर्ड की परीक्षाएं हैं .....वो तो भला हो कि जनवरी से पहले ही मैं अपने सभी विषयों की तैयारी लगभग - लगभग पूरी कर चुका था ......स्कूल में सभी को मुझसे आशाएं थी कि मैं उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षा में टॉप २० में तो आ ही जाऊंगा ...किंतु उन्हें क्या पता था कि मैं प्यार में पड़ चुका हूँ ....और प्यार के गणित और इतिहास को समझने की कोशिश कर रहा हूँ ...प्यार के के लिए आस पास के भूगोल की जांच पड़ताल करता रहता कि कहीं मुझे कोई देख तो नहीं रहा ....
जनवरी के बाद मैंने कोई पढाई नहीं की ...अब एक ही काम हो सकता है ...या तो स्कूल की पढाई पढ़ लो या फिर भाई जान के प्यार के टिप्पस पर धयन दे उन्हें रटूं ..... मैं शायद वो विश्वामित्र था जिसकी पढाई रुपी तपस्या नम्रता ने भंग कर दी थी .....कुछ भी हो पर उस पहले प्यार के उन दिनों के मीठे एहसास को भुलाना आज भी मुमकिन नही ....
नम्रता भी बहुत चंचल थी.... अक्सर अपनी छत से मेरे आँगन में मेरे ऊपर कंकडी मारना या फिर मेरी ओर देख कर मुस्कुराना उसकी ख़ास आदत थी ....साफ़ साफ़ लगता था कि वो मुझे चाहती है ....कभी कभी तो मेरी माँ भी शक करने लगती थी कि ये लड़की हमारे घर की तरफ़ ही क्यों देखती रहती है ....
कुछ भी हो मेरे पहले प्यार की शुरुआत हो चुकी थी ....बिना बोले बिना कहे ....एक दूसरे को देखना ...मुस्कुराना ...
अच्छा लगता था वो सब कुछ ....
लेकिन बोर्ड की परीक्षाएं देते समय क्या क्या गुजरी मुझ पर ये में ही जनता हूँ ....क्या गुजरी वो अगले अंक में
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20 comments:
आपके पहले प्यार की पहली कहानी बड़ी रोचक रही ....आगे का इंतजार रहेगा ....आपका लिखा हुआ पढने में मज़ा आता है
आपकी रचनायें पढ़कर ऐसा क्यों लगता है जैसे आप मेरे जीवन की कथा लिख रहे हो?
... कहानी बेहद रोचक है, प्रस्तुतिकरण प्रसंशनीय है।
अगले अंक के इंतज़ार में ....
बहुत दिनों से हमारे यहां नेट की प्राबलम चल रही है थोडी देर चलने के बाद नेट बंद हो जाता है इस लिये कई दिन से सब ब्लोग देखे नहीं जा सके आज आपकी कहानी पढी बहुत रोचक है बहुत बहुत बधाई
प्यार का बुखार यूँ ही चढ़ता है......अगले अंक की प्रतीक्षा है,बुखार उतरा?
इंतज़ार रहेगा आपके अगले अंक का
प्रेम रोगी
की कहानी का इंतजार रहेगा
मजेदार किस्सा है
अगली कड़ी और आपके बोर्ड के नंबर जानने का इंतजार है । :)
मुझे तो मामला कुछ संगीन लगने लगा है. खैर पहले आप अगला अंक लिखिये.:)
रामराम.
आगे का इन्तिज़ार है
ऐसी स्थिति में तो व्यक्ति फेल ही हो जाता है आपका क्या हुआ?
मैं सिर्फ 73.16% नंबर ही ला सका १० वी कक्षा में
यह पहला प्यार था या किशोरावस्था की नादानी - यह आपही जान सकते हैं.
अरे भईया काहे को बार-बार हमें हमारा अतीत याद दिलाते हो....याद आने पर जाती नहीं है ना....थोडा रुलाती भी है...हंसाती भी है....गुदगुदाती भी है....यानी कि पता नहीं क्या-क्या करती है....और पता भी हो तो तुम्हे क्यूँ बतायाएं....
nice post...
सच में बहुत रोचक और भावात्मक कहानी है आपकी, ये इत्तेफाक या कुछ और मेरी भी कहानी कुछ इसी तरह की है मुझे भी ये रोग दसवी में ही पहली बार लगा और इसके एहसास ने जीवन बदल दिया
आगे क्या हुआ उस लार्की का और आपके जीवन का उसे जानने की तीव्र अभिलाषा है
"लेकिन बोर्ड की परीक्षाएं देते समय क्या क्या गुजरी मुझ पर ये में ही जनता हूँ ....क्या गुजरी वो अगले अंक में "
इंतज़ार करने के अलावा चारा भी क्या है?
hume bhi agle part ka intjaar rahega.
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